महाशिवरात्रि पर वाराणसी में टूट जाएगी भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ी ये परंपरा?
Mahashivratri 2025: काशी में महाशिवरात्रि सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इस दिन काशी के अलग-अलग स्थल से आकर्षक रूप में शिव बारात निकाली जाती है. महाशिवरात्रि के दिन वाराणसी के दारानगर महामृत्युंजय मंदिर से गदौलिया के लिए निकलें जाने वाला शिव बारात सबसे भव्य और बड़ा माना जाता है. लेकिन इस बार इस शिव बारात को लेकर काशी में सियासत शुरू हो चुकी है. 26 फरवरी के बजाय 27 को निकलेगी शिव बारात दरअसल महाकुंभ के पलट प्रवाह के बाद से ही काशी में भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आवागमन जारी है. महाशिवरात्रि अंतिम तिथि है.ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 15 लाख से अधिक श्रद्धालु महाशिवरात्रि के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंच सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ यह शिव बारात महाशिवरात्रि के दिन शाम के बाद काशी विश्वनाथ धाम मार्ग से होकर ही गुजरती है. भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए इस बार वाराणसी जिला प्रशासन और शिव बारात समिति की तरफ से बातचीत के आधार पर 26 फरवरी के बजाय 27 फरवरी को शिव बारात निकालने का फैसला लिया गया है. अब कांग्रेस पार्टी इस मामले को लेकर काशी की परंपरा तोड़ने का आरोंप लगाते हुए मैदान में उतर चुकी है. कांग्रेस पार्टी का कहना है कि यह काशी की परंपरा के साथ सीधे-सीधे खिलवाड़ है. प्राचीन समय से महाशिवरात्रि के दिन शिव बारात निकाली जाती है लेकिन इस बार महाशिवरात्रि के बजाय अगले दिन अपनी सुविधा के अनुसार बारात निकाली जा रही है जो परंपरा के खिलाफ है. खुद कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से वीडियो अपलोड करके इस मामले का जिक्र किया है. 'ना टूटे काशी की परम्परा'इस मामले पर काशी के परंपराओं के जानकार और धर्माचार्य विश्वकांताचार्य व्यासजी का कहना हैं की - काशी में भारी भीड़ है और महाकुंभ के दौरान विशेष तौर पर श्रद्धालुओ की सुविधाएं प्राथमिकता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रशासन पर महाशिवरात्रि के दिन बड़ी जिम्मेदारी है. लेकिन काशी अपनी परंपराओं के लिए जानी जाती है. खासतौर पर भगवान शंकर की नगरी काशी में महादेव से जुड़े हुए रीति रिवाज परंपरा इस शहर को बाकी शहर से अलग बनाते हैं.इसलिए किसी भी हाल में परंपरा के विपरीत नहीं जाना चाहिए परंपरा से ही शास्त्र है. वहीं बीते घंटे से काशी में इस मामले को लेकर चर्चाओं का दौर भी तेज है. जहां कुछ लोग भीड़ को देखते हुए 26 फरवरी के बजाय 27 फरवरी को निकाले जाने वाले शिव बारात के फैसले को सहित ठहरा रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह भी मानना है की प्राचीन परंपराएं काशी की पहचान है और अपने अनुसार पर्व त्यौहार और परंपराओं से जुड़ी व्यवस्थाओं को तय नहीं करना चाहिए. Mahashivratri पर प्रयागराज आए श्रद्धालुओं के लिए रेलवे ने किए खास इंतजाम, आरक्षित टिकट वालों को होगी ये सुविधा

महाशिवरात्रि पर वाराणसी में टूट जाएगी भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ी ये परंपरा?
Netaa Nagari
लेखिका: सुमिता शर्मा, टीम नेता नागरी
परिचय
महाशिवरात्रि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव की आराधना का प्रतीक है। हर साल इस दिन श्रद्धालु अपने आराध्य देव के प्रति प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए विशेष उपाय करते हैं। इस बार वाराणसी में एक खास परंपरा को लेकर चर्चा हो रही है, जिसे शिव और पार्वती से जोड़ा गया है। आइए जानते हैं कि यह परंपरा क्या है और क्यों इसे इस बार तोड़ने की बातें की जा रही हैं।
भगवान शिव और मां पार्वती की अनूठी परंपरा
वाराणसी में महाशिवरात्रि पर हर साल भक्तजन विशेष रूप से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करते हैं। यहां की एक अनोखी परंपरा है जिसमें स्थानीय लोग रातभर जागकर भगवान शिव की उपासना करते हैं और इसके साथ ही, पार्वती जी की उपासना भी की जाती है। यह मान्यता है कि इस दिन विशेष रूप से विवाह का आयोजन किया जाता है और भक्तों द्वारा धरती पर प्रेम और एकता का प्रतीक पेश किया जाता है।
क्यों सच हो रही है परंपरा टूटने की बातें?
यह वर्ष खास है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण से कुछ समय तक पूजा स्थलों पर पहुंचना मुश्किल रहा था। इसके बाद, वाराणसी में कई ऐसी परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, अब इस बात की चर्चा है कि इस बार भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ी परंपराओं को निभाने में बदलाव देखने को मिल सकता है। स्थानीय अधिकारियों और धार्मिक नेताओं ने एकत्रित होकर विचार विमर्श किया है कि क्या इसे आधुनिक युग के अनुसार ढलना चाहिए।
भविष्य में क्या होगी दिशा?
स्थानीय आस्था और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए, इस दिशा में निर्णय लिया जाएगा। धार्मिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परिवर्तन केवल बाहरी दुनिया से आए नए विचारों की ओर संकेत कर रहा है, लेकिन धार्मिक आस्था की नींव को क्षति नहीं पहुंचाएगा। वाराणसी में श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे यह भी स्पष्ट है कि लोग परंपराओं को लेकर खुश हैं।
निष्कर्ष
महाशिवरात्रि पर होने वाले इस विवाद ने एक बार फिर से धार्मिक परंपराओं और आधुनिकता के बीच की लड़ाई को उजागर किया है। भगवान शिव और मां पार्वती से जुड़ी परंपरा को निभाना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक भी है। अगर हमें इस दिशा में सही निर्णय लेते हैं, तो फिर कोई भी परंपरा बाधित नहीं होगी।
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