सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद ईमानदार अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी उत्तराखंड बने प्रेरणा: सतर्कता विभाग के फर्जी जाल को किया बेनकाब

Jan 25, 2025 - 16:02
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सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद ईमानदार अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी उत्तराखंड बने प्रेरणा: सतर्कता विभाग के फर्जी जाल को किया बेनकाब
अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी उत्तराखंड को सुप्रीम कोर्ट से झूठे भ्रष्टाचार के मामले में बड़ी राहत मिली। सतर्कता विभाग द्वारा लगाए गए फर्जी आरोपों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जांच में गंभीर खामियां पाईं और मिश्रा को जमानत दी। मिश्रा, जो रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर में कार्यरत थे, ने अपने करियर में ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। उन्होंने नैनीताल और हरिद्वार में नशामुक्ति अभियान चलाकर युवाओं को नशे से बचाया और गरीब बच्चों को शिक्षा देकर समाज में योगदान दिया। उनकी ईमानदारी कई लोगों की आंखों में

उत्तराखंड। उत्तराखंड के जिला आबकारी अधिकारी अशोक कुमार मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाकर एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलने वालों को कोई बाधा रोक नहीं सकती। भ्रष्टाचार के झूठे आरोपों में फंसाकर सतर्कता विभाग ने उन्हें हल्द्वानी में ट्रैप किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया।

सच पर चोट, लेकिन झुका नहीं ईमान

अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड, जो रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर में कार्यरत थे, को एक षड्यंत्र के तहत सतर्कता विभाग ने हल्द्वानी में ट्रैप किया। आरोप था कि उन्होंने ठेकेदार से रिश्वत मांगी। लेकिन सत्य यह था कि अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड ने हमेशा विभाग में पारदर्शिता और ईमानदारी को बढ़ावा दिया। यही कारण था कि वे भ्रष्ट तंत्र के निशाने पर आ गए।

नशामुक्ति के अग्रदूत और गरीब बच्चों के मसीहा

जब अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड नैनीताल और हरिद्वार में कार्यरत थे, तब उन्होंने युवाओं को नशे से बचाने के लिए उत्तराखंड का पहला बड़ा नशामुक्ति अभियान शुरू किया। इस अभियान ने हजारों युवाओं को नशे के चंगुल से बचाया।

इसके अलावा, अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड गरीब बच्चों को पढ़ाने का भी काम करते थे। उनकी यह निस्वार्थ सेवा समाज के लिए प्रेरणादायक थी और उनके प्रति लोगों के विश्वास को और मजबूत बनाती थी।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जांच प्रक्रिया में कई खामियां थीं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि यह मामला अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड को फंसाने की साजिश थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिना ठोस सबूतों के किसी अधिकारी की साख पर सवाल उठाना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।

त्रुटियों से भरा ट्रैप

1. शिकायतकर्ता की साख पर सवाल:

शिकायतकर्ता, जो ब्लैकलिस्टेड ठेकेदार है, पर पहले से ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।

2. स्वतंत्र गवाहों का अभाव:

ट्रैप के दौरान कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था। केवल सतर्कता विभाग के पक्षपाती अधिकारी ही गवाह बने।

3. वीडियोग्राफी का अभाव:

सतर्कता विभाग ने मामले में जरूरी वीडियोग्राफी का पालन नहीं किया।

4. एकतरफा जांच:

जांच अधिकारी ने निष्पक्षता के सिद्धांतों की अनदेखी की।

उनकी ईमानदारी कई लोगों की आंखों में चुभ रही थी

अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड, ने हमेशा ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। लेकिन उनकी ईमानदारी कई लोगों की आंखों में खटकने लगी थी। यही कारण है कि उन्हें फंसाने के लिए इस तरह की साजिश रची गई।

जनता की दुआओं से मिली राहत

अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड के समर्थन में पूरे उत्तराखंड में आवाज उठी। नैनीताल, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर के लोगों ने खुलकर उनके पक्ष में प्रदर्शन किया। मिश्रा के सहयोगियों और शुभचिंतकों का कहना है कि उनकी सच्चाई और जनता की दुआओं का ही नतीजा है, जो आज वे इस मुश्किल घड़ी से बाहर आ पाए।

क्यों बने अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड प्रेरणा?

नशामुक्ति अभियान के जरिये हजारों युवाओं को बचाया।

गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम किया।

विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाए।

जनता की समस्याओं को प्राथमिकता देकर, पारदर्शिता के लिए काम किया।

निष्कर्ष

अशोक कुमार मिश्रा, जिला आबकारी अधिकारी, उत्तराखंड की कहानी केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि सच्चाई, ईमानदारी और संघर्ष की है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी, अगर आपके इरादे मजबूत हैं और सच्चाई का साथ है, तो जीत आपकी ही होती है। यह घटना न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के अधिकारियों के लिए एक प्रेरणा है।

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