विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों को 'सनातन भूमि' में रहने का हक नहीं, समझे सरकार! करे कार्रवाई!
सनातन भूमि भारतवर्ष, जिसे जम्बूद्वीप, आर्यावर्त, आसेतु हिमालय आदि विभिन्न नामों से पुकारा गया है, में मुस्लिम आक्रमणकारियों और ब्रिटिश आतताई अधिकारियों के महिमामंडन का जो सियासी होड़ जब-तब मची रहती है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। सवाल है कि इनसे जुड़े विभिन्न प्रतीक चिन्हों-स्मारकों आदि, इनके नाम पर बसाए गए गांवों-शहरों, नामांकित सड़कों या विभिन्न संस्थानों को मिटा क्यों नहीं दिया जाता, क्योंकि ये सनातन भूमि पर रिसते घाव की मानिन्द हैं। यक्ष प्रश्न यह भी है कि आज इनकी जरूरत क्या है, किनको है और क्यों है? और यदि है तो फिर ऐसे देशद्रोहियों की यहां जरूरत है? यदि बाबर, अकबर, औरंगजेब जैसे क्रूर मुस्लिम शासकों या जनरल डायर जैसे क्रूर ब्रिटिश अधिकारियों या फिर ओसामा बिन लादेन, कसाब जैसे क्रूर आतंकवादियों का, पाकिस्तान-बंगलादेश जैसे फिरकापरस्त ताकतों के शुभचिंतक यहां हैं तो भारतीय प्रशासन का यह पहला कर्तव्य है कि राष्ट्रहित में इनकी शिनाख्त करे और इन्हें राष्ट्रीय सीमा से बाहर करे। इसे भी पढ़ें: बिहार में हिंदुत्व की समां बंधने से सियासी दलों की बेचैनी बढ़ीयह अहम बात है कि जब तक ये बाहर नहीं हो जाते, तबतक इनको मताधिकार और राष्ट्रीय जनसुविधाओं से वंचित किया जाए। इनके भारतीय पहचान पत्र निरस्त किये जाएं। क्योंकि सुलगता सवाल है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में जब कोई नेता या बुद्धिजीवी सिर्फ मजहबी कारणों से जुल्मियों का महिमामंडन करने का दुस्साहस करे, तो इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करना भारतीय प्रशासन का पहला कर्तव्य होना चाहिए। क्योंकि इस पवित्र हिन्दू भूमि पर ऐसा करते रहने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है! ऐसे देशद्रोही, सनातन द्रोही तत्वों के खिलाफ भारतीय नेताओं और प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। इस दिशा में कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, अन्यथा इनके हौसले बढ़ेंगे।कहना न होगा कि जब हम इंडिया कहते हैं तो उसका अभिप्राय अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, वर्मा, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव समेत भारत के उस विशाल भूभाग से लिया जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के रूप में सुप्रसिद्ध हिन्दू भूमि है। यदि आप महाभारत को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि यह पूरी दुनिया ही सनातनी थी, देवत्व मिजाजी थी और जो दानव या असुर मिजाजी थे, वो हिंदुओं से अलग होते गए। फिर भी आर्यावर्त में हिंदुत्व का दबदबा हमेशा बना रहा। इसलिए चाहे मुस्लिम आक्रमणकारियों का जत्था रहा हो या ब्रिटिशर्स ईसाइयों की फौज और उससे जुड़े लोग, जो यहां पर विदेशी आक्रमणकारी बनकर आए, यहां के शांतिप्रिय लोगों पर जुल्म ढाए और फिर यहीं रच-बस गए हैं। इन्होंने हथियार के बल पर धर्मांतरण कराया और सनातन मंदिरों उनके संरक्षक रजवाड़ों को नष्ट किया। चूंकि ये सभी बाहरी आक्रांता हैं, मंगोल या अरब से आये हैं, इसलिए इनकी असली जगह इनके मूल देशों में है, न कि सनातन भूमि में! क्योंकि इनकी सहानुभूति भारत से नहीं, बल्कि उन्हीं मुल्कों से है। हिंदुओं के नाम पर देश विभाजन करके फिर से भारत में फिरकापरस्त सियासत को बढ़ावा देना, वैसे ही संविधान का निर्माण करवाना कांग्रेस की ऐसी गलती रही है, जिसकी सजा उसे हिन्दू समाज देता आया है। क्योंकि आजादी के बाद मुसलमानों और ईसाइयों को देश से बाहर करवाना, उनसे जुड़ी स्मृतियों को समाप्त करना और भारतीय शासकों, ऋषियों-मुनियों और देवताओं की स्मृतियां कायम करवाना उसका दायित्व था, लेकिन उसने धर्मनिरपेक्षता और गंगा-यमुना संस्कृति के नाम पर हिन्दू समाज को धोखा दिया।ऐसा इसलिए कि सनातन भूमि, देव भूमि समझी जाती है। यही ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि है। यह अहिंसक भूमि है। जबकि मुस्लिमों-ईसाइयों का स्वभाव ही हिंसक है। ये लोग मांसभक्षी हैं और क्रूर भी होते हैं। इनके राजकाज वश, इनके संसर्ग में रहने वाले हिन्दू भी वैसे ही हो गए, जैसे ये हैं। इन्होंने फुट डालो और शासन करो की नीतियों से हिंदुओं में सामाजिक व जातीय दुर्भावना को जन्म दिया है।आधुनिक संवैधानिक व्यवस्था भले ही ऐसे तत्वों को धर्मनिरपेक्ष कहती है। लेकिन सदियों से इनका जो स्वभाव रहा है, लड़ाई-झगड़े, दंगा-फसाद की जो नियति रही है, उसके दृष्टिगत तो यही कहना उचित रहेगा कि इन्हें या तो खुद को बदलने का अवसर दिया जाए या फिर भारतीय उपमहाद्वीप से निकाल बाहर किया जाए।बदलते वक्त की मांग है कि सनातन भूमि की नैसर्गिक जरूरतों के मद्देनजर भारतीय संविधान का पुनर्निर्माण हो। इससे पहले कोई इतना मजबूत शासक बने, जो अखण्ड भारत का निर्माण करे। साथ ही आसेतु हिमालय में रच-बस चुके सनातन द्रोहियों को हृदय परिवर्तन, स्वभाव और संस्कार परिवर्तन यानी धर्मपरिवर्तन कर हिंदुओं में शामिल होने का अवसर दे, अन्यथा जिद्दी बनकर अपने धर्म पर अडिग रहने वालों को उसी प्रकार से आसेतु हिमालय यानी भारतीय उपमहाद्वीप से निकाल बाहर करे जैसे कि अमेरिका अपने यहां के अवैध प्रवासियों को कर रहा है।इस बात में कोई दो राय नहीं कि मुस्लिम और ईसाई आदि रह तो रहे हैं भारतीय उपमहाद्वीप में, लेकिन यशोगान करते फिरते हैं अरब और ईसाई देशों का। भारतवर्ष पर शासन करने वाले क्रूर शासकों या अधिकारियों का। खासकर सियासत में तो इनका यशोगान करने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। आज देश में जिस क्रूर बादशाह औरंगजेब, जो अपने पिता और भाइयों का नहीं हुआ, को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो चुके हैं।ऐसे में औरंगजेब के उस आखिरी खत की चर्चा यहां मुनासिब है, जो खोल देगा उसका महिमामंडन करने वालों का दिमाग। क्योंकि औरंगजेब के उस आखिरी खत का जिक्र इतिहास की किताबों में हुआ है। इसमें औरंगजेब अपने पापों की कहानी खुद कहता है। विवादास्पद मुगल शासक ने अपनी मृत्यु से पहले के पछतावे में अपने किये गुनाहों का जिक्र किया है। प्रख्यात इतिहासकार राम कुमार वर्मा की लिखी किताब 'औरंगजेब की आखिरी रात' में उस खत का मजमून दिया गया है। उसे आपको पढ़ना इसलिए जरूरी है ताकि मुंबई के समाजवादी पार्टी विधायक अबू आजमी ने औरंगज़ेब का जो

विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों को 'सनातन भूमि' में रहने का हक नहीं, समझे सरकार! करे कार्रवाई!
लेखिका: अनामिका शर्मा, टीम Netaa Nagari
हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करना एक सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों ने हमारी 'सनातन भूमि' पर अपना अधिकार जताने की कोशिश की है। यह स्थिति देश के लिए चिंताजनक है और अब समय आ गया है कि सरकार गंभीरता से इस समस्या को समझे और आवश्यक कार्रवाई करे।
संक्षिप्त पृष्ठभूमि
भारतीय संस्कृति एक समृद्ध इतिहास की धरोहर है, जिसने सदियों से विविधता एवं सहिष्णुता को अपने में समाहित किया है। परंतु जब विदेशी आक्रांता इस भूमि पर आकर हमारी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने का प्रयास करते हैं, तो यह केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं रह जाती, बल्कि यह पूरे राष्ट्र की पहचान के लिए खतरा बन जाती है।
विदेशी आक्रांताओं का प्रभाव
विदेशी आक्रांताओं ने हमेशा से हमारे देश की जड़ों को प्रभावित किया है। उनके विचार और आदर्श हमारे अपने मूल्यों से भिन्न होते हैं। जब हम उनकी शरण में जाते हैं या उनके प्रति सहानुभूति दिखाते हैं, तो हम अपनी जड़ों को कमजोर करते हैं।
समाज के कुछ वर्गों द्वारा इन आक्रांताओं के प्रति सहानुभूति या समर्थन दिखाना चिंताजनक है। ये लोग हमारी सांस्कृतिक धरोहर को धूमिल कर रहे हैं और इसका खामियाज़ा आज की पीढ़ी को भुगतना पड़ सकता है।
सरकार की भूमिका
अब समय आ गया है कि सरकार इस मुद्दे पर ध्यान दे और कठोर कदम उठाए। विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों को 'सनातन भूमि' में रहने का हक नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रकार के प्रवृत्तियों का सख्ती से सामना करे और यह सुनिश्चित करे कि हमारी संस्कृति की रक्षा हो।
सरकार को चाहिए कि वह जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए, ताकि लोग इस विषय की गंभीरता को समझ सकें और एकजुट होकर अपनी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा कर सकें।
निष्कर्ष
संक्षेप में, यह एक समय है जब देश को जागरूक रहने की आवश्यकता है। विदेशी आक्रांताओं के शुभचिंतकों के प्रति सहानुभूति या समर्थन केवल व्यक्तिगत दृष्टिकोण नहीं हो सकता, बल्कि यह देश की भावी पीढ़ियों के लिए खतरा बन सकता है। इसलिए, हमारी सरकार को चाहिए कि वो उचित कार्रवाई करें और इस समस्या को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए।
समाज में जागरूकता लाना और सहिष्णुता की जगह अपने राष्ट्रीयता की भावना को जगाना आवश्यक है। आने वाले दिनों में हमें इस दिशा में और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
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