MP News: कर्ज लेकर कराया था पोती का ऑपरेशन, आर्थिक सहायता की मांग नहीं हुई पूरी तो उठाया ये कदम
MP News: मध्य प्रदेश में समस्याओं को खत्म करने के लिए राज्य सरकार हर मंगलवार जनसुनवाई करती है. जिसके माध्यम से लोगों की समस्या को सुनकर उनका निवारण किया जाए. लेकिन जनसुनवाई में बार बार-बार आवेदन करने के बाद भी जब सुनवाई नहीं हुई तो एक बुजुर्ग ने नाराज होकर अपना आवेदन फाड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया. इतना ही नहीं बुजुर्ग इतने नाराज दिखे की उन्होंने प्रशासन पर गंभीर आरोप भी लगा दिए. ये पूरा मामला खंडवा में जनसुनवाई के दौरान का है. दरअसल बुजुर्ग का कहना था कि 2022 में उनकी पोती के अपेंडिक्स के दो ऑपरेशन हुए है, इसी के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता की मांग की थी, लेकिन उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही. इधर प्रशासन का कहना है कि बुजुर्ग ने 7 लाख से ज्यादा की आर्थिक सहायता की मांग की थी. राशि ज्यादा होने से उनका आवेदन CM कार्यालय भेज दिया गया था, जहां से परीक्षण के बाद बुजुर्ग का आवेदन निरस्त कर दिया, बस इसी बात से वो नाराज हो गए. 'कर्ज लेकर करवाया था इलाज' बता दें कि बुजुर्ग कैलाश चौबे खंडवा के जसवाड़ी रोड के रहने वाले हैं. उनका कहना है कि पोती के इलाज के लिए उन्होंने लोगों से कर्ज लेकर इलाज कराया था. उन्हें उम्मीद थी सरकारी मदद मिलेगी. उन्होंने सांसद से भी गुहार लगाई, सांसद से सहायता के लिए पत्र भी लिख कर भिजवाए थे. लेकिन आज कलेक्टर ने कह दिया कि सभी प्रकरण स्वीकृत नहीं होते. बुजुर्ग ने कहा, "जब मैनें अपनी पोती का इलाज करवाया था उस समय सभी जगह आयुष्मान की सुविधा नहीं थी, लेकिन सरकारें बेहतर इलाज का दावा करती है पर ये दावे खोखले हैं." वे लगातार आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग करते रहे. वहीं उनका आवेदन किस कारण से निरस्त हुआ ये भी कोई नहीं बता रहा. Madhya Pradesh News: अपनी मांग पूरी नहीं होने से नाराज बुजुर्ग कैलाश चौबे का कहना है कि वे मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान का लेटर भोपाल लेकर आते थे. लेकिन भोपाल से भी उन्हें भगा दिया गया. उनके आवेदन को किसी ने कोई वैल्यू नहीं दी. कलेक्टर ने भी मदद नहीं की. बुजुर्ग ने कहा, "मैंने कलेक्टर साहब का हाथ पकड़कर थोड़ी कहा था कि 7.50 लाख रुपये का अमाउंट लिख दीजिए. अमाउंट तो लग गया. पीएम मोदी भी कहते है कि 5 लाख मिलेंगे. मुझे एक रुपया भी नहीं मिला. आज कलेक्टर साहब बोले कुछ नहीं कर सकता तो मैं चला आया." 'CM स्तर से निरस्त होने के बाद जिला स्तर भी असमर्थ' इधर अपर कलेक्टर के आर बड़ोले ने बताया कि आज जनसुनवाई में जसवाड़ी गांव के एक बुजुर्ग आए थे. उनके द्वारा आर्थिक सहायता राशि की मांग की गई थी. जिसको लेकर उन्होंने पहले भी आवेदन दिया था, जो की सात लाख पचास हजार रु की आर्थिक सहायता को लेकर था. उस आवेदन को यहां से CM कार्यालय के लिए भेज दिया गया, लेकिन इनकी मांगी गई सहायता राशि बड़ी थी, जिसका परीक्षण करने के दौरान वहां से ही इनका आवेदन निरस्त कर दिया गया. जब उन्हें यहां से इसकी जानकारी दी गई, तो उसे सुनकर वे आक्रोशित हो गए थे. चूंकि, उनका आवेदन CM कार्यालय के स्तर से निरस्त हुआ है, इसलिए उस पर अब जिला स्तर से किसी तरह की कार्रवाई किया जाना भी संभव नहीं. हालांकि शायद उनको पहले से इसकी जानकारी नहीं थी, इसलिए ही वे आक्रोशित हुए और अपने घर वापस चले गए. ये भी पढ़ें: ग्वालियर के व्यापार मेले में लगी आग, कई दुकानें जलकर राख, व्यापारियों को लाखों का नुकसान

MP News: कर्ज लेकर कराया था पोती का ऑपरेशन, आर्थिक सहायता की मांग नहीं हुई पूरी तो उठाया ये कदम
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लेखक: भूमिका शर्मा, टीम नेटानगरी
परिचय
मध्य प्रदेश से आई एक दिल दहला देने वाली खबर ने सभी का ध्यान खींचा है। एक दादा ने अपनी प्यारी पोती के जीवन को बचाने के लिए बिना सोचे समझे कर्ज लिया और उसका ऑपरेशन कराया। लेकिन जब आर्थिक सहायता की मांग पूरी नहीं हुई, तो उन्होंने ऐसा कदम उठाया जिसने सभी को चौंका दिया। संक्रमित होते इस संकट के बीच, यह कहानी हमें मानवता, रिश्तों की मजबूती और सरकारी मदद की जरूरत को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
परिस्थितियाँ और संकट
मध्य प्रदेश में, एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी पोती के मेडिकल इमरजेंसी के दौरान बिना सोचे समझे कर्ज लिया। यह कर्ज ना सिर्फ उसके आत्म-सम्मान के लिए चुनौती था बल्कि यह उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी भारी पड़ गया। पोती का नाम अंशिका है, जो केवल तीन साल की है और उसे एक गंभीर सर्जरी की आवश्यकता थी। दादा ने अपने जीवन की बचत और कर्ज लेकर उसका इलाज कराने का फैसला किया।
आर्थिक सहायता की मांग
ऑपरेशन के बाद, दादा ने स्थानीय प्रशासन से आर्थिक सहायता की मांग की। उन्होंने कई बार इस विषय में आवेदन किया। लेकिन अफसोस, कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। आर्थिक सहायता की अस्वीकृति ने उन्हें और निराश कर दिया। जब कोई मदद नहीं मिली, तो दादा ने सोचा कि कुछ करना होगा। उन्होंने अपने कर्ज का बोझ उठाने का फैसला किया, जिसे चुकाना हर दिन मुश्किल होता जा रहा था।
अंतिम कदम
दादा की निराशा ने उन्हें एक अनपेक्षित कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने आप को आग के हवाले करने की कोशिश की, जिससे पूरे गांव में खलबली मच गई। यह घटना हमें एक महत्वपूर्ण सवाल से रूबरू कराती है - क्या हमारे समाज में ऐसे अधिकारी हैं जो जरूरतमंदों की मदद करने में तत्पर रहें? क्या हमारे पास ऐसी योजनाएं हैं जो सच में काम करती हैं?
समाज की जिम्मेदारी
इस tragic घटना ने हमें झकझोर दिया है और हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमें अपने आसपास के लोगों की मदद कैसे करनी चाहिए। क्या ये केवल सरकारी योजना का मामला है या हमें भी सक्रियता से आगे आकर जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए? सामाजिक संगठन, समाजसेवी और सामुदायिक सहायता नेटवर्क सभी को इस समस्या का सामना करने के लिए आगे आना होगा।
निष्कर्ष
यह घटना सोचने पर मजबूर करती है कि हमें न केवल एक समाज के रूप में, बल्कि एक इंसानियत के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। हमें सामाजिक और आर्थिक सहयोग की जरूरत है ताकि कोई भी व्यक्ति इस तरह की अंधेरी राह पर न जाए। हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम एकजुट होकर जरूरतमंदों के लिए खड़े हों और उनकी मदद करें।
इस तरह की घटनाएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि समाज में मदद का महत्व कितना बढ़ जाता है, खासकर संकट में पहुँचने पर। इसके साथ ही, हमें यह भी समझना होगा कि किस प्रकार की योजनाएँ वास्तव में कार्यकर्ता हैं और किसमे कुछ सुधार की आवश्यकता है।
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