दिल्ली चुनाव में महिला वोटरों की उदासीनता, फ्रीबीज के खिलाफ आधी आबादी
अरविंद केजरीवाल ने अपने चुनावी घोषणापत्र में एक बार फिर फ्रीबीज की झड़ी लगाई है। कितने सफल होंगे ये तो आने वाला समय ही तय करेगा। पर, अब इतना जरूर है, लोग फ्री की सौगातों से ऊबने लगे है। श्रमबल को तरजीह देने वाली आधी आबादी, भी अब मुफ्त की चुनावी रेबड़ियों पर ध्यान नहीं देगी। इसी कारण जारी दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार में महिला वोटरों की उदासीनता बड़े पैमाने पर दिखने लगी है। पांच फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के कूदे कुल 699 उम्मीदवारों में 96 महिला कैंडिडेट भी हैं। पर, वैसा उत्साह नहीं दिखता, जितना पिछले चुनावों में दिखा था। जबकि, प्रमुख दल आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस तीनों महिला वोटरों को रिझाने में मुफत के वादों की झड़ी लगाए हुए हैं। कोई 2100 रूपए देने का वादा कर रहा है तो 2500 और 3000 तक भी? फ्री बस सेवा सभी के एजेंड़ों में हैं। अब, सवाल यहां ये उठता है, इतनेलुभावने वादों के बाद भी महिला वोटरों में उत्साह क्यों नहीं है? इस डरावनी तस्वीर से न सिर्फ सफेदपोश परेशान हैं, बल्कि चुनाव आयोग भी चिंतित है। चुनावी समर में लगातार तेजी से गिरता वोटिग प्रतिशत चुनावी प्रक्रिया के अलावा लोकतंत्र के लिए भी घातक है। जबकि, बीते 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं का वोटिंग स्कोर पुरुषों के मुकाबले अधिक था।शायद, महिलाएं भी अब समझ चुकी हैं कि फ्री के नाम पर राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं? महिलाएं बुनियादी मुद्दों की गंभीरताओं को अच्छे से समझती हैं। राज्य तरक्की करे उसमें उनकी भागीदारी हो, को ध्यान में रखकर ज्यादातर महिलाएं मुफ्त की रेवड़ियां से तौबा करना शुरू कर दिया है। इस संबंध में एक ताजा और बेहतरीन उदाहरण सामने है। पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में जब नीतीश कुमार ने शराब बंदी का ऐलान करके चुनाव लड़ा, तो महिलाओं ने बढ़चढ कर हिस्सा लिया और उन्हें सत्ता पर बैठा दिया। देश और सामाजिक उद्वार वाले मुद्दों के प्रति महिलाएं कितनी सजग हैं, इससे खूबशूरत उदाहरण दूसरा कोई नहीं हो सकता। केंद्रीय स्तर पर जब से आत्मनिर्भरता की अलख चहुंओर जगी है। तब, से महिलाएं भी श्रमबल को ज्यादा तवज्जो देनी लगी हैं। ये अच्छी बात है, इससे राजनीतिक दल अपनी हरकतों से बाज आएंगे। शायद यही कारण है दिल्ली में महिलाओं की चुनाव के प्रति उदासीनता है। क्योंकि, सभी दल मुद्दों-समस्याओं को छोड़कर फ्री की सेल लगाकर बैठे हैं। ऐसे दलों का पुरजोर विरोध होना ही चाहिए। विरोध से ही सरकारें टैक्सपेयर्स का पैसा बर्बाद करने से पीछे हटेंगी। इसे भी पढ़ें: दिल्ली में इस बार जनता के लिए घोषणापत्र नहीं, लॉटरी पेश कर रहे हैं राजनीतिक दलमहिलाओं की उदासीनता के बूते ही दिल्ली चुनाव इस बार नई तस्वीर पेश करेगा। मौजूदा सरकार की शराब पॉलिसी को लेकर महिलाएं खासी नाराज हैं। सरकार की नई शराब नीति में ‘एक पर एक फ्री बोतल’ पॉलिसी ने कईयों के घर बर्बाद कर दिए। जो नहीं पीता था, वो भी फ्री के चक्कर में पीने लगा। मौजूदा सरकार अगर सत्ता से बेदखल होती है, तो शराब ऑफर उसका मुख्य कारण होगा। वैसे, कम होती वोटिंग विधा की तल्ख सच्चाई से चुनाव और सियासी दल अच्छे से वाकिफ हैं। लेकिन उस हकीकत को दोनों कभी उजागर नहीं करना चाहेंगे। हकीकत ये है, चुनावों में अगर ग्रामीण, मध्यमवर्ग और महिलाएं हिस्सा न लें? तो वोटिंग प्रतिशत और धरातल में घुस जाए। वोटिंग से शिक्षित वर्ग, वर्किंग लोग लगातार दूरियां बनाने लगे हैं। मतदान के दिन वह छुट्टियां मनाते हैं, बा-मुश्किल ही घरों से उस दिन बाहर निकलते हैं। दिल्ली में इस बार जितने नए वोटर जुड़ें हैं उनमें पुरूषों के मुकाबले महिलाएं मतदाता काफी पीछे हैं। ये स्थिति तब है, जब दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की कोशिश कर रहे तीनों प्रमुख दलों के घोषणाओं में महिलाओं से जुड़ी योजनाओं की मूसलाधार भरमारें हैं। आप, भाजपा व कांग्रेस तीनों दल आधी आबादी को अपने पाले में करने की भरसक कोशिशें में हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी अंतिम मतदाता सूची पर अगर गौर करें, तो पुरुष मतदाताओं से महिलाओं की संख्या काफी कम है। इस बार दिल्ली में कुल 1,55,24,858 मतदाता अपने मतों का 5 फरवरी को इस्तेमाल करेंगे जिनमें पुरुषों की संख्या 85,49,645 और महिलाओं की संख्या 71,73,952 है। बीच में अंतर अच्छा खासा है। हालांकि, दिल्ली चुनाव आयोग ने मदतान बढ़ाने को लेकर एक नायाब तरीका अपनाया है। उन्होंने दिल्ली के तकरीबन स्कूलों को आदेशित किया है कि वह छात्रों के जरिए उनके माता-पिता व अन्य परिवारजनों से वोटिंग करने को लेकर लिखित में संकल्पित करवाएं। इसके लिए बाकायदा छात्रों से एक संकल्प पत्र दिया गया हैं जिस पर उनके अभिभावक वोट देने की कसम को लिखित हस्ताक्षर के साथ स्कूलों में जमा करवा रहे है। हैरत यही है कि नौबत ऐसी आ गई कि वोटिंग ब़ढ़ाने के लिए सरकारी सिस्टम ने स्कूलों और छात्र-छात्रों का सहारा लेना शुरू कर दिया है।बहरहाल, दिल्ली चुनाव में दो धड़े ऐसे हैं जो सियासी दलों की इस बार नैया पार लगा सकते हैं। अव्वल, महिला वोटर और दूसरे पूर्वांचल से वास्ता रखने वाले लोग? दिल्ली में प्रत्येक 10 वोटरों में तीसरा वोटर पूर्वांचली है। अगर इन दोनों की उदासनीता चुनाव पर हावी रही, तो वोटिंग प्रतिशत और नीचे गिर जाएगा। पिछले दिनों कुछ राज्यों में विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव हुए जिनमें दिल्ली से सटी गाजियाबाद सीट पर मात्र 33 फीसदी ही मतदान हुआ, जिसे देखकर आयोग के ही नहीं, नेताओं के कान खड़े हो गए। जबकि, गाजियाबाद सीट पर महिला वोटरों की संख्या बहुत अच्छी है। सवाल यहां एक ये भी उठने लगा है कि क्या महिलाएं भी मुफ्त रेवड़ियां से परहेज करने लगी हैं। अगर ऐसा है तो सुखद तस्वीर कही जाएगी। निश्चित रूप से देश की शिक्षित महिलाएं अब अपने श्रमबल को तरजीह देने लगी हैं। उन्हें देखकर ग्रामीण आबादी भी सजग हुई है। वोटिंग प्रक्रियाओं में महिलाओं की चुप्पी क्या कहती है, उसे समझना चुनाव आयोग

दिल्ली चुनाव में महिला वोटरों की उदासीनता, फ्रीबीज के खिलाफ आधी आबादी
नेटाअ नगरी - दिल्ली चुनाव 2023 की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं, लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह संकेत दिया है कि महिला वोटरों में उदासीनता बढ़ती जा रही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें फ्रीबीज का वितरण और आधी आबादी की आवाज़ को नजरअंदाज करना शामिल है। यह मुद्दा दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण बन गया है।
महिला वोटरों की स्थिति
दिल्ली में विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी हमेशा महत्वपूर्ण रही है। लेकिन हाल के चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार, महिला वोटरों में अपनी आवाज़ सुनाने को लेकर नाखुशी और उदासीनता देखी जा रही है। महिलाओं का कहना है कि उन्हें चुनावी वादों और फ्रीबीज के बजाय अपने अधिकारों और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
फ्रीबीज की राजनीति
राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान फ्रीबीज का वितरण एक आम प्रथा बन चुका है, लेकिन क्या यह वास्तव में महिलाओं के लिए फायदेमंद है? कई महिला वोटरों का मानना है कि फ्रीबीज की जगह उन्हें सुविधाएँ और अधिकार मिलना ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसीलिए, यह सही समय है कि मतदाता यह सोचें कि क्या वे केवल फ्रीबीज के लिए वोट कर रहे हैं या फिर अपने भविष्य के लिए।
महिलाओं की आवाज़
महिलाओं की आवाज़ को हमेशा सामूहिक रूप में उठाना चाहिए और चुनावों में उनकी भागीदारी के महत्व को समझना चाहिए। उन्हें अपनी बातें कहने का अवसर मिलने पर उनका उदासीनता का भाव कम होगा। समाज में उनकी भूमिका, उनकी समस्याएँ और उनके अधिकार, सभी को चुनावों में एक महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए।
वोटिंग के प्रति जागरूकता
दिल्ली की महिलाओं में चुनावों में भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि फ्रीबीज देने से ज्यादा जरूरी है कि वे महिलाओं के मुद्दों को समझें और प्राथमिकता दें। इस दिशा में प्रयास शुरू करने की जरूरत है ताकि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकें।
निष्कर्ष
दिल्ली चुनाव में महिला वोटरों की उदासीनता एक चिंता का विषय है। अगर राजनीतिक दलों ने इससे सही से निपटा नहीं किया, तो यह उनकी हार का कारण बन सकती है। महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए और फ्रीबीज के पीछे छिपी राजनीति से खुद को बचाना चाहिए। यह समय है विचार करने का, सही वोट देने का, और अपने भविष्य के लिए प्रयास करने का।
यदि आप और अधिक अपडेट चाहते हैं, तो netaanagari.com पर जाएं।
Keywords
Delhi elections, women voters, freebie politics, voter apathy, women's rights, election awareness, political participation, women's voice.What's Your Reaction?






