अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नजर अब दुनिया के खनिज संपदा संपन्न देशों की और है। ट्रम्प का यह अब यह छिपा एजेण्डा भी नहीं रहा क्योंकि यूक्रेन को सहायता के बदले उसकी खनिज संपदा के प्रबंधन का जिम्मा अमेरिका लेने के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर लगातार दबाव ड़ाल रहे हैं। यूक्रेन 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की खनिज संपदा को लेकर अमेरिका के साथ समझौता करने को भी लगभग तैयार हो गया पर पिछले दिनों जेलेंस्की की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प और जेलेंस्की में जिस तरह की कड़बाहट भरी नोकझोंक हुई है उसने इस डील को फिलहाल तो कमजोर कर दिया है। हांलाकि यूक्रेन के जेलेंस्की ने यूरोप यात्रा के दौरान राष्ट्रहित में अमेरिका के साथ समझौता करने पर लगभग सहमति वाली बात कही है। उधर रुस नहीं चाहता कि इस तरह का कोई समझौता अमेरिका व रुस के बीच हो, यही कारण है कि रुस ने भी रुस की खनिज संपदा को लेकर अमेरिका से समझौते के लिए खुला निमंत्रण दे दिया है। दरअसल अमेरिका स्वय खनिज संपदा संपन्न देष है। इसके साथ ही खनिज संपदा के मामलें में देखा जाए तो अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। इसके साथ ही अमेरिका खनिजों खासतौर से दुर्लभ खनिजों के मामलें में चीन का बर्चस्व चीन पर निर्भरता खत्म या यों कहे कम करना चाहता है। इसी कारण से दुनिया के खनिज संपदा संपन्न देशों पर ट्रम्प की ललचाई नजर साफ दिखाई दे रही है। अभी पिछले दिनों ही ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका 51 वां राज्य कहकर संबोधित किया है। उधर कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो साफ साफ कह चुके हैं कि अमेरिका की नजर कनाड़ा की खनिज संपदा पर है और वह कनाड़ा को अमेरिका का 51वां राज्य बनने के लिए दबाव बनाये हुए हैं। हांलाकि जस्टिन ट्रूडो इसको ट्रम्प का दिवा स्वप्न ही बता रहे हैं। उधर अमेरिका एन केन प्रकारेण अफगानिस्तान में प्रवेश करना चाहता है जहां की खनिज संपदा को वह हथिया सके। हांलाकि तालिबानियों के रहते फिलहाल तो ऐसा संभव नहीं लग रहा है। यह दूसरी बात है कि अमेरिका-रुस के बीच बन रहे नए समीकरणों का भविष्य क्या रहता है? इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। देखा जाए तो अर्वाचिन काल से ही खनिज संपदा का अपना महत्व रहा है। पर इलेक्ट्रोनिक युग में दुनिया के देशों के लिए खनिज संपदा का महत्व और मांग तेजी से बढ़ गई है। आज विकास की परिकल्पना को खनिजों की उपलब्धता के आधार पर ही साकार किया जा सकता है। नए युग की आवश्यकताओं की पूर्ति इन रेयर खनिजों से ही संभव हो पा रही है। एक समय था जब सोना, चांदी, तांबा आदि की और अधिक ध्यान केन्द्रीत होता था आज उसका स्थान दुर्लभतम खनिज लेते जा रहे हैं। इसका कारण भी साफ है। उर्जा के क्षेत्र में लगभग 90 प्रतिशत, औद्योगिक क्षेत्र में करीब 80 प्रतिशत, कृषि क्षेत्र में 70 प्रतिषत तक कच्चे माल या सहायक के रुप में भूगर्भ की खनिज संपदा की भागीदारी है। आज दुनिया के 90 प्रतिशत रेयर अर्थ पर चीन की मोनोपोली है। दुनिया में खनिज संपदा के क्षेत्र में चीन शीर्ष पर है। चीन में 4.6 बिलियन टन प्रतिवर्ष, दूसरे नंबर में अमेरिका 2.2 बिलियन टन, तीसरे नंबर पर रुस 1.7 बिलियन टन और चौथे नंबर पर आस्ट्रेलिया 1.4 बिलियन टन सालान खनिज संपदा का उत्पादन कर रहे हैं। चीन की संपन्नता का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि दूसरे नंबर के अमेरिका की तुलना में चीन में लगभग दो गुणा अधिक खनिज संपदा का उत्पादन हो रहा है।इसे भी पढ़ें: अमेरिका ने वैश्विक आर्थिक नीतियों पर लिया यू टर्नकनाडा और यूक्रेन के प्रति अमेरिकी नीति से यह साफ हो जाता है। अमेरिका यूक्रेन की रेयर अर्थ एलिमेंट संपदा के नियंत्रण के माध्यम से खनिजों के क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़कर स्वयं का नियंत्रण बनाना चाहता है। कनाड़ा में भी सोना, चांदी, निकल, तांबा, यूरेनियम, पोटाश, कोबाल्ट, हीरा आदि के प्रचुर भण्डार है तो यूक्रेन में भी रेयर खनिजों के भण्डार धरती के गर्भ में समाये हुए हैं। यूक्रेन में ग्रेफाइट, लिथियम, आदि रेयर अर्थ के भण्डार है। लिथियम के 19 मिलियन टन भण्डार होने के साथ ही विष्व के प्रमुख पांच ग्रेफाइट उत्पादक देशों में यूक्रेन है। यूक्रेन में आरईई के 17 तत्वों के समूहों वाले खनिजों में से बहुतायत में भण्डार है। अफगानिस्तान के साथ अमेरिका 2017 में समझौता कर चुका है पर तालिबान के प्रवेश के कारण अमेरिका का सपना अधूरा रह गया। हांलाकि 2021 में भी अफगानिस्तान से समझौते की पहल अमेरिका से कर चुका है। अभी भी अमेरिका की अफगानिस्तान की खनिज संपदा पर पूरी नजर है और अमेरिकी-रुस नजदीकी के प्रयास इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। यह साफ है कि आज रिचार्जेबल बेटरी, मोबाईल,  कम्प्यूटर चिप, हवाई जहाज के उपकरणों में उपयोग होने वालों के साथ ही उर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपयोग के खनिज भण्डार है। दुनिया के देश आज कच्चे माल के रुप में चीन पर निर्भर है। चीन पर निर्भरता कम करने के साथ ही अमेरिका अपना वर्चस्व बनाने के लिए संभावित सभी देशों पर योजनावद्ध तरीके से दबाव बना रहा है ताकि बदलती औद्योगिक सिनेरियों में अमेरिका की तूंती और अधिक तेजी से बज सके और अन्य देश अमेरिका पर निर्भर हो सके। अमेरिका खनिज संपदा का आर्थिक सामाजिक और औद्योगिक विकास का प्रमुख आधार बनाना चाहता है और इस तरह से वह अपना वर्चस्व कायम करने के लिए योजनावद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है।- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

Mar 12, 2025 - 15:37
 164  44.6k
अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच
अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच

अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच

लेखिका: साक्षी शर्मा, टीम नेतागरी

आज अमेरिका की खनिजों के प्रति साम्राज्यवादी सोच ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए सिरे से चर्चा शुरू कर दी है। कई राष्ट्रों में समृद्ध खनिज संसाधनों को लेकर अमेरिका की चिंताएं स्पष्ट हैं। इस लेख में, हम अमेरिका की साम्राज्यवादी सोच, उसके प्रभाव और इससे संबंधित कारकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

अमेरिका का साम्राज्यवादी दृष्टिकोण

शब्द "साम्राज्यवाद" अक्सर उन नीतियों को संदर्भित करता है, जो एक देश द्वारा दूसरे देश के संसाधनों और क्षेत्रीय नियंत्रण पर आधारित होती हैं। अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच का प्राथमिक आधार उसके आर्थिक हितों की रक्षा करना है। अमेरिका, जो कि प्राकृतिक संसाधनों का एक प्रमुख उपभोक्ता है, सदियों से खनिजों के लिए अन्य देशों में प्रभावशाली तरीके से घुसपैठ करता आ रहा है।

खनिजों का महत्व

खनिज, जैसे कि लिथियम, कॉपर, और कोबाल्ट, तकनीकी विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये खनिज इलेक्ट्रिक बैटरी, स्मार्टफोन्स और अन्य उच्च तकनीकी उपकरणों के निर्माण में उपयोग होते हैं। अमेरिका के लिए इन खनिजों की मांग उनके उत्पादन को बढ़ावा देती है, और इससे वैश्विक बाजार पर उनकी प्रभुत्वता बढ़ती है।

आर्थिक और भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

अमेरिका का साम्राज्यवादी दृष्टिकोण अन्य देशों में संघर्ष पैदा कर सकता है। उदाहरणस्वरूप, लैटिन अमेरिका के कुछ देश, जहाँ इन खनिजों का प्रचुर भंडार है, अमेरिका के आर्थिक प्रवर्तन के कारण सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं। कई बार, यह स्थिति स्थानीय जनसंख्या में असंतोष पैदा करती है, जिसके चलते अमेरिकी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शनों की लहर उठती है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अमेरिका की इन नीतियों पर नज़र रख रहा है। कई देशों ने कहा है कि अमेरिका को खनिजों की सुरक्षा करने के लिए अधिक पारदर्शिता और समानता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही, अमेरिका को अन्य देशों के साथ सहयोग और संयुक्त विकास की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।

निष्कर्ष

अमेरिका की खनिजों को लेकर साम्राज्यवादी सोच न केवल उसके लिए, बल्कि विश्व में आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। हमें यह समझना जरूरी है कि संसाधनों का उपयोग किस तरह से किया जा रहा है और इससे मानवता और पर्यावरण को क्या खतरे हो सकते हैं। साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को छोड़कर, हमें सहिष्णुता और सहयोग की ओर बढ़ना होगा।

अधिक जानकारी के लिए, कृपया netaanagari.com पर जाएं।

Keywords

imperialist thinking, USA minerals, geopolitics, lithium resources, international relations, economic interests, resource exploitation, mining industry impacts

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow