राहुल गांधी की देश-विरोधी बचकानी राजनीति

एक बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने के इरादे से ऐसा बयान दिया है जो भारत की साख को आघात लगाने वाला है बल्कि देश की एकता एवं अखण्डता को ध्वस्त करने वाला है। राहुल गांधी किस तरह गैर जिम्मेदाराना बयान देने में माहिर हो गए हैं, यह इस कथन से फिर सिद्ध हुआ कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर इसलिए बार-बार अमेरिका जा रहे थे, ताकि भारतीय प्रधानमंत्री को डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया जाए। राहुल गांधी मोदी-विरोध में कुछ भी बोले, यह राजनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वे मोदी विरोध के चलते देश-विरोध में जिस तरह के अनाप-शनाप दावे करते हुए गलत बयान देते हैं, वह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता एवं बचकानेपन को ही दर्शाता है। आखिर कब राहुल एक जिम्मेदार एवं विवेकवान प्रतिपक्ष के नेता बनेंगे? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राजनीति से हटकर भी गहरे व्यक्तिगत आत्मीय मित्रवत संबंध है, इसलिये उनका शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने पर किसी तरह का संदेह नहीं हो सकता। लेकिन इस बात को लेकर राहुल के बयान पर हैरानी होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि लोकसभा में संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू ने राहुल गांधी की इस विचित्र बात पर आपत्ति जताई, बल्कि विदेश मंत्री जयशंकर ने भी नाराजगी प्रकट करते हुए कहा कि वह ऐसी बात कहकर भारत की छवि खराब करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी के झूठ का उद्देश्य राजनीतिक हो सकता है, लेकिन ऐसे झूठे, भ्रामक एवं गुमराह करने वाले बयान से भारत की छवि को गहरा नुकसान हुआ है। यह तय है कि विदेशी मंत्री के प्रतिवाद का राहुल गांधी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। ऐसी  मिथ्या बातें करके वे प्रधानमंत्री पर हमला करने का कोई अवसर नहीं चुकते। वह प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को कोई महत्व नहीं देते। आखिर यह किसी से छिपा नहीं कि वह उनके खिलाफ तू-तड़ाक वाली अशालीन एवं अमर्यादित भाषा का उपयोग करते रहे हैं। विडंबना यह है कि इस आदत का परित्याग वह नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के बाद भी नहीं कर पा रहे हैं। समस्या केवल यह नहीं कि वह प्रधानमंत्री पद की गरिमा की परवाह नहीं करते। समस्या यह भी है कि वह प्रायः ऐसी बचकानी बातें कर जाते हैं, जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल होती हैं या दूसरे देशों से संबंधों पर बुरा असर डालती हैं।इसे भी पढ़ें: सत्ता की लोलुपता ने कांग्रेस को बनाया कमजोरराहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं और उन्होंने अन्य सांसदों की ही तरह देश की अखंडता और एकता की रक्षा करने की शपथ ली थी, लेकिन उनके द्वारा समय-समय पर दिये गये वक्तव्य एवं टिप्पणियां पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी भारत विरोधी अलगाववादी समूह के नेता बनने की राह पर अग्रसर हैं और उनका इरादा भारत की एकता, अखंडता और सामाजिक सद्भाव को नष्ट करना और देश को गृहयुद्ध की ओर धकेलना है। इस तरह राहुल गांधी द्वारा देश में विभाजन के बीज बोने के प्रयास निंदनीय ही नहीं, घोर चिन्तनीय है। सत्ता के लालच में कांग्रेस एवं उनके नेता देश की अखंडता के साथ समझौता और आम आदमी के भरोसे को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। राहुल के बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी लड़ाई सिर्फ भाजपा और आरएसएस से नहीं, बल्कि भारत से है। राहुल गांधी अक्सर भारत राष्ट्र अर्थात भारत के संविधान यानी आंबेडकर के संविधान के खिलाफ विषवमन करते दिखाई देते हैं। गांधी परिवार की ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ वाली कहावत जनता के सामने बार-बार आती रही है। आंबेडकर के अस्तित्व को नकार कर भारत के संविधान को बदलने के बाद गांधी परिवार देश का विभाजन, दुश्मन देश के नेताओं एवं शक्तियों के सपनों का टुकड़ों वाला भारत चाहता है। आखिर राहुल गांधी और कांग्रेसी किस बात के लिए संविधान की प्रति लेकर चलते हैं? इस तरह एक गैर जिम्मेदार और बचकाने नेता का लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होना क्या देश का दुर्भाग्य नहीं है? राहुल गांधी को गंभीर आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। राहुल गांधी अपने आधे-अधूरे, तथ्यहीन एवं विध्वंसात्मक बयानों को लेकर निरन्तर चर्चा में रहते हैं। उनके बयान हास्यास्पद होने के साथ उद्देश्यहीन एवं उच्छृंखल भी होते हैं। राहुल ने पहले भी बातों-बातों में यह कहा था कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है। वह देश के प्रमुख विपक्षी दल के नेता हैं। सरकार की नीतियों से नाराज होना, सरकार के कदमों पर सवाल उठाना उनके लिए जरूरी है। राजनीतिक रूप से यह उनका कर्तव्य भी है। लेकिन चीन के साथ उनकी सहानुभूति अनेक प्रश्नों को खड़ा करती है। ऐसे ही सवालों में आज तक इस सवाल का जवाब भी नहीं मिला कि आखिर राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से चंदा लेने की जरूरत क्यों पड़ी? वह यह नहीं बताते कि 2008 में अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान सोनिया गांधी और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से समझौता क्यों किया था? इतना ही नहीं, जब राहुल गांधी राफेल विमान सौदे में कथित दलाली खोज लाए थे, तो यहां तक कह गए थे कि खुद फ्रांस के राष्ट्रपति ने उन्हें बताया था कि दोनों देशों में ऐसा कोई समझौता नहीं, जो राफेल विमान की कीमत बताने से रोकता हो। उनके इस झूठ का खंडन फ्रांस की सरकार को करना पड़ा था। डोकलाम विवाद के समय वह भारतीय विदेश मंत्रालय को सूचित किए बिना किस तरह चीनी राजदूत से मुलाकात करने चले गए थे। जब इस मुलाकात की बात सार्वजनिक हो गई तो उन्होंने यह विचित्र दावा किया कि वह वस्तुस्थिति जानने के लिए चीनी राजदूत से मिले थे। क्या इससे अधिक गैरजिम्मेदाराना हरकत और कोई हो सकती है?राहुल गांधी के गैरजिम्मेदाराना बयानों से यही पता चलता है कि उन्हें न तो प्रधानमंत्री की बातों पर यकीन है, न रक्षा मंत्री की और न ही विदेश मंत्री की। यह भी स्पष्ट है कि उन्हें शीर्ष सैन्य अधिकारियों पर भी भरोसा नहीं। ध्यान रहे, वह सर्जिकल और एयर स्ट्राइक पर भी बतूके सवाल खड़े कर चुके हैं। उनकी

Feb 5, 2025 - 13:37
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राहुल गांधी की देश-विरोधी बचकानी राजनीति
राहुल गांधी की देश-विरोधी बचकानी राजनीति

राहुल गांधी की देश-विरोधी बचकानी राजनीति

Netaa Nagari

लेखिका: सुमिता शर्मा, टीम नेतानगरी

परिचय

भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का नाम एक ऐसा नाम है जिसके साथ 'विरोधी' शब्द अक्सर जुड़ जाता है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की राजनीति पर बहुत से सवाल उठते हैं। क्या उनकी राजनीति वास्तव में देश-विरोधी है? क्या उनके बेतुके बयान देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाते हैं? आइए, इस लेख में राहुल गांधी की राजनीति की बारीकी से जांच करें।

राहुल गांधी का राजनीतिक सफर

राहुल गांधी ने 2004 में आम चुनावों से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। पहले से ही एक नामचीन परिवार से आने के कारण, उनके पास एक दीर्घकालिक राजनीतिक विरासत थी। परंतु, समय के साथ उनकी बहुत सी बातें और कार्यों पर आपत्ति उठी।

बेतुके बयान और उनकी प्रतिक्रिया

राहुल गांधी के कई बयान ऐसे रहे हैं जिन्होंने न केवल विपक्ष बल्कि आम जनता को भी चौंका दिया है। उनके बयानों की भाषा और विचारधारा को कई लोगों ने नकारात्मक रूप में लिया है। उदाहरण स्वरूप, "Modi को एयरपोर्ट पर नहीं देखना चाहता" जैसे बयान अक्सर चर्चा का विषय बन जाते हैं। इस प्रकार के बेतुके बयान क्या देश के नागरिकों के मन में संदेह पैदा नहीं करते?

देश की एकता पर प्रभाव

राजनीति का मुख्य उद्देश्य देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना होता है। परंतु, राहुल गांधी की टिप्पणी और उनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि वह इस दिशा में सोचने में असफल रहे हैं। उन्हें एक नेता के तौर पर देश की भावनाओं को समझना चाहिए और अपने विचारों को थोड़ा सावधानीपूर्वक प्रस्तुत करना चाहिए।

विपक्ष का हमला

राहुल गांधी की राजनीति पर विपक्ष का हमला भी तेज हो गया है। बीजेपी से लेकर अन्य राजनीतिक दलों तक, उनके बेतुके बयानों का उपयोग किया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि उनके बयानों के चलते कांग्रेस को कई बार बचाव में आना पड़ा है।

निष्कर्ष

हालांकि राहुल गांधी को राजनीति करने का पूरा हक है, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि उनकी बातें और व्यवहार देश के प्रति जिम्मेदारी से भरे होने चाहिए। देश में असहमति और संवाद आवश्यक हैं, लेकिन एक सशक्त लोकतंत्र में, विचारों की प्रस्तुति में भी उचितता होनी चाहिए। इस प्रकार की राजनीति से केवल एकता में कमी आएगी।

इस लेख के माध्यम से हमने राहुल गांधी की राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण किया है। आगे उन पर चल रही चर्चाओं और उनके प्रभाव को देखने का प्रयास करेंगे।

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