वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि नहीं चेते तो अंजाम और भी बुरे होंगे!
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि हमारा प्रशासन समय रहते ही नहीं चेता तो आने वाले दिनों में अंजाम और भी बुरे होंगे, इतिहास इसी बात की चुगली कर रहा है! यह नसीहत क्रूर वक्त हमें बार-बार दे रहा है, लेकिन हमलोग ऐसे घिसे पिटे आदर्शवादी हैं कि उसे समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं| इसलिए आज मैं इतिहास की अंगड़ाई में सुलगते हुए वर्तमान के कुछ कटु सत्य को उद्घाटित कर रहा हूँ ताकि हमारे राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की कुम्भकर्णी निंद्रा टूटे और वो विधि-व्यवस्था के लिहाज से अपने मौलिक कर्तव्य न भूलें। इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है, लेकिन पहले मुस्लिम आक्रान्ताओं ने और फिर ब्रिटिश नौकरशाहों ने अपने-अपने प्रशासनिक स्वार्थ की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसी-ऐसी अव्यवहारिक नीतियों को क़ानूनी अमली जामा पहनाया, जिससे हिन्दू समाज जाति और क्षेत्र के नाम पर बिखर गया और कभी मुस्लिम अधिकारी तो कभी ईसाई अधिकारी और उनके पिट्ठू लोग हिन्दुओं पर हावी होते चले गए। इसी कड़ी में सांप्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय हिंसा को अघोषित प्रशासनिक एजेंडे के तौर पर बढ़ावा दिया गया। इसके अलावा, कभी प्रशासनिक उदासीनता तो कभी पक्षपाती दृष्टिकोण अपनाते हुए संगठित अपराध को बढ़ावा दिया गया, जिससे विधि व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गई।इसे भी पढ़ें: Chai Par Sameeksha: संसद से पारित कानून को कैसे नहीं मानेगा कोई CM, क्या Mamata संविधान से ऊपर हैं?इसी स्थिति से निजात पाने के लिए देश में आजादी की लड़ाई तेज हुई और साम्पदायिक विभाजन तक की नौबत आई| इस दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी खूब हुए। लेकिन भारत के गाँधी-नेहरु जैसे अव्यवहारिक आदर्शवादी राजनेताओं ने आजाद भारत में हालत बदलने के उलट उन्हीं घिसे-पिटे कानूनों को भारतीयों पर थोप दिया, जो आज तक अशांति का सबब बन चुकी हैं। पहले कांग्रेसियों, फिर समाजवादियों और अब राष्ट्रवादियों ने ढोंगी धर्मनिरपेक्षता की तो खूब बातें कीं, लेकिन अपने कुत्सित जातीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक एजेंडे से आगे की कभी नहीं सोच पाए।मसलन, बहुमत की आड़ में शांतिप्रिय सत्ता परिवर्तन भी सुनिश्चित हुआ, लेकिन विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, खबरपालिका और समाजपालिका से जुड़े लोग मुगलिया और ब्रितानी प्रशासनिक लापरवाहियों से कोई सबक नहीं सीख पाए। सबों ने उस ‘निर्जीव भारतीय संविधान’ का महिमा मंडन किया और कर रहे हैं जिसने पदासीन लोगों को वेतन-भत्ते-पेंशन और देशवासियों से लूट-खसोट की तो गारंटी दी, लेकिन आमलोगों के सुख-शांति में खलल डालने वालों के खिलाफ कभी सख्ती नहीं दिखाई। इस नजरिए से संसद और विधान मंडलों ने प्रभावकारी कानून नहीं बनाए और न ही न्यायपालिका ने इस प्रशासनिक प्रवृति पर कभी सवाल उठाए।हद तो यह कि न्याय के नाम पर मामलों को वर्षों तक लटकाने वाली न्यायपालिका, नेताओं के इशारों पर उलटे-सीधे कार्य करने की अभ्यस्त हो चली कार्यपालिका और नेताओं-कारोबारियों की अघोषित सांठगांठ से जहाँ सत्ताधारी जमात मौज में रहता आया है, वहीं आम आदमी सुपोषण योग्य भोजन, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधा, जन-सुरक्षा के लिए मोहताज है। एक ओर देश के अमनपसंद आमलोग जहाँ रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सम्मान की प्राप्ति के लिए आरक्षण को अचूक हथियार समझ बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर 1947 में पाकिस्तान और 1972 में बंगलादेश लेने वालों के वंशज ब्रेक के बाद भारतीय भूभाग पर सांप्रदायिक तांडव मचा रहे हैं और नेताओं की नीतिगत लापरवाहियों से हमारा सिविल और पुलिस प्रशासन असहाय बना रहता है।हैरत की बात है कि कभी ये लोग दलित-मुस्लिम समीकरण तैयार करवाते हैं तो कभी मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को फंडिंग करवाते हैं। वहीं इसी की आड़ में अभिजात्य मुसलमान विदेशों से हवाला के जरिए फंडिंग लेकर देश में पाकिस्तान-बांग्लादेश के ही नहीं बल्कि अरब देशों के हमदर्द पैदा करते हैं। इनकी नापाक मंशा जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे हालत पूरे देश में पैदा करने की है, जिसकी झलक गाहे-बगाहे दिखाते रहते हैं। यदि गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत तक के ब्रेक के बाद होने वाले सांप्रदायिक दंगों की बात छोड़ भी दी जाए तो अयोध्या रामजन्म भूमि आंदोलन, फिर सीएए और अब वक्फ कानून की आड़ में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर या फिर चीन-अमेरिका-इंग्लैंड से शह प्राप्त अन्य मुस्लिम देशों के इशारे पर भारत में जो अशांति फैलाते हैं, इसका ताजातरीन उदाहरण पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद इलाका है, जो इन दिनों इस्लामिक उत्पात से जल रहा है।दरअसल वक्फ कानून में संशोधन के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जो हिंसा भड़क उठी है, उससे केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाओं की आशंका जताई है। इसके दृष्टिगत वह लगातार सतर्कता बरत रही है। यह बात दीगर है कि अभी तक अन्य राज्यों से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है। केंद्र सरकार के मुताबिक, वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की अधिसूचना के मद्देनजर अभी तक अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों से किसी भी सांप्रदायिक स्थिति की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय कोई जोखिम नहीं उठा रहा है। केंद्र बंगाल के साथ-साथ अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है, जहां वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों की खबरें आई हैं। इसका उद्देश्य सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले किसी भी कारक की पहचान करना और संबंधित राज्य सरकारों से संपर्क करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें शुरू में ही समाप्त कर दिया जाए।बताया जाता है कि यदि राज्यों से मांग की जाती है, तो उन्हें बिना किसी देरी के केंद्रीय बल मुहैया कराए जाएंगे, ताकि ऐसी सांप्रदायिक हिंसा को रोका जा सके। इसी उद्देश्य से मुर्शिदाबाद में भी, पश्चिम बंगाल के डीजीपी राजीव कुमार ने हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा किया और अदालत के निर्देश पर प

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि नहीं चेते तो अंजाम और भी बुरे होंगे!
Netaa Nagari
लेखक: साक्षी शर्मा, टीम नेत्रा नगरी
परिचय
वक्फ संशोधन कानून को लेकर देश भर में जारी विरोध प्रदर्शन एक बार फिर से चर्चा में है। हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने इस मुद्दे को और भी घातक रूप दे दिया है। संगठन और राजनीतिक दल इस हिंसा को सुनियोजित बताते हुए इसे कानून के प्रति असंतोष का परिणाम मान रहे हैं। यदि इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं।
विरोध की जड़ें
वक्फ संशोधन कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी बनाना है। हालांकि, इस कानून के खिलाफ खड़े लोगों का मानना है कि इससे उनकी धार्मिक पहचान को खतरा हो सकता है। इस पर स्वाभाविक ही भड़कने वाले आक्रोश ने अब हिंसक रूप धारण कर लिया है। यह सुनियोजित हिंसा न केवल कानून के प्रति असहमति व्यक्त करती है, बल्कि समाज में विद्वेष भी उत्पन्न कर सकती है।
सांप्रदायिक तनाव की स्थिति
हाल की घटनाओं को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है। विभिन्न धर्मों के अनुयायी एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। इस स्थिति में यदि सरकार ने तुरंत कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो यह समस्या और भी अधिक गम्भीर हो सकती है।
राजनीतिक दलों की भूमिका
विभिन्न राजनीतिक दल इस हिंसा का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ दल इसे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का एक जरिया मान रहे हैं। उनका कहना है कि इससे न केवल कानून का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि यह देश के लोकतंत्र को भी कमजोर बना रहा है।
जनता की जिम्मेदारी
वहीं, जनता को भी इस स्थिति में जागरूक रहने की जरूरत है। उन्हें जरूरत है कि वे इस तरह की हिंसा में न फंसे। ऐसा किसी के भड़काने पर ना किया जाए क्योंकि इससे सिर्फ अराजकता बढ़ेगी। हमें चाहिए कि सभी एक साथ मिलकर इस स्थिति का सामना करें, और हिंसा के बजाय संवाद का मार्ग अपनाएं।
समापन
इस प्रकार, वक्फ संशोधन कानून को लेकर हो रही हिंसा एक गंभीर मुद्दा है जिसे तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है। इसे नजरअंदाज करने पर परिणाम और भी बुरे हो सकते हैं। समस्त समाज को एकजुट होकर इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है ताकि हम एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें।
अंत में, नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस मुद्दे पर चुप्पी साधने के बजाय आवाज उठानी चाहिए। केवल इस तरह ही हम एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना कर सकेंगे।
Keywords
Waqf Amendment Act, communal violence, planned violence, societal unity, political parties response, public awareness, religious rights, social harmonyWhat's Your Reaction?






