दिल्ली में दलित मुस्लिम बहुल वोट वाली सीटों से तय होगा नतीजा, बीजेपी नहीं AAP और कांग्रेस में टक्कर
Delhi Dalit Muslim Seats: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 5 फरवरी, 2025 को वोटिंग होनी है. सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी (आप) के लिए इस बार का मुकाबला उतना आसान नहीं दिख रहा, जितना पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों में दिखा. इसके पीछे एक कारण जो सामने आया है वो ये कि दिल्ली में 2015 और 2020 के चुनाव के दौरान कांग्रेस के एक भी सीट नहीं मिली थी लेकिन इस बार कांग्रेस पूरे दम खम के साथ मैदान में उतरी है. वैसे तो चुनावों में कांग्रेस बनाम बीजेपी की लड़ाई देखी जाती है लेकिन दिल्ली के इस चुनाव में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के लिए चुनौती पेश कर रही है. कांग्रेस नेता आप के नेताओं पर हमलावर रहे, यहां तक कि इंडिया गठबंधन की पार्टी आप पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी हमला करने से परहेज नहीं किया. वैसे तो दिल्ली की 70 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और आप में सीधी टक्कर है. दलित और मुसलमान वोटर्स पर कांग्रेस की नजर राहुल गांधी ने अपनी रैलियां भी उन सीटों पर कीं जहां पर दलित और मुस्लिम आबादी ज्यादा है. इतना ही नहीं राहुल गांधी ने 2020 में दिल्ली दंगों से प्रभावित इलाकों का दौरा करने की कोशिश भी की. कांग्रेस अपने पारंपरिक मतदाताओं के पास वापस लौटने का मन बनाती दिखी. इन मतदाताओं के वर्चस्व वाले लगभग 12 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस सीधे अरविंद केजरीवाल को टक्कर देती नजर आ रही है. यही मतदाता आप को भी वोट करता है. वो सीटें जहां मुसलमान कांग्रेस को करता है वोट राहुल गांधी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली रैली सीलमपुर में की थी. उत्तर-पूर्वी दिल्ली की इस सीट पर लगभग 57 प्रतिशत वोटर मुस्लिम हैं. ये इलाका कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन 2015 और 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इसमें सेंधमारी कर दी. इस बार आप की ओर से चौधरी जुबैर अहमत और कांग्रेस के अब्दुल रहमान आमने-सामने हैं. अब्दुल रहमान इस सीट से मौजूदा विधायक हैं और हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए थे. इसी तरह दिल्ली की अन्य सीटों की अगर बात की जाए तो मटिया महल में 60 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, बल्लीमारान में लगभग 50 प्रतिशत, ओखला में लगभग 52 प्रतिशत और चांदनी चौक में लगभग 30 प्रतिशत. इसके अलावा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीमापुरी और सुल्तानपुर माजरा सीटों पर भी कांग्रेस बड़ा दांव लगा रही है. वहीं, दिल्ली की बादली, बाबरपुर और मुस्तफाबाद जैसी सीटों पर भी कांग्रेस आप को कड़ी टक्कर दे सकती है. इन सीटों पर प्रवासी मजदूरों, मुसलमान और दलित की अच्छी खासी आबादी रहती है. कांग्रेस का वोट काट सत्ता में आई आप? 2013 में दिल्ली के चुनावी मैदान में आप की एंट्री होने के बाद से आम आदमी पार्टी कांग्रेस के हिस्से का वोट काटकर उभरी है. इसका उदाहरण 2013 में ही देखने को मिला, जब कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 25 प्रतिशत रह गया. इसी तरह 2015 में 9.7 प्रतिशत और 2020 में ये गिरकर 4.3 प्रतिशत पर आ गया. आम आदमी पार्टी के वोट शेयर पर नजर डालें तो 2013 में ये 30 प्रतिशत था जो 2015 में बढ़कर 54.3 प्रतिशत हो गया और 2020 में 53.3 प्रतिशत था. ये भी पढ़ें: दिल्ली में वोटिंग कल, मैदान में 132 दागी... पढ़ें, विधानसभा चुनाव से जुड़े हर सवाल का जवाब

दिल्ली में दलित मुस्लिम बहुल वोट वाली सीटों से तय होगा नतीजा, बीजेपी नहीं AAP और कांग्रेस में टक्कर
लेखक: साक्षी शर्मा
टीम: नेतानगरी
परिचय
दिल्ली में आगामी चुनावों में दलित और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की सीटों का नतीजा चुनावी राजनीति के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। इन जातिगत और धार्मिक मतदाताओं की संगठित वोटिंग से AAP और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
दलित मुस्लिम वोट का महत्व
दिल्ली की कई विधानसभा क्षेत्रों में दलित और मुस्लिम समुदाय के वोटर्स की संख्या अधिक है। इन सीटों पर बीजेपी का प्रभाव इतना अधिक नहीं है, जिससे AAP और कांग्रेस को एक बड़ी संभावना मिलती है। उदाहरण के लिए, शहादरा, बाबरपुर और जंगपुरा जैसे क्षेत्रों में इन समुदायों का वोट बंटने का डर दोनों दलों के लिए एक चुनौती बन सकता है।
चुनावी रणनीतियाँ
AAP ने इसके लिए एक विशेष रणनीति तैयार की है। पार्टी ने दलित एवं मुस्लिम समुदायों के मुद्दों को प्रमुखता दी है। वहीं, कांग्रेस अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखने के लिए मुसलमानों को रिझाने की कोशिश कर रही है। दोनों ही पार्टियाँ अबतक अपने-अपने घोषणापत्र में इन समुदायों के लिए विशेष लाभों का वादा कर चुकी हैं।
बीजेपी का नज़रअंदाज करने का जोखिम
बीजेपी ने कई सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन दलित और मुस्लिम समुदायों के वोटर्स को नज़रअंदाज़ करके वह एक बड़ा जोखिम ले रही है। ये समुदाय अपनी पसंद के मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार शामिल हैं। अगर AAP और कांग्रेस इन मुद्दों को सही तरीके से उठाने में सफल रहीं, तो बीजेपी की रणनीति पर उलटा असर पड़ सकता है।
भविष्य की परिकल्पना
दिल्ली के चुनावों में दलित-मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। AAP और कांग्रेस के बीच की टक्कर आगामी चुनाव में और भी रोचक होने वाली है। इसके परिणाम यह निर्धारित करेंगे कि कौन सी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने में सक्षम होती है। संभावना है कि इस बार नतीजे पूरी तरह से बदल सकते हैं।
निष्कर्ष
आगामी चुनावी नतीजों का मुख्य आधार दलित मुस्लिम मतदाताओं की एकता और सक्रियता होगी। अगर AAP और कांग्रेस इस वोटर वर्ग को सही दिशा में आकर्षित करने में सफल होती हैं, तो बीजेपी की स्थिति कमजोर हो सकती है। यह चुनाव न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश की राजनीति पर प्रभाव डालने वाला होगा।
इस आलेख में मतदाता की मानसिकता, रणनीतियों और आगामी चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है। अधिक अपडेट के लिए, netaanagari.com पर जाएं.
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