बेरोजगारी, महंगाई या विकास, दिल्ली की जनता ने किन मुद्दों पर डाला अपना वोट?

Delhi Election Result 2025: वे कौन से अहम मुद्दे रहे हैं जिन्होंने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सत्ता पलट दी और इसके बड़े नेताओं को वोट के लिए तरसा दिया?. क्या वजह रही कि 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई? एक सर्वे एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार यहां समझने की कोशिश करते हैं.  इंडियन एक्सप्रेस अपनी रिपोर्ट में लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के हवाले से बताया कि दिल्ली में बेरोजगारी, स्वच्छता, महंगाई और भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दे रहे लेकिन साथ ही शासन और विकास भी ऐसे मुद्दे बने जिसने मतदाताओं के फैसलों को प्रभावित किया. चुनाव के नतीजों ने यह दिखाया है कि उन्होंने उस पार्टी को वोट दिया जिन्होंने इन मुद्दों पर चुनाव प्रचार में प्रभावी रूप से बात की थी. सर्वे के मुताबिक 20 प्रतिशत लोगों के लिए बेरोजगारी बड़ा मुद्दा था, तो 15 प्रतिशत के लिए स्वच्छता और 11 प्रतिशत के लिए विकास अहम था. वहीं 10 प्रतिशत बढ़ती महंगाई से नाराज दिखे. सात प्रतिशत वोटर के लिए भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था. आम आदमी पार्टी भले ही यह दिखाने की कोशिश करती रही कि उसने सफलतापूर्वक पेयजल पहुंचाया है लेकिन दिल्ली के7 प्रतिशत  वोटरों के लिए यह बड़ी चिंता का विषय़ रहा है. जबकि 4 प्रतिशत लोग सरकार में बदलाव चाहते थे.  आप ने अपने शिक्षा और कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार खूब किया लेकिन जनता का ध्यान नहीं खींच पाई और केवल 3 प्रतिशत लोगों के फैसले को यह प्रभावित कर पाई. 4 प्रतिशत के लिए महिला सुरक्षा, 3 प्रतिशत के लिए जलभराव बड़ा मुद्दा था.  ये चुनावी मुद्दे कितने अहम स्वच्छता - 92 प्रतिशत के लिए महिला सुरक्षा- 87 प्रतिशत पेयजल - 86 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा - 85 प्रतिशत वायु प्रदूषण -85 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा - 85 प्रतिशत यमुना की सफाई - 81 प्रतिशत धार्मिक सुरक्षा - 61 प्रतिशत किस मुद्दे पर कौन सी पार्टी का मिला ज्यादा वोट? बेरोजगारी के मुद्दे पर 35 प्रतिशत ने बीजेपी और 55  प्रतिशत ने आप को वोट दिया. स्वच्छता के लिए 46 प्रतिशत ने बीजेपी और 43 प्रतिशत ने आप को वोट दिया. विकास की कमी के मुद्दे पर 59 फीसदी ने बीजेपी और 33 फीसदी ने आप, महंगाई के मुद्दे पर 41 फीसदी ने बीजेपी और 52 फीसदी ने आप, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 76 फीसदी ने बीजेपी और 18 फीसदी ने आप को वोट दिया. जबकि कांग्रेस को इन सभी मुद्दों पर 4 से लेकर 8 प्रतिशत तक वोट मिले. ये भी पढ़ें- दिल्ली में कौन बनेगा मुख्यमंत्री? BJP सांसद ने बता दिया सबसे बड़ा 'सीक्रेट'

Feb 10, 2025 - 22:37
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बेरोजगारी, महंगाई या विकास, दिल्ली की जनता ने किन मुद्दों पर डाला अपना वोट?
बेरोजगारी, महंगाई या विकास, दिल्ली की जनता ने किन मुद्दों पर डाला अपना वोट?

बेरोजगारी, महंगाई या विकास, दिल्ली की जनता ने किन मुद्दों पर डाला अपना वोट?

नेता नगरी, नई दिल्ली: दिल्ली में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों ने एक नई बहस को जन्म दिया है। क्या दिल्ली की जनता ने बेरोजगारी, महंगाई, या विकास के मुद्दों पर अपने वोट डाले? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हमें उन प्रमुख मुद्दों पर गौर करना होगा जो आम दिल्लीवासी की जिंदगी को प्रभावित करते हैं।

बेरोजगारी का सामना

बेरोजगारी ने पिछले कुछ वर्षों में युवा वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित किया है। दिल्ली की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से ने इस समस्या को प्राथमिकता देते हुए अपने वोट दिए। रोजगार सृजन के वादे, सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी, और छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देने की योजनाएं प्रमुख थीं। दिल्ली के युवा मतदाता ने यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें स्थायी और गुणवत्तापूर्ण रोजगार की आवश्यकता है।

महंगाई की मार

महंगाई का मुद्दा भी चुनावी रैलियों में छाया रहा। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों और दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की महंगाई ने लोगों के जीने के साधनों में बाधा डाली है। मतदाताओं ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की, और इस समस्या का समाधान चाहा। कई राजनैतिक दलों ने महंगाई कम करने के लिए ठोस कदम उठाने के वादे किए, जिससे यह चुनावी मुद्दा बन गया।

विकास की चाह

जहां बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण थे, वहीं विकास की चर्चा भी पीछे नहीं रही। दिल्ली के नागरिकों ने एक समग्र विकास का सपना देखा है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और इन्फ्रास्ट्रक्चर की बेहतरी के सवाल पर लोगों का ध्यान केंद्रित रहा। राजनैतिक दलों ने विकास योजनाओं को प्रमुखता दी, और जनता ने इन वादों को सुनकर वोटिंग की।

निष्कर्ष

दिल्ली विधानसभा चुनावों में जनता ने अपने वोट को उन मुद्दों पर केन्द्रित किया जो उनकी जिंदगी को सीधे प्रभावित करते थे। बेरोजगारी, महंगाई और विकास को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे अपने भविष्य को लेकर गंभीर हैं। अब देखना यह है कि चुनाव में जीतने वाले दल अपने वादों को किस हद तक पूरा करते हैं।

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