प्रयागराज कैसे 1954 से लेकर 2025 तक कुंभ भगदड़ की कहानियों का रहा है गवाह? एक वकील ने सुनाई आपबीती
प्रयागराज के महाकुंभ मेला में इस बार 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान किया है। मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ मेले में भगदड़ भी हो गई थी। कुंभ मेले में इसके पहले भी कई भगदड़ की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।

प्रयागराज कैसे 1954 से लेकर 2025 तक कुंभ भगदड़ की कहानियों का रहा है गवाह? एक वकील ने सुनाई आपबीती
Netaa Nagari
भारत में कुंभ मेला एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि हजारों-लाखों लोगों का एकत्रित होने का एक ऐतिहासिक मेला भी है। प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, इस महापर्व का गवाह बनने के साथ-साथ इसकी कई कथाओं का भागीदार भी रहा है। खासकर 1954 से 2025 के बीच में यहां हुई भगदड़ों की कहानियां सदियों से सुनाई जाती रही हैं।
कुंभ का महत्व और प्रयागराज
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है, जहां करोड़ों श्रद्धालु गंगा में स्नान करने आते हैं। प्रयागराज की पावन धरती पर यह मेला चार साल में एक बार आयोजित होता है। लेकिन इस मेले के दौरान होने वाली भगदड़ों ने न केवल श्रद्धालुओं की जानें ली हैं, बल्कि इसे अपार दुखों का कारण भी बनाया है। एक वकील की कहानी ने इस मुद्दे पर प्रकाश डाला है।
1954 से 2025 तक की कहानियाँ
वकील सुनीता शर्मा ने बताया कि 1954 में हुई भगदड़ ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया था। उस समय, वे एक युवा छात्रा थीं और भीड़ के बीच अपनी माँ को खो बैठी थीं। उन्होंने आगे कहा, "वह क्षण मेरे जीवन का सबसे डरावना अनुभव था। भीड़ इतनी बड़ी थी कि समझ नहीं आ रहा था क्या करना है। मुझे उस समय सिर्फ अपनी माँ की याद आई थी।"
प्रयागराज की इस ऐतिहासिक परंपरा में बहुत सी घटनाएँ हैं, जहां भगदड़ की स्थिति बनी। सुनीता ने कहा, "हर कुंभ में कुछ न कुछ समस्या रहती है। इस बार भी मुझे डर था कि शायद फिर से ऐसा कुछ हो, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था में सुधार हो चुका है।"
समाजिक और मानसिक प्रभाव
कुंभ भगदड़ के संदर्भ में न केवल भौतिक नुकसान होता है बल्कि यह समाज पर भी गहरा असर डालता है। वकील ने बताया कि कई बार भगदड़ के शिकार लोगों को मानसिक त्रास भी झेलना पड़ता है। "कई बार लोग महज यादों के सहारे जीवन बिताते रहते हैं," उन्होंने कहा।
सुनीता का मानना है कि भविष्य में कुंभ मेले को सुरक्षित बनाने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है। "पहले के मुकाबले सुरक्षा प्रबंध बेहतर हुए हैं, लेकिन और कुछ किया जाना चाहिए।"
निष्कर्ष
प्रयागराज का कुंभ मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मानवता का एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना कठिन है। जैसे-जैसे समय बदलता है, कुंभ का स्वरूप और व्यवस्था भी विकसित हो रही है। लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि सुरक्षा पहले आती है। सुनीता की कहानी हमें यह सिखाती है कि अनुभवों से हम कभी भी आगे बढ़ सकते हैं, बशर्ते हमें उन अनुभवों से कुछ सीखने को मिले।
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