दलित-ओबीसी मतदाता बनाएंगे दिल्ली में सरकार

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डालने में अब कुछ दिनों का समय ही शेष रह गया है। वहां चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर है। सभी दलों के बड़े नेता अपनी-अपनी पार्टी प्रत्याशियों को जीताने के लिए जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। पूरी दिल्ली में चुनावी चौसर बिछी हुई है। सट्टा बाजार में राजनीतिक दलों की हार-जीत के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी इसका पता तो 8 फरवरी को मतगणना के बाद ही चल पाएगा। मगर दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बड़ी कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। एक तरफ जहां सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) चौथी बार सरकार बनाने के प्रयास में लगी हुई है। वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी चाहती है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उनकी पार्टी की सरकार बने ताकि केंद्र व राज्य का झगड़ा समाप्त हो। कहने को तो दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। यहां की सरकार व मुख्यमंत्री के पास अन्य प्रदेशों की तरह पूरे अधिकार नहीं होते हैं। मगर दिल्ली का मुख्यमंत्री होना अपने आप में बड़ी बात है। दिल्ली से ही देश की सरकार चलती है। ऐसे में दिल्ली में जो सरकार बनती है उसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। इसे भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव में महिला वोटरों की उदासीनता, फ्रीबीज के खिलाफ आधी आबादीदिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार दलित, जाट व गुर्जर मतदाताओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने जा रही है। दिल्ली में 12 विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां करीबन 18 प्रतिशत दलित मतदाता है। दिल्ली की आरक्षित 12 सीटों के अलावा 18  और ऐसी विधानसभा सीटे हैं जहां दलित मतदाताओं की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में दिल्ली की 30 विधानसभा सीटों पर दलित मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। दिल्ली में बवाना, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, करोल बाग, पटेल नगर, मादीपुर, देवली, अंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, कोंडली, सीमापुरी, गोकलपुर विधानसभा सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है। इसके अलावा करीबन 15 से 20 अन्य ऐसी सीटें है जहां दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसलिए दिल्ली विधानसभा की 70 में से करीबन 30 सीटों पर दलित मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में सभी 12 आरक्षित सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने चुनाव जीता था। इसलिए आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस दलित मतदाताओं पर है। दिल्ली के अनुसूचित जाति के मतदाताओं में से 38 फीसदी जाटव और 21 फीसदी वाल्मीकि है। पिछले लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के मतदाताओं के लिए देश भर में आरक्षित 84 लोकसभा सीटों में से भाजपा मात्र 30 सीट पर ही चुनाव जीत पाई थी। इंडिया गठबंधन के भाजपा द्वारा संविधान बदलने के नारे के कारण दलित मतदाता भाजपा से छिटककर विपक्षी खेमे में चले गए थे। इसी तरह दिल्ली में भी पिछले दो विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सभी 12 सीटों पर आम आदमी पार्टी लगातार जीतती आ रही है। इसलिए अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा व कांग्रेस इस बार के चुनाव में पूरा जोर लगा रही है। भाजपा ने 12 आरक्षित सीटों के अलावा दो सामान्य सीटों मटिया महल से दीप्ति इंदौरा व बल्लीमारन से कमल बागड़ी को उम्मीदवार बनाया है। इस तरह भाजपा ने कुल 14 सीटो पर दलित  उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने भी नरेला से अनुसूचित जाति की अरुणा कुमारी को टिकट देखकर कल 13 सीटों पर दलित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। भाजपा व कांग्रेस की रणनीति है कि दलित मतदाताओं को आम आदमी पार्टी से दूर किया जाए। आम आदमी पार्टी ने 12 आरक्षित सीटों पर ही अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों को टिकट दी है।  हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बार फिर दलित मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ होने के चलते वहां भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी। इसी से उत्साहित होकर भाजपा अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता वाली सीटों पर विशेष चुनावी प्रबंधन कर चुनावी रणनीति बना रही है। दिल्ली में जाट मतदाताओं की बहुलता वाली 10 सीटों महरौली, मुंडका, रिठाला, नांगलोई, मटियाला, पालम, नरेला, विकासपुरी, नजफगढ़ व बिजवासन पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है। इस बार भाजपा आम आदमी पार्टी से इन सभी 10 सीटों को छीन कर अपनी वापसी का प्रयास कर रही है। भाजपा ने इस बार करीबन 14 टिकट जाट नेताओं को दी है। जिनमें पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा नई दिल्ली से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने चुनाव लड़ रहे हैं। वही आप सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे कैलाश गहलोत भी बीजेपी टिकट पर बिजवासन से चुनाव लड़ रहे हैं। कैलाश गहलोत के भाजपा में जाने से आप के पास कोई बड़ा जाट नेता नहीं रह गया है जो जाट मतदाताओं को आप पार्टी से जोड़े रख सके। जबकि भाजपा ने पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को अरविंद केजरीवाल के सामने खड़ा कर दिल्ली के चुनाव को रोचक बना दिया है। दिल्ली में गुर्जर मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है। इनके प्रभाव वाली छतरपुर, मुस्तफाबाद, तुगलकाबाद, घोंडा, गोकुलपुरी, ओखला पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है। वहीं बदरपुर, करावल नगर व पालम पर भाजपा का कब्जा है। दिल्ली के पूर्व सांसद व बड़े गुर्जर नेता रमेश बिधूड़ी को भाजपा ने मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार कर चुनाव को रोचक बना दिया है। दिल्ली में मदनलाल खुराना व साहिब सिंह वर्मा के बाद हमेशा बाहरी व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनता रहा है। सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, अरविंद केजरीवाल, अतिशी मार्लेना जैसे लोग दिल्ली के मूल निवासी नहीं है। इसलिए दिल्ली के लोग चाहते हैं कि अब की बार दिल्ली का ही रहने वाला नेता दिल्ली का मुख्यमंत्री बने ताकि उसे दिल्ली की असली नब्ज व समस्याओं की बखूबी जानकारी हो। जाट मतदाता चाहते हैं कि साहिब सिंह वर्मा के बाद एक बार फिर उनके बेटे प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया जाए ताकि दिल्ली का सर्वांगीण विकास हो सके। वही गुर्जर मतदाता रमेश बिधूड़ी को मुख्

Jan 29, 2025 - 15:37
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दलित-ओबीसी मतदाता बनाएंगे दिल्ली में सरकार
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डालने में अब कुछ दिनों का समय ही शेष रह गया है। वहां चुनाव प्र

दलित-ओबीसी मतदाता बनाएंगे दिल्ली में सरकार

Netaa Nagari

नई दिल्ली: दिल्ली की राजनीतिक पृष्ठभूमि में दलित और ओबीसी मतदाताओं की भूमिका को नजरअंदाज करना मुश्किल है। आगामी चुनावों में इन वर्गों की संख्या, राजनीतिक प्रभाव और उनकी प्राथमिकताओं के चलते सरकार बनाने में निर्णायक साबित हो सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे दलित और ओबीसी मतदाता दिल्ली की शासन प्रणाली में बदलाव ला सकते हैं।

दलित और ओबीसी मतदाताओं की संख्या

दिल्ली में दलित और ओबीसी वोटरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये वर्ग न केवल राजनीतिक पहचान बनाने की ताकत रखते हैं, बल्कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए भी सतत संघर्ष कर रहे हैं। किसी भी पार्टी के लिए इन मतदाताओं का समर्थन हासिल करना महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, इन वर्गों को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने-अपने पक्ष में करने की कोशिश की जा रही है।

राजनीतिक महत्व और संभावनाएं

दलित और ओबीसी मतदाता चुनावी नतीजों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। अगर हम पिछले कुछ चुनावों को देखें तो हमें पता चलता है कि इन वर्गों के समर्थन से ही किसी पार्टी ने सत्ता हासिल की है। चुनावी गर्मी में, यह राजनीतिक दलों का प्राथमिक लक्ष्य बन गया है कि वे इन वर्गों के साथ संवाद स्थापित करें और उनकी मुख्यभूत समस्याओं का समाधान करें।

पार्टी रणनीतियाँ

विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, जैसे कि कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी, दलित और ओबीसी मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनावी वादे कर रही हैं। पार्टी के नेताओं ने अपना ध्यान सामाजिक न्याय और समानता पर केंद्रित किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी को इन वर्गों का समर्थन प्राप्त होता है।

दलित और ओबीसी मतदाताओं की मांगें

इन दोनों वर्गों की कुछ प्रमुख मांगों में शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा शामिल हैं। चुनावी समय में यह मुद्दे और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। राजनीतिक दलों को इन मांगों को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल कर, इन्हें पूरी करना होगा।

निष्कर्ष

आखिरकार, दिल्ली में दलित और ओबीसी मतदाता आगामी चुनावों में एक निर्णायक कारक साबित हो सकते हैं। इन वर्गों की आकांक्षाओं और जरूरतों को समझना राजनीतिक पार्टियों की जिम्मेदारी है। देखना है कि कौन सी पार्टी इन समस्याओं को प्राथमिकता देती है और किस प्रकार से सरकार निर्माण में ये वर्ग अपना प्रभाव डालते हैं। दिल्ली की राजनीति में इन वर्गों का योगदान अतुलनीय है, और यह भविष्य के चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है।

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