कांग्रेस की विभाजनकारी राहों से जुड़े खतरे
कांग्रेस पार्टी की नीति हमेशा से विभाजनकारी रही है। इनका एजेंडा ही रहा है देश में जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर बंटवारा करके अराजकता का माहौल बनाना। इसके लिये वह कभी संविधान को खतरे में बताती है तो कभी जातिगत जनगणना की मांग करती है। एक बार फिर डॉ. भीमराव आंबेडकर की जन्मस्थली महू में रैली के दौरान कांग्रेस ने जिस तरह इस पर जोर दिया कि संविधान पर हमला किया जा रहा है और महात्मा गांधी का अपमान किया जा रहा है, उससे उसकी विचारशून्यता एवं राजनीति अपरिपक्वता ही प्रकट नहीं हो रही है,, बल्कि देश को बांटने की मानसिकता भी उजागर हो रही है। यदि कांग्रेस के रणनीतिकार एवं नेता यह समझ रहे हैं कि वे संविधान के संदर्भ में भय का भूत खड़ा करने और भाजपा एवं संघ के नेताओं के बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश करने से देश की जनता को गुमराह करने, बरगलाने में समर्थ हो जाएंगे तो ऐसा अब होने वाला नहीं है। उलटे इस क्रम में कांग्रेस की विश्वसनीयता और अधिक गिर सकती रही है और वह हास्यास्पद स्थिति का शिकार होकर अपनी राजनीतिक जमीन को कमजोर ही कर रही है। ऐसा हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनावों में हुआ है और अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव भी ऐसे ही होते हुए दिख रहे हैं। संविधान के खतरे में होने के कांग्रेस के दुष्प्रचार का लाभ भले ही कुछ सीमा तक लोकसभा चुनाव मिला हो, लेकिन हर बार मतदाता ऐसे नारों एवं दुष्प्रचार में गुमराह नहीं होने वाला है। वैसे भी काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। कांग्रेस इस बात को भी तूल दे रही है कि महात्मा गांधी के साथ डॉ. आंबेडकर का अपमान किया जा रहा है। ये ऐसी बातें हैं, जिनका कोई मूल्य-महत्व नहीं। यह सब अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। यह असत्य एवं झूठ की राजनीति है। कांग्रेस भले ही सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की बातें कर रही हो, लेकिन सच यह है कि वह सामाजिक विभाजन की खाई को चैड़ा करते हुए देश को जोड़ने नहीं, बल्कि तोड़ने में जुटी हुई है। अब मतदाता समझदार हो चुका है, वह ऐसे झूठे प्रचार में बार-बार नहीं आने वाला है। कांग्रेस सामाजिक न्याय की बात करते हुए भाजपा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी निशाने पर ले रही है, लेकिन कांग्रेस की इन कुचालों का भाजपा एवं आरएसएस करारा जबाव दे रहे हैं। इसे भी पढ़ें: दिल्ली में इस बार जनता के लिए घोषणापत्र नहीं, लॉटरी पेश कर रहे हैं राजनीतिक दलगत दिवस ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कांग्रेस एवं उसके नेता राहुल गांधी को नसीहत देते हुए कहा- बंधुभाव ही असली धर्म है। यही बात डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान-प्रस्तुति के समय अपने भाषण में भी समझाई है। भागवत ने कहा- समाज आपसी सद्भावना के आधार पर काम करता है। इसलिए मतभेदों का सम्मान किया जाना चाहिए। प्रकृति भी हमें विविधता देती है। वे विविधता को जीवन का हिस्सा मानते हैं। उन्होंने कहा कि आपकी अपनी विशेषताएं हो सकती हैं, लेकिन आपको एक-दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहिए। अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको एक साथ रहना चाहिए। लेकिन कांग्रेस वर्तमान में ही नहीं, बल्कि अतीत में भी विभाजनकारी नीति को बल देते हुए भारतीय इंसानों को बांटती रही है। गांधीजी ने आजादी के बाद ही यह बात समझ ली थी। इसीलिए गांधीजी ने कहा था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। लेकिन कांग्रेस गांधी के अनुसार तो खत्म नहीं हुई लेकिन देश में विभाजनकारी नीति के कारण जनता द्वारा नकारी जा रही है, खत्म होने के कगार पर पहुंच रही है।कांग्रेस भारत की ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की भावना को दबा रही है, सनातन परंपरा को दबा रही है। अनेक वर्षों तक दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस सत्ता में वापस आने के लिए इतनी बेचैन है कि वो हर दिन नफरत, द्वेष एवं घृणा की राजनीति कर रही है। कांग्रेस सांप्रदायिकता और जातिवाद के विष को दिल्ली चुनाव में भी उडेल रही है। हिंदू समाज को तोड़ना और उसे अपनी जीत का फॉर्मूला बनाना ही कांग्रेस की राजनीति का आधार है और यही उसको रसातल में ले जा रहा है। कांग्रेस की जातिगत जणगणना की मांग भी उसकी विभाजनकारी नीति को ही दर्शाती है। मोदी सरकार जनगणना कराने की तैयारी कर रही है। सरकार के सामने समस्या केवल यह नहीं है कि जनगणना शीघ्र कराई जाए बल्कि मूल समस्या यह है कि कांग्रेस की जाति आधारित जनगणना की मांग का सामना कैसे किया जाए। विपक्षी दल और विशेष रूप से कांग्रेस जातिगत जनगणना पर जोर दे रही है, जो केवल संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के इरादे से की जा रही है। जातिगत जनगणना का उद्देश्य समाज को चुनावी लाभ के लिए जातियों में गोलबंद करना और जातिगत आरक्षण को तूल देकर वोटबैंक की राजनीति को धार देना है। इसकी पुष्टि विपक्षी नेताओं और विशेष रूप से राहुल गांधी के ऐसे बयानों से होती है कि अमुक-अमुक जाति के लोगों को दबाया जा रहा है। यह और कुछ नहीं, समाज को जानबूझकर बांटने की घातक चेष्टा है।यह सही है कि भारतीय समाज जातियों में विभाजित रहा है, लेकिन अब जब यह विभाजन लगातार कम होता जा रहा है, तब जाति जनगणना कराकर जाति की राजनीति करने वालों को सामाजिक विभाजन का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए। क्योंकि यह जातीय वैमनस्य को ही हवा देगा और इससे विभाजनकारी प्रवृत्तियों के सिर उठाने का ही खतरा है। जातिगत जनगणना बेहद जटिल होने के साथ विभाजनकारी भी है। यही कारण है कि 2011 में मनमोहन सरकार ने जाति जनगणना कराने के बाद भी उसके आंकड़े सार्वजनिक करना सही नहीं समझा था। क्योंकि कई ऐसी जातियां हैं, जिनकी एक राज्य में सामाजिक और आर्थिक हैसियत दूसरे राज्य से बिल्कुल भिन्न है। इतना ही नहीं, कहीं उनकी गिनती अनुसूचित जाति में होती है तो कहीं पिछड़ी जाति में। जाति जनगणना के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि पिछड़ेपन का एकमात्र आधार जाति है। एक समय ऐसा था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। आज शहरों में किसी को इससे मतलब नहीं कि कौन किस जाति का है। जाति जनगणना कराने का मतलब होगा देश को फिर से जातीय विभाजन की ओर ले जाना। इससे बचने में ही समझदारी है। कांग्रेस एवं विपक्

कांग्रेस की विभाजनकारी राहों से जुड़े खतरे
Netaa Nagari - कांग्रेस पार्टी, जो भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी है, वर्तमान में कई विभाजनकारी मुद्दों का सामना कर रही है। यह घटनाक्रम न केवल पार्टी की आंतरिक एकता को खतरे में डालता है, बल्कि पूरे देश के राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकता है। इस लेख में हम इन खतरों को पहचानने और उनके संभावित प्रभावों की चर्चा करेंगे।
विभाजनकारी नीतियों का प्रभाव
कांग्रेस का विभाजनकारी रुख उसके अतीत में भी देखा गया है, जब पार्टी ने विभिन्न सामाजिक, जातीय और धार्मिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाई थीं। वर्तमान में, इस प्रकार की नीतियों से न केवल पार्टी की छवि प्रभावित हो रही है, बल्कि यह उनके चुनावी अभियान पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
आंतरिक संघर्ष और असहमति
कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी झगड़े और विभिन्न नेताओं के बीच की असहमति भी एक बड़ी चुनौती है। जब पार्टी के नेता आपस में मतभेदों का सामना करते हैं, तो यह स्थिति पार्टी के विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकती है। इस प्रकार की स्थिति से पार्टी के सामूहिक प्रयास कमजोर पड़ते हैं, जिससे चुनावों में सफलता की संभावना भी कम होती है।
बढ़ती विपक्षी ताकत
कांग्रेस के विभाजनकारी रुख से न केवल उसकी ताकत कम हो रही है, बल्कि विपक्षी दलों को भी इस स्थिति का लाभ उठाने का मौका मिल रहा है। बीजेपी और अन्य क्षेत्रीय दल कांग्रेस कीWeakness का फायदा उठाकर अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं। इस कारण, कांग्रेस को अपने सिद्धांतों और नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
भविष्य की चुनौतियाँ
भविष्य में, कांग्रेस को कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पार्टी को न केवल अपनी आंतरिक एकता को बनाए रखना होगा, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं और चिंताओं का भी ध्यान रखना होगा। अगर कांग्रेस सही दिशा में कदम नहीं उठाती है, तो इसके विभाजनकारी रुख से पार्टी की प्रगति रुक सकती है।
निष्कर्ष
कांग्रेस की विभाजनकारी राहें न केवल पार्टी के लिए, बल्कि देश के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती हैं। इस स्थिति से बचने के लिए, पार्टी को न केवल अपने आंतरिक संघर्षों का समाधान करना होगा, बल्कि समाज में व्यापक सामंजस्य भी कायम करना होगा। केवल इस तरह ही कांग्रेस अपनी खोई हुई पहचान वापस पा सकती है और देश की राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
इस प्रकार, Congress पार्टी के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी राहों पर पुनर्विचार करे और देश की एकता और अखंडता के लिए एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़े।
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