राजनीति को नई दिशा देते विपक्षी दलों के नये चेहरे
सिंदूर ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिये जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतिया एवं भारत की छवि को छिछालेदार करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाक अनेक देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है और इन दलों में विपक्षी दलों के सांसद एवं नेताओं ने भारत का पक्ष बिना आग्रह, दुराग्रह एवं पूर्वाग्रह के दुनिया के सामने रखा, उसकी जितनी सराहना की जाये, कम है। इन विपक्षी नेताओं ने विदेश में भारतीय राष्ट्रवाद को सशक्त एवं प्रभावी तरीकों से व्यक्त किया। देश ने इन नेताओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते और एक लय में आगे बढ़ते देखा, जबकि संसद में वे केवल आपस में लड़ते दिखलाई देते थे। यह सराहनीय पहल भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि बनी है, जो भारत की भविष्य की राजनीति के भी नये संकेत दे रही है। क्योंकि इसने भारत में एक नए एवं सकारात्मक राजनीतिक नेतृत्व को उभरता हुआ दिखाया है। यूं तो सात दलों के सभी सदस्यों ने भरपूर तरीके से शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत का पक्ष रखकर दुनिया को भारत के पक्ष में करने की सार्थक पहल की है, लेकिन कांग्रेस के शशि थरूर एवं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी एक नये किरदार में नजर आये हैं। थरुर को लेकर कांग्रेस पार्टी में प्रारंभ से ही विरोध एवं विरोधाभास की स्थितियां बनी हुई।विदेशों में सटीक एवं प्रभावी भारतीय पक्ष रखने के कारण शशि थरुर जहां असंख्य भारतीयों की वाह-वाही लूट रहे हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी में उनका भारी विरोध हो रहा है। चर्चा एवं विवादों में चल रहे शशि थरूर केरल के तिरुवंतपुरम से चार बार के कांग्रेस के सांसद हैं। वे एक ऐसे कूटनीतिज्ञ राजनेता हैं, जो अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन करना जानते हैं। वे एक ऐसे स्वतंत्र सोच एवं साहसी निर्णय लेने वाले नेता भी हैं जो अपनी पार्टी के रुख से अलग भी स्टैंड लेते रहे हैं। लेकिन ताजा सन्दर्भों में वे कांग्रेस के लिए अब असहज सच्चाई बन गए हैं। क्योंकि थरूर ने वह सब कुछ किया है जिसकी पार्टी में इजाजत नहीं है। प्रतिनिधि मण्डल में थरूर के नाम पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई थी, क्योंकि कांग्रेस ने केंद्र को थरूर का नाम नहीं दिया था। थरूर ने कहा था- मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं, जब भी राष्ट्रीय हित की बात होगी और मेरी सेवाओं की जरूरत होगी, तो मैं पीछे नहीं रहूंगा।’ थरूर ने कांग्रेस छोड़ने की अटकलों के सवाल पर कहा- जब आप देश की सेवा कर रहे हों, तब ऐसी चीजों की ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिए। हमारे राजनीतिक मतभेद भारत के बॉर्डर के बाहर जाते ही खत्म हो जाते हैं। सीमा पार करते ही हम पहले भारतीय होते हैं। थरूर इन दिनों अमेरिकी सहित कई देशों के दौरे पर हैं, जहां वे ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बने मल्टी पार्टी डेलीगेशन को सुपर लीड कर रहे हैं। सरकार के समर्थन में बोलने पर कांग्रेस के अनेक नेता थरुर की खिंचाई करने में जुटे हैं। उन्हीं में एक नेता उदित राज ने थरूर को भाजपा का सुपर प्रवक्ता तक बता दिया है। जबकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा पर ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान युद्धविराम को लेकर लगातार हमलावर हैं। इसे भी पढ़ें: Chai Par Sameeksha: थरूर को मोदी पर गुरूर, कांग्रेस को ये नहीं मंजूर4 जून 2025 को राहुल गांधी ने तब हद ही कर दी जब उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में आत्मसमर्पण कर दिया। इतना ही नहीं ये सब कहने का अंदाज भी उनका इतना खराब था कि जैसे कोई दुश्मन देश का बंदा बोल रहा हो। राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि, मैं भाजपा और आरएसएस वालों को अच्छे से जान गया हूं, इनको थोड़ा सा दबाओ तो डर कर भाग जाते हैं। राहुल ने आगे कहा, उधर से ट्रंप ने फोन किया और इशारा किया कि मोदीजी क्या कर रहे हो? नरेंदर, सरेंडर और ‘जी हुजूर’ करके मोदीजी ने ट्रंप के इशारे का पालन किया। राहुल गांधी के इस भ्रामक एवं गुमराह करने वाले बयान का थरुर ने जोरदार तरीके से जबाव दिया एवं कांग्रेस पार्टी को ही घेरा। राष्ट्रपति ट्रम्प की भारत-पाक के बीच मध्यस्थता के बयान पर थरूर बोले- मैं यहां किसी विवाद को हवा देने नहीं आया हूं। अमेरिकी राष्ट्रपति का सम्मान है। हमें नहीं पता उन्होंने पाकिस्तान से क्या कहा, पर हमें किसी की सलाह की जरूरत नहीं थी। आग्रह-दुराग्रह से ग्रसित होकर कांग्रेस के नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने की ही बातें कर रहे हैं, इन कांग्रेसी नेताओं में दायित्व की गरिमा और गंभीरता समाप्त हो गई है। राष्ट्रीय समस्याएं और विकास के लिए खुले दिमाग से सोच की परम्परा उनमें बन ही नहीं रही है। जब मानसिकता दुराग्रहित है तो ”दुष्प्रचार“ ही होता है। कोई आदर्श संदेश राष्ट्र को नहीं दिया जा सकता। राष्ट्र-विरोधी राजनीति एवं सत्ता-लोलुपता की नकारात्मक राजनीति हमें सदैव ही उल्ट धारणा (विपथगामी) की ओर ले जाती है। ऐसी राजनीति राष्ट्र के मुद्दों को विकृत कर उन्हें अतिवादी दुराग्रहों में परिवर्तित कर देती है। राहुल गांधी एवं कांग्रेस ने राष्ट्रीय संकट में भी यही सब करके आम जनता से अधिक दूरियां बना ली है। शशि थरुर ने तो बड़ी लकीरें खींच दी, कांग्रेस कब ऐसी लकीरें खिंचने की पात्रता विकसित करेंगी? हर राजनीतिक दल को कई बार अग्नि स्नान करता पड़ता है, पर आज कांग्रेस तो ”कीचड़ स्नान“ कर रहा है। जहां तक कांग्रेस नेताओं का सवाल है, एक और निहित संदेश सामने आया कि सिर्फ गांधी परिवार ही कांग्रेस का नेतृत्व नहीं कर सकता जबकि भारत की सबसे पुरानी पार्टी में अभी भी प्रतिभाओं का खजाना है, उसके पास अनुभवी नेता हैं, जो जटिल मुद्दों को समझने और नेतृत्व देने में सक्षम हैं।बड़ी लकीरें तो प्रतिनिधिमण्डल में गये अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी खींची है। जिनमें एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विश्व

राजनीति को नई दिशा देते विपक्षी दलों के नये चेहरे
सिंदूर ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिए जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतियां एवं भारत की छवि को छिछालेदार करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाक कई देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है और इन दलों में विपक्षी दलों के सांसद एवं नेताओं ने भारत का पक्ष बिना आग्रह, दुराग्रह एवं पूर्वाग्रह के दुनिया के सामने रखा, उसकी जितनी सराहना की जाए, कम है।
नए नेताओं का उदय
इन विपक्षी नेताओं ने विदेश में भारतीय राष्ट्रवाद को सशक्त एवं प्रभावी तरीकों से व्यक्त किया। देश ने इन नेताओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते और एक लय में आगे बढ़ते देखा, जबकि संसद में वे केवल आपस में लड़ते दिखलाई देते थे। यह सराहनीय पहल भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि बनी है, जो भारत की भविष्य की राजनीति के भी नए संकेत दे रही है। यूं तो सभी सदस्यों ने भरपूर तरीके से शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत का पक्ष रखकर दुनिया को भारत के पक्ष में करने की सार्थक पहल की है, लेकिन कांग्रेस के शशि थरूर एवं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी एक नए किरदार में नजर आए हैं।
थरूर का कूटनीतिक कौशल
थरूर को लेकर कांग्रेस पार्टी में प्रारंभ से ही विरोध और विरोधाभास की स्थितियां बनी हुई हैं। विदेशों में सटीक एवं प्रभावी भारतीय पक्ष रखने के कारण थरूर जहां असंख्य भारतीयों की वाहवाही लूट रहे हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी में उनका भारी विरोध हो रहा है। थरूर ने कहा था, “मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं, जब भी राष्ट्रीय हित की बात होगी, मैं पीछे नहीं रहूंगा।” यही नहीं, थरूर ने कांग्रेस छोड़ने की अटकलों पर भी कहा कि “जब आप देश की सेवा कर रहे हों, तब ऐसी चीजों की परवाह नहीं करनी चाहिए।”
राहुल की तर्कशीलता
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा पर लगातार हमलावर रहते हुए यह कहा कि “मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में आत्मसमर्पण कर दिया।” इस पर थरूर ने जोरदार उत्तर दिया और कांग्रेस पार्टी की स्थिति पर सवाल उठाए। थरूर ने कहा, “हमें किसी की सलाह की जरूरत नहीं है।”
ओवैसी और कनिमोझी की भूमिका
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विश्व की राजधानियों में भारत की स्थिति और विकास को रेखांकित किया और पाकिस्तान को कड़ी भाषा में आड़े हाथों लिया। ओवैसी ने कहा कि “नकल के लिए भी अकल चाहिए।” वहीं, डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने भारत की राष्ट्रीय भाषा एकता और विविधता का जिक्र करते हुए अपने हिस्से का पक्ष रखा, जिससे वह भी सुर्खियों में रहीं।
राजनीति में एकता का संदेश
इन राजनीतिक नेताओं ने एकता और विविधता का संदेश देते हुए दिखाया है कि विभिन्न राजनीतिक विचारधाराएं होने के बावजूद, जब भारत की बात आती है, तो सभी एकजुट होते हैं। यह न केवल भारतीय राजनीति में सकारात्मक बदलाव का संकेत है, बल्कि भविष्य में देश की कूटनीतिक राजनीति को नई दिशा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
निष्कर्ष
राजनीति में आलोचना और प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है, लेकिन जब ये नेता एकजुट होकर देश के हित में कार्य करते हैं, तो यह निश्चित रूप से भारत की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत है। क्या भारत की राजनीति में इस तरह के नए चेहरे और विचारधाराएं आगे बढ़ेंगी, यह तो समय ही बताएगा।
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Written by: Team netaanagari
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