आखिर अमेरिका, चीन और रूस के 'साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल' को क्यों खटकता है भारत? समझिए विस्तार से

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शतरंजी विसात पर भारत ने अमेरिका को जो पटखनी दर पटखनी दी है, उसकी खुन्नस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चेहरे पर साफ महसूस की जा सकती है। वहीं, भारत के सम्बन्ध में उनकी बदलती नीतियों से अब यह स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि रूस और भारत के संयुक्त चक्रब्यूह में निरंतर फंसते जा रहे अमेरिका के पास अब चीन के समक्ष घुटने टेकने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचा है। लेकिन आप यह जानकर और भी हैरत में पड़ जाएंगे कि इसके बाद भी अमेरिका की दुश्वारियां कम नहीं होने वाली हैं। ऐसा इसलिए की तेजी से वैश्विक महाशक्ति बनते जा रहे भारत ने अंतरराष्ट्रीय दुनियादारी में अमेरिका, चीन और रूस तथा इनके शागिर्द देशों/गठबंधन भागीदारों को साधते हुए खुद को आगे बढ़ाने का जो निश्चय किया है, उससे अमेरिका और चीन के होश फाख्ता हो चुके हैं।इसे भी पढ़ें: आतंकवाद और पाकिस्तान- चीन से दो टूक बात करने का समय आ गयावहीं, भारत का सदाबहार दोस्त रूस मन ही मन गदगद है, क्योंकि अमेरिका और नाटो देशों के खिलाफ जो चक्रब्यूह 15 देशों का समूह सोवियत संघ या उसका बचा हुआ सर्वाधिक शक्तिशाली धड़ा रूस आज तक नहीं रच पाया, उसे भारत ने महाभारत कालीन चक्रब्यूह विधा की तर्ज पर ऐसा रचा की, उसमें फंसकर अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों चिग्घाड़ मार मार कर बचाओ बचाओ की आवाज लगा रहे हैं।इधर, भारत के लिए परेशानियों का सबब बनते जा रहे चीन के खिलाफ भी भारत ने ऐसा चक्रब्युह रचा है कि देर सबेर उसमें उलझकर वह बर्बाद हो जाएगा। इसके लिए भारत ताइवान, तिब्बत और उन मध्य एशियाई देशों जो सोवियत संघ से जुड़े थे, के साथ समझदारी भरे आतंकवाद विरोधी रिश्ते प्रगाढ़ कर रहा है।उधर, अरब और यूरोप में अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए भारत ने रूस का सहयोग लिया और इस विशाल भूभाग पर अमेरिका और चीन दोनों को कूटनीतिक पटखनी देने का जो निश्चय किया है, उससे देर-सबेर दिल्ली-मास्को एक्सप्रेस वे की आधारशिला तैयार हो जाएगी।इधर, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भी भारत अपनी स्थिति निरंतर मजबूत बना रहा है। अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा को भी वह देर सबेर काबू में कर लेगा, क्योंकि वहां पर पंजाबी लॉबी काफी मजबूत है।ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका, चीन और रूस के बीच पूरी दुनिया को साम्राज्यवादी लिहाज से बांटने की जो डील करने वाले हैं, उसकी तैयारी में भारत सबसे बड़ा बाधक बन रहा है। जबकि कारोबारी से राष्ट्रपति बने ट्रंप ने अपनी योजनात्मक किताब में तीनों महाशक्तियों के बीच 3 ही पावर सेंटर्स होने की बात कही है और इसमें भारत के लिए कोई जगह नहीं है।इस क्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप शायद यह भूल रहे हैं कि जिस ग्रेट ब्रिटेन से उन्होंने दुनिया की बादशाहत मिलकर छीनी है, अब वही यूरोपीय संघ की आड़ में अपना पुराना हिसाब किताब अमेरिका से चुकता करेगा। उसके इस मिशन में फ्रांस और इटली भी उसका साथ देंगे।इधर, प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध का मुख्य खलनायक रहा जर्मनी एक बार फिर रूस के खिलाफ मुखर होकर तीसरा विश्व युद्ध करवाने पर आमादा है। वहीं रूस के सहयोगी चीन, उत्तर कोरिया, ईरान जैसे देश आपसी समझदारी से जो कुछ कर रहे है, उससे अरब का संघर्षभूमि बनना स्वाभाविक है। इसके बाद अमेरिका के सहयोगी जापान, ऑस्ट्रेलिया, इजरायल, सऊदी अरब की भी परेशानी बढ़ेगी। देखा जाए तो साम्राज्यवादी नजरिए से अमेरिका-चीन-रूस, रूस-चीन-अमेरिका, चीन-रूस-अमेरिका के अलावा समय समय पर रूस-चीन-भारत, अमेरिका-चीन-भारत, अमेरिका-रूस-भारत आदि के जो साम्राज्यवादी चक्रब्यूह तैयार किये गए, उसमें से किसी में भारत नहीं फंसा। क्योंकि कुल मिलाकर भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो गुटनिरपेक्ष है। उसका दोस्त रूस भी उसकी गुटनिरपेक्षता में मददगार साबित हुआ है। ऐसे में चाहे अमेरिका-यूरोप गठबंधन हो या रूसी यूरेशिया-चीन-अरब गठबंधन, इनके बीच महायुद्ध होना स्वाभाविक है। ऐसे में गुटनिरपेक्ष भारत का महत्व बढ़ेगा।वहीं भारत ने रणनीतिक लिहाज से रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका संरक्षित इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से दूरी बनाकर रखी है। वह चीन-ताइवान युद्ध शुरू होने का इंतजार कर रहा है। इसी बीच अमेरिका-चीन ने भारत को पाकिस्तान से भिड़ाने की जो साजिश रची, उसको भी भारत ने अपने पक्ष में मोड़ लिया। इससे अमेरिका-चीन की जहां कलई खुली, वहीं रूस के साथ हमारे रिश्ते और प्रगाढ़ हुए।भारत और इजरायल की समझदारी भी किसी से छिपी हुई नहीं है। यदि ग्रेटर इजरायल और ग्रेटर इंडिया का स्वप्न साकार हुआ तो दोनों मजबूत पड़ोसी बन जाएंगे। उधर ग्रेटर रूस बनने से वह भी हमारा पड़ोसी बन जाएगा। इससे अमेरिका व चीन के लिए यूरोप और एशिया में कोई जगह नहीं बचेगी, जबकि रूस का एक छत्र राज बढ़ेगा।यही वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप बौखलाए हुए हैं। जिस तरह से उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ दगाबाजी की है, उसी तरह से उनके सहयोगी भी अब उनसे दगाबाजी कर रहे हैं। यही वजह है कि ट्रंफ ने अपने सहयोगियों की आलोचना की है और दुनिया भर से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बात की है। स्वाभाविक है कि इससे रूस और चीन को फायदा होगा, जो यूरोप और एशिया में अमेरिकी सुरक्षा के खिलाफ ही सालों से काम करते आए हैं। यही वजह है ट्रंप की परिवर्तित नीतियों से सबसे ज्यादा डर अमेरिका के सहयोगियों में है।बता दें कि कारोबारी से राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप के लिए सबसे प्यारा शब्द डील है। खासकर यदि बात चीन, रूस और भारत की हो तो अमेरिकी राष्ट्रपति और ज्यादा खुलकर सामने आ जाते हैं। दरअसल चीन, रूस और भारत से डील कर ट्रंप अपने अमेरिका में एक बड़ा संदेश देना चाहते हैं। वह यह कि वो उन नेताओें से डील कर सकते हैं, जिन्हें निगोसिएशन के टेबल पर लाना सबसे मुश्किल काम है। बता दें कि एक अमेरिकी अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे रूस के साथ व्यापार को सामान्य करना चाहते हैं। इससे ऐसा लग रहा है कि वे यूक्रेन के साथ युद्ध को सुलझाने के लिए मॉस्को पर

Jun 12, 2025 - 18:37
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आखिर अमेरिका, चीन और रूस के 'साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल' को क्यों खटकता है भारत? समझिए विस्तार से
आखिर अमेरिका, चीन और रूस के 'साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल' को क्यों खटकता है भारत? समझिए विस्तार से

आखिर अमेरिका, चीन और रूस के 'साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल' को क्यों खटकता है भारत? समझिए विस्तार से

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लेखक: कमलेश पांडेय, टीम नेटआनागरी

भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत के चलते अमेरिका, चीन और रूस के बीच एक नई रणनीतिक हलचल देखने को मिल रही है। संपूर्ण विश्व में एक साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल की भांति कार्यरत इन देशों को भारत के समक्ष बढ़ती चुनौती खटक रही है। हाल ही में भारत ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी दृढ़ता और साहस दिखाते हुए अमेरिकियों के साथ संवाद में नवाचार किया है, जिससे वैश्विक कूटनीति में उसकी स्थिति को मजबूती मिली है।

भारत की कूटनीतिक विजय

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की इस विशिष्‍ट परिस्थिति में भारत ने अमेरिका को बार-बार पटखनी दी है। यह स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देती है। भारत ने अमेरिका, चीन और रूस के प्रभावशाली गठबंधन को चुनौती देते हुए अपने लिए एक अनूठा मार्ग चुना है। वहीं, अमेरिका को एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसा दिया है, जिससे निकलना उसकी लिए कठिन हो रहा है।

अमेरिका, चीन और रूस का भारत के प्रति नजरिया

भारत की गुटनिरपेक्षता ने इसे वैश्विक मंच पर एक अद्वितीय स्थिति में पहुंचा दिया है। अमेरिका की सैन्य और आर्थिक शक्ति के सामने, भारत ने अपनी कूटनीतिक रणनीतियों के माध्यम से एक संतुलन स्थापित किया है। रूस भारत का सदाबहार मित्र बना हुआ है, और भारत की बढ़ती शक्ति देखकर वह भी संतोष का अनुभव कर रहा है। परिणामस्वरूप, अमेरिका और चीन की नीतियों पर एक गहरा असर पड़ा है।

भारत की सामरिक पहल

भारत ने ताइवान, तिब्बत और मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं। यह घटनाक्रम चीन को एक नई चुनौती प्रदान कर रहा है। भारत के साथ इस प्रकार की समझदारी और सहयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि भविष्य में भारत किस प्रकार से अपने सामरिक हितों की रक्षा करेगा।

भारत को क्यों खटकता है अमेरिका, चीन और रूस?

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा भारत को कोई अहम स्थान न देने की नीति उनकी असुरक्षा को दर्शाती है। भारतीय कूटनीति और स्वतंत्रता ने अमेरिका को इस स्थिति में डाल दिया है जहां उसे भारत को एक अदृश्य शक्ति के रूप में देखना पड़ता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बदलती नीतियां भारत के प्रति चिंता का एक और संकेत हैं।

अगली चाल क्या होगी?

यदि हम ट्रंप की पद ग्रहण के बाद की रणनीतियों पर गौर करें, तो स्पष्ट होता है कि उनका ध्यान हमेशा अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने पर रहा है। ऐसे में यह देखना होगा कि भारत इस चक्रव्यूह में कैसे स्वयं को बनाए रखता है। अमेरिका अगर अपनी विदेश नीति में भारत को नजरअंदाज करता है, तो इसका जवाब भी अमेरिका को भोगना पड़ेगा।

निष्कर्ष

भारत की कूटनीतिक विजय के पीछे कई गंभीर मुद्दे छिपे हुए हैं। अमेरिका, चीन और रूस के चक्रव्यूह में भारत की मजबूती उसे एक दल-निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करती है। साम्राज्यवादी लव ट्रेंगल की इस कठिनाई में भारत अपनी स्वतंत्रता और कूटनीति से एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है।

Keywords:

India, America, China, Russia, geopolitical strategy, diplomatic relations, international politics, sovereignty, global power dynamics, non-alignment policy

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