आखिर नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कब और कैसे थमेंगी?

लीजिए, एक और साम्प्रदायिक दंगा हो गया। इस बार आरएसएस मुख्यालय के लिए मशहूर नागपुर शहर ही इन दंगों की आग से धधक उठा। टीवी पर जो आग की उठती लपटें दिखीं, घायल लोग व पुलिस वाले दिखे, क्षतिग्रस्त व जले वाहन नजर आए, इसके गम्भीर मायने हैं। सवाल है कि क्या यह आरएसएस और उसके अनुसांगिक संगठनों को देश-दुनिया में बदनाम करने की सियासी साजिश है? क्या हमारे देश के समुदाय विशेष को आइएसआइ लगातार भड़का रही है जिससे वो निरंतर हिंसक होते जा रहे हैं और पाकिस्तान-बंगलादेश से सहानुभूति रखते हुए उन्हीं जैसा व्यवहार करने लगे हैं? सुलगता हुआ सवाल यह भी है कि क्या दुनियावी मंचों पर लगातार मजबूत हो रहे भारत को पुनः कमजोर करने की साजिश के तहत अंतरराष्ट्रीय ताकतों के इशारे पर यह सबकुछ हो रहा है, जिसके तार हमारे राजनेताओं तक से जुड़े हुए हैं क्योंकि देश की यही बेलगाम ताकत है जो अधिकांश अनैतिक करतूतों की जड़ समझी जा रही है! इसी के साथ यह सवाल भी पुनः प्रासंगिक हो गया कि आखिर ब्रेक के बाद होने वाली नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कैसे थमेंगी? आखिर इन जैसी घटनाओं को रोकने में प्रथमदृष्टया हमारा पुलिस प्रशासन असहाय क्यों प्रतीत होता है और फिर घटना के बाद सक्रिय होकर स्थिति को काबू में करता है? इसे भी पढ़ें: नागपुर में कर्फ्यू जारी, हिंसक धार्मिक झड़पों को लेकर 51 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्जसवाल यह भी है कि आखिर क्यों पुलिस बल की तमाम रणनीति फेल हो जाती है जिसकी कीमत इसके अधिकारियों-जवानों के साथ-साथ उन मेहनतकश लोगों को भी चुकानी पड़ती है जो अपने कार्यवश सड़क पर होते हैं या प्रभावित क्षेत्र से गुजरते हैं? प्रश्न यह भी है कि समय रहते ही पत्थर, ईंट-रोड़े छतों पर जमा होने की सूचना पुलिस को क्यों नहीं मिल पाती है? क्या हमारा खुफिया तंत्र बार बार विफल हो रहा है या उसकी सूचना पर सही प्रशासनिक फैसले नहीं हो पाते हैं? यह सब कुछ प्रशासन को बताना चाहिए, क्योंकि ब्रेक के बाद देश में होने वाली सांप्रदायिक/जातीय/क्षेत्रीय हिंसा व आगजनी की खबरें हर किसी को परेशान करती हैं। लिहाजा इस बारे में पुलिस जनजागृति कार्यक्रम करती रहे और घटना के पश्चात इतनी कड़ी कार्रवाई करे, ताकि फिर कहीं और किसी के सिर उठाने की नौबत ही नहीं आए। वहीं, सिविल प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया, सामाजिक संस्थाओं और सियासी दलों को भी पुलिस कार्रवाई का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि विधि-व्यवस्था के मामले में समझौता करने का सीधा असर समाज और कारोबार दोनों पर पड़ेगा। इस मामले में बयानबाजी भी सधी होनी चाहिए, ताकि यह और नहीं भड़के। सवाल यह भी है कि क्या इस क्षेत्र में नागरिक-पुलिस समन्वय समिति नहीं थी या फिर वह भी विफल साबित हुई? सवाल बहुत हैं और जवाब सिर्फ यही कि चुस्त-दुरुस्त प्रशासन ही ऐसी घटनाओं को रोक सकता है, अन्यथा जन-धन की अप्रत्याशित क्षति होती रहेगी।कहना न होगा कि नागपुर के महल क्षेत्र में दो समुदायों के बीच भड़काए गए दंगे पर कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, वह एक ओछी राजनीति का परिचायक है, क्योंकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में कथित शांतिप्रिय समुदाय ने दंगे नहीं भड़काए। ऐसे में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की विफलता की जो आलोचना की है, वह उनकी दूषित सियासी मानसिकता का ही परिचायक है। ऐसी विकृत सियासी सोच के चलते ही साम्प्रदायिक दंगे लाइलाज बीमारी बनते जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि सियासी विकृति, प्रशासनिक अकर्मण्यता, न्यायिक विवेकशून्यता और मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में संपादकीय विवेक के अभाव का ही नतीजा है कि ब्रेक के बाद यत्र-तत्र दंगे भड़क जाते हैं, जिसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया जाता है। इंटरनेट पर पाबंदी इस समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि उकसाऊ तत्वों का विधि सम्मत तरीके से सफाया करके ही इस समस्या का सार्थक समाधान किया जा सकता है। लोगों के मुताबिक, जिस तरह से नागपुर के महल इलाके में हिंसा भड़की, भीड़ का पथराव हुआ, भीड़ द्वारा 8 से 10 वाहनों में आग लगा दी गई और ऐसी ही घटनाएं सामने आई हैं, उससे प्रशासन के एक्टिव रहने पर ही सवाल उठता है, क्योंकि उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश न होना पुलिस को जान पर खेलने के लिए विवश करने जैसा है। इसके लिए संसद और सुप्रीम कोर्ट दोनों की अदूरदर्शी भूमिका भी सभ्य समाज के कठघरे में है, क्योंकि राष्ट्र को सुशासन देने की नैतिक जिम्मेदारी इन्हीं दोनों संस्थाओं की है। यदि एक समुचित कानून नहीं बनाने का दोषी है तो दूसरा ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान न लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ बने रहने का जो मंचन करता है, वह अस्वीकार्य है।हैरत की बात है कि नागपुर के महल इलाके में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा पर जो राजनीति शुरू हो गई है, उससे घटिया बात कुछ हो ही नहीं सकती! भले ही कांग्रेस ने इसके लिए भाजपा नीत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन उसकी सरकारों ने क्या किया है, उसका अतीत कैसा रहा है, इस बारे में वह कभी नहीं सोचती। कांग्रेस ने जिस तरह से कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफलता का आरोप लगाया है, वह एकतरफा आरोप है। चूंकि कांग्रेस या इंडिया गठबंधन की सरकारें अपनी नीतियों से कथित शांतिप्रिय समुदाय को भड़काती रहतीं हैं, इसलिए ऐसी नौबत पैदा होना आम बात है। भले ही कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया है कि सांप्रदायिक सद्भाव के 300 साल के इतिहास वाले शहर में इस तरह की अशांति कैसे हो सकती है? लेकिन इसकी हकीकत उनसे ज्यादा कौन बयां कर सकता है। एक ओर उन्होंने कुछ राजनीतिक दलों पर अपने फायदे के लिए जानबूझकर तनाव भड़काने का आरोप लगाया, जबकि दूसरी तरफ सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 लाकर उनकी पार्टी ने किस तरह एकतरफा नियम बनवाए, वह हैरतअंगेज है। क्या वह अपनी पार्टी की करतूतें भूल चुके हैं?उनका यह कहना कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के गृहनगर महल में दंगा भड़क गया, एक अस्वीकार्य बयानबाजी है। क्योंकि वहां के हालात

Mar 19, 2025 - 13:37
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आखिर नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कब और कैसे थमेंगी?
आखिर नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कब और कैसे थमेंगी?

आखिर नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कब और कैसे थमेंगी?

नेता नागरी
लेखिका: साक्षी अग्रवाल, टीम नेता नागरी

परिचय

नागपुर, एक ऐसा शहर जो अपनी सांस्कृतिक विविधता और भाईचारे के लिए जाना जाता है, हाल ही में सांप्रदायिक हिंसा का साक्षी बना। ऐसी घटनाएँ चिंता का विषय बन चुकी हैं। सवाल उठता है कि आखिर इन घटनाओं की पुनरावृत्ति कब और कैसे थमेगी? इस लेख में हम इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास

हमारे देश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कई बार सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ है। लेकिन नागपुर जैसी घटनाएँ, जो संविधानिक मूल्यों को चुनौती देती हैं, हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। इन घटनाओं का मुख्य कारण सामाजिक असमानता, राजनीतिक कारण और धार्मिक भेदभाव है।

घटनाओं का विश्लेषण

हालिया घटनाओं पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि ऐसे हालात में नागरिकों की सुरक्षा को खतरा होता है। अक्सर इन घटनाओं के पीछे कुछ राजनीतिक दलों की साजिश होती है जो अपनी स्वार्थी हितों के लिए समाज को बांटने का प्रयास करते हैं। इस स्थिति में पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे ऐसी घटनाओं को समय रहते नियंत्रित कर सकें।

समाज का योगदान

सभी नागरिकों को चाहिए कि वे भाईचारे का प्रदर्शन करें और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दें। स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है। इसके अलावा, मीडिया को भी संयमित और जिम्मेदार तरीके से समाचार प्रचारित करना चाहिए।

राजनीतिक और कानूनी पहलु

सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। कानून में सख्ती का अप्लीकेशन करते हुए अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा, सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के तहत रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाए जाने चाहिए जिससे कि युवा वर्ग को दिशा मिल सके।

निष्कर्ष

आखिरकार, नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को रोकना कोई एकल प्रयास नहीं है, बल्कि यह सामूहिक सजगता, ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति और समर्पण का परिणाम है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारी समाज में एकता और शांति सदैव बनी रहे। इसके लिए सभी को एकजुट होकर प्रयास करना होगा।

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