पहलगाम आतंकी हमला के हमास-आईएसआई कनेक्शन को समझिए और 'दक्षिणी रणनीति' को भेदिये!

कहीं अमेरिका, कहीं चीन, कहीं रूस, कहीं ब्रिटेन आदि की शह पर फलफूल रहा इस्लामिक आतंकवाद अब एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय एजेंडा बन चुका है, जो हथियार-गोलाबारूद और सुरक्षा उपकरण निर्माता पूंजीवादी ताकतों को बेहद रास आ रहा है। ऐसा इसलिए कि हर विध्वंस के बाद होने वाले निर्माण से भी किसी न किसी रूप में पूंजीवादियों के ही कारोबार बढ़ते हैं। अलबत्ता शांतिप्रिय और प्रगतिशील देशों को इन वैश्विक षड्यंत्रों से निपटने के बारे में मौलिक रूप से सोचना होगा और जवाबी एहतियाती कार्रवाई करनी होगी, ताकि इनके नापाक मंसूबे कभी भी सफल नहीं हो सकें और ये आपस में ही लड़-भीड़ कर खत्म हो जाएं।देखा जाए तो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले ईसाई समुदाय ने दूसरी बड़ी आबादी मुस्लिम समुदाय को निबटाने के लिए आतंकवाद प्रोत्साहन जैसी अनोखी पहल की है, जिसके तहत अरब देश आपस में ही संघर्षरत हैं। इसके अलावा पड़ोसी मुस्लिम देश और अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी वाले गैर मुस्लिम देश भी इनकी जद में आ चुके हैं। भारत उनमें से एक है। इधर ईसाईयों और यहूदियों के चालों से सजग मुस्लिम देशों व उनके संगठनों ने काफ़िर मुक्त विश्व का सपना देखा है, जिसमें गैर मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है। उनकी इस नापाक सोच से भी भारत के हिन्दू सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।इसे भी पढ़ें: बेतुके बयानों से बचें एवं राजनीतिक सहमति कायम रखेंकहना न होगा कि पहले औद्योगिक क्रांति और अब सूचना क्रांति से पैदा हुए पूंजीवाद के ऊपर सवार होकर ये जज्बातें दुनिया के एक बड़े भूभाग को तबाह किए हुए हैं| पहले इंग्लैंड, फिर अमेरिका, उसके बाद रूस और अब चीन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं ने इस कदर नैतिक-अनैतिक और प्रतिशोधी रूप में कट्टर इस्लाम मतावलम्बियों का सशत्र दुरूपयोग किया कि अब ये लोग भी दो-चार धड़ों में विभाजित हो चुके हैं और परस्पर खून-खराबे पर उतारू हैं। ऐसे में भारत की गुटनिरपेक्षता, उदारता और विश्वबंधुत्व की भावना ही उसके गले की हड्डी बन चुकी है।                    यही वजह है कि जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की तुलना अब 7 अक्तूबर 2023 को इजरायल पर हुए हमले से की जा रही है, जो अनायास नहीं है बल्कि इनके बीच कुछ लौकिक साम्यताएं भी दिखाई पड़ी हैं। पहलगाम आतंकी हमले वाले दिन पर यदि गौर करें तो इजरायल पर हमले से पहले हमास नेताओं की तरह ही पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने इस आतंकी हमले से कुछ दिन पहले आतंकवादी समूहों को उकसाने के लिए जानबूझकर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने की कोशिश की थी। तब जनरल मुनीर इस्लामाबाद में ओवरसीज पाकिस्तानी कन्वेंशन (OPC) में भीड़ के सामने खड़े हुए और कश्मीर को पाकिस्तान की “गले की नस” बताते हुए विवादास्पद ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ का हवाला दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने हिंदू-मुसलमान कार्ड भी खेला और पाकिस्तानियों को हिदुस्तानियों से अलग बताया।इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अरब आतंकवादी/उग्रवादी संगठन हमास की राह पर ही क्यों चल रही है पाकिस्तानी सेना और इसके क्या-क्या दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं? कहना न होगा कि इस समय पाकिस्तानी सेना का हाल लगभग वैसे ही है, जैसे 7 अक्तूबर 2023 के हमले के वक्त हमास का था। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के बढ़ते हमले, बलूचिस्तान में बढ़ते विद्रोह और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की जेल में बंद होने के बीच राजनीतिक अस्थिरता ने जनरल मुनीर की सत्ता पर पकड़ को नाटकीय रूप से कमजोर कर दिया है।पाकिस्तानी सेना के जनरल चुपचाप मुनीर के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। ऐसे में जनरल मुनीर को कश्मीर मुद्दे को हाईलाइट कर पाकिस्तानियों का ध्यान भटकाने की जरूरत थी। ठीक वैसे ही हमास ने भी गाजा के कुप्रबंधन से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इजरायल पर हमला किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कम से कम जनता की भावना उसके पक्ष में हो।ऐसे में यह समझना बेहद जरुरी है कि इस मुताल्लिक गढ़ी गई आईएसआई की “दक्षिणी रणनीति” क्या है और भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? क्योंकि 26/11 मुंबई हमलों के सूत्रधार तहव्वुर राणा के आसन्न प्रत्यर्पण ने जनरल मुनीर की कमजोरी को और बढ़ा दिया, जिससे आतंकवाद में पाकिस्तानी सेना की दशकों पुरानी मिलीभगत उजागर होने का खतरा पैदा हो गया है। खुफिया सूत्रों ने संकेत दिया कि आईएसआई ने कश्मीर में नए घुसपैठ की सावधानीपूर्वक तैयारी शुरू कर दी थी। जम्मू के सामने लॉन्च पैड पर लगभग 100 आतंकवादी जमा थे, जो पाकिस्तानी आईएसआई की भयावह “दक्षिणी रणनीति” के लिए तैयार थे। वहीं पहलगाम आतंकी हमले के बाद पैदा हुई भयावह परिस्थियों के बीच पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने आतंकवादियों को वित्त पोषण देने की तीन दशकीय रणनीति भी स्वीकार की है, जिससे भारत और ज्यादा सजग और आक्रामक हुआ है।   सीधा सवाल है कि आखिर पहलगाम हमले का हमास से क्या संबंध है? तो यहाँ पर यह जानना जरुरी है कि जब 22 अप्रैल 2025 की दोपहर को पहलगाम की सुंदर बैसरन घाटी की सुंदरता का आनंद ले रहे पर्यटकों पर चार से पांच आतंकवादियों ने हमला किया था, तो इस दौरान उन्होंने पर्यटकों से इस्लामिक आयतें पढ़ने को कहा, और ऐसा नहीं करने वालों को तुरंत गोली मार दी। बता दें कि यह यहूदी नागरिकों के खिलाफ हमास के इस्तेमाल किए गए धर्म आधारित हमले का नकल था। जिसमें हमलावरों ने अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिसमें अमेरिकी निर्मित एम4 कार्बाइन और एके-47 असॉल्ट राइफलें थीं, जो पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों की पहचान है।इससे ही जुड़ा हुआ सवाल यह है कि क्या कश्मीरी आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैय्यबा ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर यह साजिश रची, तो जवाब यही होगा कि हाँ, इस हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली, जो लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक प्रॉक्सी संगठन है। टीआरएफ को पाकिस्तान की आईएसआई ने अनुच्छेद 370 के बाद जानबूझकर वैश्विक आतंकवाद विरोधी निगरानी संस्था एफएटीएफ की जांच से बचने के लिए बनाया था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने 7 अक्टूबर 2023 से

Apr 30, 2025 - 18:37
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पहलगाम आतंकी हमला के हमास-आईएसआई कनेक्शन को समझिए और 'दक्षिणी रणनीति' को भेदिये!
पहलगाम आतंकी हमला के हमास-आईएसआई कनेक्शन को समझिए और 'दक्षिणी रणनीति' को भेदिये!

पहलगाम आतंकी हमला के हमास-आईएसआई कनेक्शन को समझिए और 'दक्षिणी रणनीति' को भेदिये!

Netaa Nagari, इस लेख में हम पहलगाम में हुए आतंकी हमले के पीछे के मामले की गहराई में जाएंगे। यह हमला सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि इसका संबंध अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के नेटवर्क से भी है। हमास और आईएसआई की संलग्नता के साथ-साथ दक्षिणी रणनीति को भी समझेंगे। यह लेख हमारी टीम, टीम नेटानगरी द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

पहलगाम आतंकी हमले का संक्षिप्त परिचय

हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला दिया। इस हमले में कई निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिससे पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां चौकस हो गई हैं। ऐसे समय में यह बेहद जरूरी है कि हम इसके गहरे कनेक्शनों पर ध्यान दें।

हमास और आईएसआई का संबंध

हमास, जो मुख्य रूप से इस्लामिक आतंकी संगठन है, का भारतीय उपमहाद्वीप में अपना नेटवर्क है। इसके साथ ही, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का भी इस्लामिक आतंकवादी समूहों के साथ एक मजबूत संबंध है। पहलगाम के स्थितियों को देखते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि ये संगठन एक दूसरे के सहयोग से अपना उद्देश्य पूरा कर रहे हैं।

आईएसआई द्वारा हमास को तकनीकी और वित्तीय सहायता मिलती है, जिससे यह संगठन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से अपने नेटवर्क को मजबूत कर सकता है। इस आंतरिक संबंध की पहचान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि हम भविष्य में होने वाले हमलों को रोक सकें।

'दक्षिणी रणनीति': क्या है इस हमले की योजना?

‘दक्षिणी रणनीति’ एक ऐसी योजना है जिसमें आतंकी संगठन विभिन्न स्थानों पर हमले करने की योजना बनाते हैं। यह योजना न सिर्फ जम्मू-कश्मीर, बल्कि पूरे देश के लिए एक सुरक्षा खतरा है। इससे न केवल आतंकवाद का प्रसार होता है, बल्कि सरकार की स्थिति भी कमजोर होती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह रणनीति कार्यक्रमों और आयोजनों को निशाना बनाकर देश की सुरक्षा में खलल डालने का प्रयास करती है। जब भी कोई विशेष आयोजन होता है, ये संगठन उसे अधूरा करने का प्रयास करते हैं।

आगे का रास्ता: जागरूकता और सुरक्षा

इस तरह की घटनाओं के संदर्भ में जागरूकता और सुरक्षा को बढ़ाने की आवश्यकता है। स्थानीय समुदायों को अपने आस-पास की गतिविधियों के प्रति सजग रहने की जरूरत है। सुरक्षा बलों को भी इस तरह के नेटवर्क को समझने में समय लगाना चाहिए और अपनी रणनीतियों को मजबूत करना चाहिए।

निष्कर्ष

पहलगाम आतंकी हमला न केवल एक स्थानीय घटना है, बल्कि यह एक वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है। हमास और आईएसआई के बीच का संबंध हमें यह बताता है कि आतंकवाद सीमित नहीं है। सुरक्षा जागरूकता और गहन अध्ययन के दम पर ही हम इस चुनौती का सामना कर पाएंगे।

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Pahalgam terrorist attack, Hamas, ISI connection, Southern strategy, terrorism in India, security awareness, terrorist networks.

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