मीडिया की विश्वसनीयता पर उठते सवाल
मीडिया की विश्वसनीयता पर उठते सवालों के बीच आकाशवाणी और बाद में दूरदर्शन के शुरुआती वे दिन बरवस याद आ जाते हैं जब आकाशवाणी के नेशनल और प्रादेशिक समाचारों के प्रति आमजन के विश्वास को इसी से समझा जा सकता है कि चौराहों की चाय-पान की दुकानों पर खड़े होकर भी समाचार सुनने में किसीको कोई संकोच ना होकर गर्व महसूस होता था। आकाशवाणी के नेशनल समाचारों की बात हो तो सुबह 8 बजे और रातः पौने नो बजे के समाचार बुलेटिनों की बेसब्री से प्रतीक्षा होती थी तो प्रातःकालीन प्रादेशिक समाचार के साथ ही खासतौर से सायंकालीन सात बजे के प्रादेशिक समाचार को कोई भी प्रदेषवासी मिस नहीं करना चाहता था। आकाशवाणी और दूरदर्शन का यह स्वर्णकाल इस मायने में कहा जा सकता है कि सरकारी नियंत्रण में होने के बावजूद आमआदमी तो क्या पक्ष और विपक्ष के नेतागण भी समाचारों की विश्वसनीयता पर प्रष्न नहीं उठा पाते थे। होता तो यहां तक था कि आकाशवाणी के कार्यक्रमों से लोग अपनी घड़ियों को मिलाया करते थे। विश्वसनीयता का यह कोई आसान काम नहीं था पर उस समय के दिग्गज मीडियाकर्मियों ने अपनी मेहनत, लगन और निष्पक्षता से सींचने का काम किया और उसका परिणाम यह रहा कि उस समय के मीडिया दिग्गजों को समूचे समाज में चाहे वह राजनीतिक स्तर हो, ब्यूरोक्रेटिक स्तर हो या फिर आमजन सभी जगह सम्मान से देखा जाता था। यदि प्रादेशिक स्तर की बात की जाए तो आकाशवाणी जयपुर अजमेर के समाचार संपादक और बादमें दूरदर्शन जयपुर केन्द्र के समाचार एकांश के निदेशक मोहनराज सिंघवी जिन्हे मीडिया जगत में एमआर सिंघवी के नाम से जाना जाता रहा है की मेहनत, निष्पक्षता और मीडिया की स्वतंत्रता की पक्षधरता का ही परिणाम रहा कि मीडिया जगत में एमआर सिंघवी एक ब्राण्ड के नाम से पहचान बनाने में कामयाब रहे। पक्ष-विपक्ष के सभी नेता, समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधियों सहित आमजन में जिस तरह की छवि एमआर सिंघवी की बनी वह आजके मीडिया कर्मियों के लिए ईर्च्छा का कारण बन सकती है तो प्रेरणास्पद भी है। बात में इतना दम की क्या तो मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रीमण्डल के सदस्यगण और क्या ब्यूरोक्रेसी के कर्ताधर्ता एमआर सिंघवी की बात को कमतर समझने की भूल भी नहीं कर सकते थे।यह आज के समय में अविश्वसनीय कल्पना ही हो सकती है कि 90 के दशक में एमआर सिंघवी के आकाशवाणी जयपुर पिंकसिटी पेट्रोलपंप के पास स्थित आवास पर मिलनेवाले जरुरतमंद लोगों का जमावड़ा इस तरह से लगा रहता था जैसे किसी राजनेता के निवास पर लगा होता था। पीड़ित व्यक्ति के लिए एमआर सिंघवी एक सहारा रहे हैं। इसका कारण भी यह रहा कि यदि काम जायज है और हितकारक है तो सिंघवी जी आने वाले व्यक्ति के सामने ही संबंधित मंत्री से लेकर अधिकारी को फोन करने में किसी तरह का संकोच नहीं करते थे और आने वाले व्यक्ति की आंखें एहसान से बोझिल हो जाती तो काम भी आसानी से हो जाता था। खासबात यह कि बिना जानपहचान भी कोई अपने दुखदर्द को लेकर पहुंच जाता था तो सहयोग करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ते। मैं स्वयं इसका उदाहरण हूं। किसी दिन आकाशवाणी के अनुबंध पर समाचार अनुभाग के लिए लिखित परीक्षा हुई और एक दिन एकाएक घर पर आकाशवाणी से अनुबंध का पत्र आ गया। डिप्लोमा भले ही पत्रकारिता में कर लिया हो पर अनुभव के मामलें में शून्य होने के बावजूद जिस तरह से सिंघवी जी ने मेरे जैसे को तराशा उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। मजे की बात यह कि एमआर सिंघवी पोलियों से ग्रसित होने के कारण चलने फिरने में असुविधा के बावजूद किसी के भी सहयोग के लिए उनके साथ जाने को तैयार हो जाते। विकलांगों के लिए उन्होंने संघर्ष करने के साथ ही स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के खेलों का आयोजन, संयोजन व प्रोत्साहन दिया। देवेन्द्र झाझड़िया तो एक उदाहरण मात्र है जिन्हें विश्वपटल पर पहचान सिंघवी जी की प्रेरणा-प्रोत्साहन और सहयोग से ही संभव हो सका।इसे भी पढ़ें: संवाद और संचार की दुनिया में बज रहा हिंदी का डंकाआकाशवाणी का यह वह जमाना था जब टेलीप्रिंटर और टेलीफोन ही प्रमुख माध्यम होते थे। सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से समाचारों की डाक आती थी वहीं प्रादेशिक समाचारों में समूचे प्रदेष के प्रमुख समाचारों का समावेश महत्वपूर्ण होता था। ऐसे में लगभग प्रतिदिन समाचार संपादक होने के बावजूद बिना किसी संकोच के फोन से समाचार लेने व स्वयं लिखने तक में संकोच नहीं करने के कारण ही मीडिया जगत में पहचान और विश्वसनीयता बनी। बुलेटिन में खबरों के चयन से लेकर प्रसारण तक तनावरहित वातावरण में काम करना और नए लोगों को प्रोत्साहित करना यही तो सिंघवी जी की पहचान रही। हिम्मत यह कि जयपुर दूरदर्शन निदेशक समाचार रहते हुए तत्कालीन केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्व. गिरिजा व्यास के जयपुर में एक ब्यूटीपार्लर के उद्घाटन के समाचार प्रसारित करने के दबाव के बावजूद मीडिया मानदंडों के विरुद्ध बताते हुए प्रसारित नहीं करना सिंघवी जैसे बिड़ला ही कर सकते हैं। इसी तरह से तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिया के पिताजी के देहावसन के समाचार प्रसारण के लिए लाख दबाव के बावजूद विनम्रता से नीति विरुद्ध जाकर समाचार प्रसारित नहीं करने का निर्णय कोई सिंघवी जैसा ही ले सकता है। आज तो केन्द्रीय मंत्री वो भी स्वयं का माईबाप यानी कि स्वयं के विभाग का हो तो उसकी खबर तो क्या आगे पीछे सेवा सुश्रुषा में ही लगे रहने में गर्व महसूस करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि एमआर सिंघवी कोई ऐसे ही नहीं बनता, कोई ऐसे ही राजनेताओं, पक्ष विपक्ष के छोटे से लेकर बड़े नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स सभी के लिए सम्मानजनक अपनी कार्यशैली, निष्पक्षता, निष्ठा और मेहनत से ही बना पाता है। प्रदेश का संभवतः कोई छोटा-बड़ा नेता या अधिकारी ऐसा नहीं होगा जो एमआर सिंघवी के नाम, पहचान और उनकी कार्यशैली का कायल नहीं होगा। इतने विस्तृत केनवास पर पहचान और विश्वसनीयता कोई ऐसे नहीं बन जाती बल्कि यह ईमानदारी, निस्वार्थता और सहायता और सहयोग की भावना के कारण ही हो पाता है। यही सिंघवी जी की पूंज

मीडिया की विश्वसनीयता पर उठते सवाल
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Written by: Neelam Mehta, Priya Sharma, Team netaanagari
परिचय
मीडिया, जो समाज के संगठित रूप में स्वतंत्रता का प्रतीक है, आज विश्वसनीयता के प्रश्न के आगे खड़ा है। ऐसा लगता है जैसे लोग मीडिया के प्रति अपनी धारणा बदल रहे हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन के स्वर्णकाल की यादें आज लोगों के मन में ताजा हो रही हैं, जब समाचार सुनना गर्व की बात हुआ करता था। परंतु आज, विश्वसनीयता पर सवाल उठते देखकर यह समझना जरूरी है कि इस बदलाव के पीछे क्या कारण हैं।
मीडिया का स्वर्णकाल
आकाशवाणी और दूरदर्शन के समय जब आम जनता समाचारों को सुनने में गर्व महसूस करती थी, तब विश्वसनीयता एक महत्वपूर्ण तत्व हुआ करता था। सुबह 8 बजे और रात पौने नो बजे के समाचार बुलेटिनों का बेसब्री से इंतजार किया जाता था। इस समय के प्रमुख मीडियाकर्मियों, जैसे मोहनराज सिंघवी, ने अपने कार्य से मीडिया की विश्वसनीयता को स्थापित किया। उनका दृष्टिकोण निष्पक्ष और मेहनती रहा, जिससे उन्होंने समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया।
आज का परिदृश्य
आज, मीडिया की विश्वसनीयता चुनौती में है। इलेक्ट्रॉनिक चैनल अक्सर बिना पुष्टि की गई ख़बरों को प्रसारित करते हैं। सोशल मीडिया में फैली अराजकता और अफवाहों ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। किसी भी घटना के बारे में लोगों की विश्वसनीयता अब मीडियाकर्मियों पर निर्भर नहीं रही। परिणामस्वरूप, अनेक चैनल अब मूल्यों की बजाय टीआरपी के पीछे दौड़ते हुए नजर आते हैं।
विश्वसनीयता की आवश्यकता
आकाशवाणी के स्वर्णकाल का आदर्श आज की पत्रकारिता के लिए महत्वपूर्ण है। यदि हमारी मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं, तो यह एक गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। मोहनराज सिंघवी जैसे दिग्गजों की आवश्यकता महसूस होती है, जो अपने कार्यों से समाचारों की विश्वसनीयता का प्रमाण बन सकें।
निष्कर्ष
समाज में बढ़ती हुई भ्रामक खबरों के बीच मीडिया की विश्वसनीयता बहाल करना आवश्यक है। दरअसल, समाचार कभी भी संकीर्ण दृष्टिकोण से संवादित नहीं होना चाहिए। आज लोगों को सही और निष्पक्ष समाचारों की आवश्यकता है, ताकि उनके विश्वास को पुनः स्थापित किया जा सके। मीडिया को न केवल अपनी जिम्मेदारी निभाने की आवश्यकता है, बल्कि इसके लिए एक ईमानदार दृष्टिकोण अपनाना भी आवश्यक है।
कुल मिलाकर, आकाशवाणी और दूरदर्शन का स्वर्णकाल सिर्फ एक याद नहीं, बल्कि आज के मीडिया के लिए एक प्रेरणा है। इसे संजीवनी के रूप में लेना चाहिए, ताकि हम फिर से मीडिया के माध्यम से सत्य को प्रदर्शित कर सकें।
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