PHOTOS: 45 दिन के महाकुंभ के बाद कितना सूना हो गया प्रयागराज? तस्वीरें देखकर नहीं होगा यकीन

प्रयागराज में 45 दिनों तक चले महाकुंभ का समापन महाशिवरात्रि के साथ हुआ। मेला क्षेत्र अब खाली दिख रहा है, जहां 66.30 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम और अन्य घाटों पर डुबकी लगाई। टेंट सिटी सुनसान पड़ी है।

Feb 27, 2025 - 21:37
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PHOTOS: 45 दिन के महाकुंभ के बाद कितना सूना हो गया प्रयागराज? तस्वीरें देखकर नहीं होगा यकीन
PHOTOS: 45 दिन के महाकुंभ के बाद कितना सूना हो गया प्रयागराज? तस्वीरें देखकर नहीं होगा यकीन

PHOTOS: 45 दिन के महाकुंभ के बाद कितना सूना हो गया प्रयागराज? तस्वीरें देखकर नहीं होगा यकीन

Netaa Nagari | लिखित: स्नेहा वर्मा, टीम नेतानगरी

महाकुंभ का महत्व

हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत पर्व है। यह आध्यात्मिक धरोहर एकत्रित करने का सबसे बड़ा अवसर है। पिछले 45 दिन तक प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालुओं ने स्नान, पूजा और भक्ति की, लेकिन इसके बाद अब यह नगर सूना और खामोश हो गया है।

कहां गई भीड़?

महाकुंभ के समाप्त होते ही प्रयागराज की गली-मोहल्ले, घाट और अन्य स्थानें चुप हो गए हैं। एक समय जब यहां भीड़-भाड़ होती थी, अब वह सुनसान है। आप तस्वीरें देखकर यह नहीं मानेंगे कि यह वही जगह है जहाँ लाखों लोग एकत्रित होते थे। घाटों पर पूजा की सामग्री और विभिन्न मंदिरों का दृश्य अब स्थिरता में बदल गया है।

तस्वीरों का जादू

प्रयागराज की तस्वीरें जो महाकुंभ के समय की थीं, उनकी तुलना अब की तस्वीरों से कीजिए। एक तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कैसे हर ओर से श्रद्धालु भक्ति में लीन होते थे। जब महाकुंभ का समय था, तो हर दिशा से आ रही आवाजें, मंत्र और कीर्तन गूंजते थे। अब केवल तीर्थ के घाटों की शांति और सुनसान का एहसास होता है।

आर्थिक प्रभाव

महाकुंभ का अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर होता है। बाजार और होटल, रेस्टोरेंट, और स्थानीय व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा इस पर्व से लाभान्वित होते हैं। अब जब भीड़ छटी है, तो व्यवसाय फिर से सामान्य स्थिति में नहीं लौट पा रहे हैं। व्यापारी और स्थानीय लोगों में इस बात का डर है कि इस सुनसानी का क्या असर लंबे समय तक रहेगा।

सामाजिक प्रभाव

महाकुंभ का केवल आर्थिक पहलू ही नहीं, बल्कि इसका सामाजिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व एकता का प्रतीक है, जो विभिन्न संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों के लोगों को एक छत के नीचे लाता है। अब जब यह समाप्त हो गया है, तो लोगों के बीच की वो गर्मजोशी और भाईचारा कम हो गया है।

निष्कर्ष

महाकुंभ एक धार्मिक पर्व है, लेकिन यह मानवता के लिए एक सामुदायिक अनुभव भी है। उस अद्भुत समय के बाद, जब प्रयागराज की गलियाँ और घाट धार्मिकता और भक्ति से भरे थे, अब उनका सूना होना हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या हम इस सुनसान राक्षस को फिर से जीवित कर सकते हैं, या यह केवल स्मृतियों में कैद होगा?

भविष्य में फिर से प्रयागराज की खूबसूरती और उसकी भक्ति की महक लौटेगी, यही उम्मीद है। ऐसे और अपडेट्स के लिए, netaanagari.com पर जाएं।

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