बढ़ती गर्मी एवं हीट वेव से जुडे़ जीवन-संकट
भारत में इस समय गर्मी एवं हीट वेव का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, खासकर उत्तर भारत के अनेक राज्यों विशेषतः गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में अप्रैल के प्रारंभ में ही बढ़ती गर्मी एवं हीट वेव लोगों को अपनी चपेट में लेने लगी, कई शहरों में पारा 44-45 डिग्री तक चढ़ गया है। राजस्थान के बाडमेर में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है, जो चिन्ताजनक होने के साथ अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का सबब है। लगातार बढ़ती गर्मी के आंकड़े एक बार फिर जलवायु परिवर्तन के परिणामों और इसकी वजह से खड़े हुए संकट को ही दर्शा रहे हैं। अधिक तापमान पानी की गंभीर कमी का कारण बन सकता है, कृषि को प्रभावित कर सकता है और विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम का कारण बन सकता है। भीषण गर्मी एवं लू का प्रकोप लोगों की सेहत, कार्य-क्षमता और उत्पादकता पर गंभीर खतरा है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, देश का करीब 75 फीसदी कार्यबल कृषि और निर्माण क्षेत्र में गर्मी का सीधे सामना करने वाले श्रम पर निर्भर करता है। इसके मुताबिक साल 2030 तक गर्मी के प्रकोप से जुड़ी उत्पादकता में गिरावट की वजह से दुनिया भर में कुल होने वाली नौकरियों के नुकसान में अकेले भारत का योगदान करीब 43 फीसदी तक हो सकता है।इस बार बढ़ती गर्मी के पुराने सारे रेकॉर्ड तोड़ देने की चेतावनी दी जा रही हैं जो हमारे लिए चौंकाने से ज्यादा गंभीर चिंता की बात है। गुजरात एवं राजस्थन के अनेक स्थानों पर अभी से गर्मी इतनी तेज है कि कुछ ही दिनों में धरती तवे की तरह तपने लगेगी। पानी की कमी, बिजली कटौती और गर्म लू के कारण बीमारी के हालात गंभीर हो सकते हैं। इतनी तेज गर्मी में पेयजल की उपलब्धता, बिजली की आपूर्ति व ट्रिपिंग की समस्या से निजात पाना मुश्किल होगा। सवाल यह है कि इस भीषण लू या यों कहें कि हीटवेव के लिए बहुत कुछ हम, हमारी सुविधावादी जीवनशैली और हमारा विकास का नजरिया भी जिम्मेदार है। आज शहरीकरण और विकास के नाम पर प्रकृति को विकृत करने में हमने कोई कमी नहीं छोड़ी है। पेड़ों की खासतौर से छायादार पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं गांवों में हो या शहरों में आंख मींचकर कंक्रिट के जंगल खड़े करने की होड़ के दुष्परिणाम से ही गर्मी कहर बरपाती है और प्रकृति एवं पर्यावरण की विकरालता के रूप में सामने आती हैं। जल संग्रहण के परंपरागत स्रोतों को नष्ट करने में भी हमने कोई गुरेज नहीं किया। अब विकास एवं सुविधाओं और प्रकृति के बीच सामंजस्य की और ध्यान देना होगा, अन्यथा आने वाले साल और अधिक चुनौती भरे होंगे। कंक्रिट के जंगलों से लेकर हमारे दैनिक उपयोग के अधिकांश साधन एवं विकास की भ्रामक सोच तापमान को बढ़ाने वाले ही हैं।इसे भी पढ़ें: कभी अन्नदाता तो कभी आमलोगों को रुलाता टमाटरविडंबना यह है कि ग्लोबल वार्मिंग की दस्तक देने के बावजूद विकसित व संपन्न देश पर्यावरण संतुलन के प्रयास करने तथा आर्थिक सहयोग देने से बच रहे हैं। ऐसा नहीं है कि मौसम की मार से कोई विकसित व संपन्न देश बचा हो, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के क्रूर दोहन से औद्योगिक लक्ष्य पूरे करने वाले ये देश अब विकासशील देशों को नसीहत दे रहे हैं। निश्चित रूप से बढ़ता तापमान उन लोगों के लिये बेहद कष्टकारी है, जो पहले ही जीवनशैली से जुड़े रोगों एवं समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता असाध्य रोगों की वजह से चूक रही है। ऐसा ही संकट वृद्धों के लिये भी है, जो बेहतर चिकित्सा सुविधाओं व सामाजिक सुरक्षा के अभाव में जीवनयापन कर रहे हैं। वैसे एक तथ्य यह भी है कि मौसम के चरम पर आने, यानी अब चाहे बाढ़ हो, शीत लहर हो या फिर लू हो, मरने वालों में अधिकांश गरीब व कामगार तबके के लोग ही होते हैं। जिनका जीवन गर्मी में बाहर निकले बिना या काम किये बिना चल नहीं सकता। निष्कर्षतः कह सकते हैं कि उन्हें मौसम और गरीबी दोनों मारती है।प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, जमीन छोटी पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा तापमान में लगातार असंतुलन सामान्य घटना नहीं है, जिसका दायरा अब वैश्विक हो गया है। भले ही कोई इस विनाशकारी स्थिति को तात्कालिक घटना कहकर खारिज कर दे लेकिन जमीनी सच्चाई यह है की बड़े पैमाने पर ग्लेशियर्स का पिघलना और हीट वेव बहुत बड़े वैश्विक खतरें की आहट है, जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कथित विकास की बेहोशी से दुनियां को जागना पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ‘तीसरा ध्रुव’ कहे जानें वाले हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघल रहे हैं। ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, आज हिमालय से बर्फ के पिघलने की गति ‘लिटल आइस एज’ के वक्त से औसतन 10 गुना ज्यादा है। लिटल आइस एज का काल 16वीं से 19वीं सदी के बीच का था। इस दौरान बड़े पहाड़ी ग्लेशियर का विस्तार हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें, तो हिमालय के ग्लेशियर दूसरे ग्लेशियर के मुकाबले ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। विशेषज्ञों के एक अनुमान के अनुसार अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पूरी तरह से पिघलने पर पृथ्वी की ग्रेविटेशनल पावर शिफ्ट हो जाएगी। इससे पूरी दुनिया में भारी उथल पुथल देखने को मिलेगी। पृथ्वी के सभी महाद्वीप आंशिक रूप से पानी के भीतर समा जाएंगे। भारी मात्रा में जैव-विविधता को हानि पहुंचेगी। पृथ्वी पर रहने वाली हजारों प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी। पृथ्वी पर एक विनाशकारी एवं विकराल स्थिति का उद्भव होगा। इसके साथ ही दुनियां भर में करोड़ों की संख्या में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर माइग्रेट करना पड़ेगा।दुनियाभर में कूलिंग सिस्टम्स यानी एयरकंडीशन की मांग कई गुना बढ़ी है। सुविधावादी जीवनशैली एवं तथाकथित आधुनिकता ने पर्यावरण के असंतुलन को बेतहाशा बढ़ाया है। तापमान में भी साल-दर-साल बढ़ोतरी अनेक संकटों की दस्तक है। जहां तापमान ने नए रिकॉर्ड्स बनाने शुरू कर दिए हैं वहीं, भारी बारिश के कारण बाढ़ के हा

बढ़ती गर्मी एवं हीट वेव से जुडे़ जीवन-संकट
Netaa Nagari द्वारा प्रस्तुत यह लेख आपको बताता है कि कैसे तेजी से बढ़ती गर्मी और हीट वेव विभिन्न जीवन संकटों को जन्म दे रही हैं। यह लेख प्रस्तुत किया है राधिका सिंगल द्वारा, टीम Netaa Nagari।
परिचय
गर्मी का मौसम हमेशा से ही लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन इस वर्ष का गर्मी का मौसम और भी कठिनाइयों से भरा है। कई राज्यों में तेज तापमान और फैलती हीट वेव ने जीवन को संकट में डाल दिया है। यहाँ हम समझेंगे कि यह समस्या कितनी गंभीर है और इसके प्रभाव क्या हो सकते हैं।
गर्मी का बढ़ता तापमान
अधिकांश भारतीय क्षेत्रों में इस वर्ष मार्च से ही तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ने शुरू कर दिए हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों में पारा 45 डिग्री सेल्सियस के पार पहुँच गया है, जिससे सामान्य जीवन में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस हरी-भरी धरती पर तापमान के इस स्तर पर पहुँचना न केवल मानव जीवन, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरा है।
हीट वेव का प्रभाव
हीट वेव के प्रभाव में कई समस्या उत्पन्न हो रही हैं:
- स्वास्थ्य की समस्याएं: गर्मी से बीमारियाँ जैसे हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, और सांस संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
- कृषि पर प्रभाव: फसलें सूख रही हैं, जिससे अनाज की कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
- जल संकट: पानी की कमी से कई क्षेत्रों में जल आपूर्ति बाधित हो रही है।
समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
गर्मी का बढ़ता तापमान समाज और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर डाल रहा है। कामकाजी लोग कई बार स्वास्थ्य कारणों से काम पर नहीं आ पा रहे हैं। इससे उत्पादन में कमी आ रही है और अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से प्रभावित हो रही है।
समाधान और सुझाव
इस जीवन संकट का समाधान जल संरक्षण, गर्मी से बचाव के उपाय, और हरियाली को बढ़ावा देने में निहित है। लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है कि वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और सरकारी प्रयासों को समर्थन दें।
निष्कर्ष
गर्मी का यह संकट एक चेतावनी है कि हमें अपने पर्यावरण का ख्याल रखना होगा। अगर इस समस्या का समय पर समाधान नहीं किया गया, तो यह भविष्य में और भी गंभीर स्थितियों का सामना करवा सकता है।
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