JPC की बैठक में एक देश एक चुनाव का प्रेजेंटेशन:अध्यक्ष चौधरी बोले- लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ होने से खर्च कम होगा
'एक देश, एक चुनाव' पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की मंगलवार को बैठक हुई। बैठक के बाद समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने कहा कि बैठक में सभी सदस्यों का सकारात्मक रुख था और वे एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं। चौधरी ने कहा, 'यह एक अच्छी बैठक थी। सभी सदस्यों का सकारात्मक रुख था। पहले जस्टिस अवस्थी ने प्रेजेंटेशन दिया। उसके बाद पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित ने विचार रखे।' चौधरी ने कहा- हम सभी मिलकर एक टीम की तरह काम कर रहे हैं। संविधान संशोधन विधेयक, जो 'एक देश, एक चुनाव' के बारे में है, वर्तमान में संयुक्त संसदीय समिति के पास समीक्षा के लिए है। इस बिल का प्रस्ताव है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के समय सीमा को एक साथ किया जाए। कई विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और DMK ने 'एक देश, एक चुनाव' बिल का विरोध किया है। सरकार का कहना है कि चुनावों के समय को एक साथ लाने से चुनावों के खर्चों में कमी आएगी, लॉजिस्टिक चुनौतियां कम होंगी और बार-बार होने वाले चुनावों से होने वाली परेशानियों में भी कमी आएगी। समान चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने 18 सितंबर 2024 को मंजूरी दी थी। संयुक्त संसदीय समिति की 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक पर पहली बैठक 8 जनवरी को हुई थी। 31 जनवरी: दूसरी बैठक JPC की दूसरी बैठक में बिल पर सुझाव लेने के लिए स्टेक होल्डर्स की लिस्ट बनाई गई थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और राज्य सरकारें शामिल हैं। कमेटी शिक्षकों संगठनों और CII, फिक्की जैसे उद्योग समूहों बैंकों, RBI, बार काउंसिल से भी सुझाव लेगी। बैठक में सदस्यों से चर्चा की गई कि JPC के तय एजेंडे के साथ कैसे आगे बढ़ा जाए। कॉन्स्टिट्यूशन एक्सपर्ट्स, सुरक्षा एजेंसियों, कई सरकारी विभागों, मीडिया संगठनों, लॉ कमीशन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, पब्लिक सेक्टर्स, थिंक-टैंक, चैंबर ऑफ कॉमर्स, IIM जैसे संस्थानों के सुझाव लिए जा सकते हैं। दूसरी बैठक में हुई चर्चा, पॉइंट्स में... 8 जनवरी: पहली बैठक JPC की पहली बैठक में सभी सांसदों को 18 हजार से ज्यादा पेज की रिपोर्ट वाली एक ट्रॉली दी गई थी। इसमें हिंदी और अंग्रेजी में कोविंद समिति की रिपोर्ट और अनुलग्नक की 21 कॉपी शामिल है। इसमें सॉफ्ट कॉपी भी शामिल है। पहली बैठक की चर्चा, पॉइंट्स में... संसद में बिल पेश करने के लिए वोटिंग कराई गई थी कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में एक देश-एक चुनाव को लेकर 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया था। विपक्षी सांसदों ने इसका विरोध किया था। इसके बाद बिल पेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई थी। कुछ सांसदों की आपत्ति के बाद वोट संशोधित करने के लिए पर्ची से दोबारा मतदान हुआ। इस वोटिंग में बिल पेश करने के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े। इसके बाद कानून मंत्री ने बिल दोबारा सदन में रखा। कांग्रेस बोली- बिल पेश करते समय सरकार 272 सांसद नहीं जुटा पाई कांग्रेस ने एक देश एक चुनाव विधेयक को लेकर 20 दिसंबर को कहा कि भाजपा इस बिल को कैसे पास कराएगी? क्योंकि संविधान संशोधन के लिए उसके पास सदन में दो तिहाई बहुमत (362 सांसद) नहीं हैं। बिल भले ही JPC के पास भेजा गया, लेकिन कांग्रेस इसका विरोध करती है। दरअसल, 20 दिसंबर को राज्यसभा में इस बिल से जुड़े 12 सदस्यों को नामित करने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित किया। सभापति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से राज्यसभा के सदस्यों को समिति में मनोनीत करने के लिए प्रस्ताव पेश करने को कहा था। इसके बाद संसद की संयुक्त समिति को दोनों विधेयकों की सिफारिश करने वाला प्रस्ताव पारित किया गया। फिर बिल को 39 सदस्यीय JPC के पास भेजने का फैसला किया गया। एक देश-एक चुनाव क्या है... भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। एक देश-एक चुनाव पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर, 2023 को एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने करीब 191 दिनों में स्टेकहोल्डर्स और एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद 14 मार्च, 2024 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। एक देश-एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान संशोधन के जरिए संविधान में 1 नया अनुच्छेद जोड़ने और 3 अनुच्छेदों में संशोधन करने की व्यवस्था की जाएगी। संविधान संशोधन से क्या बदलेगा, 3 पॉइंट... ....................................... एक देश-एक चुनाव से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... क्या 2029 से देश में होगा वन इलेक्शन, फायदे-खामियों पर सब कुछ जो जानना जरूरी आजाद भारत का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ। उस वक्त लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। 1957, 1962 और 1967 तक ये परंपरा जारी रही। अब 2029 में ये परंपरा फिर से शुरू हो सकती है। इससे जुड़ा बिल संसद में पेश हो सकता है। वहीं, विपक्षी नेताओं ने इस सवाल उठाए हैं। पूरी खबर पढ़ें...

JPC की बैठक में एक देश एक चुनाव का प्रेजेंटेशन: अध्यक्ष चौधरी बोले- लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ होने से खर्च कम होगा
Netaa Nagari - हाल ही में आयोजित जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) की बैठक में "एक देश एक चुनाव" के विषय पर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया गया। इस प्रेजेंटेशन में अध्यक्ष चौधरी ने बताया कि यदि अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो यह न केवल खर्चों में कमी लाएगा बल्कि चुनावी प्रक्रिया को भी सरल बनाएगा।
बैठक में चर्चा के प्रमुख बिंदु
बैठक में मुख्य रूप से चुनावी खर्चों की स्थिति, प्रशासनिक चुनौतियाँ और एक देश एक चुनाव के संभावित लाभों पर चर्चा की गई। चौधरी ने कहा, "एक ही समय पर चुनाव होने से सरकार की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा। इसके जरिए सरकारी खजाने पर कम बोझ पड़ेगा।" उन्होंने आगे कहा कि इस निर्णय से मतदान प्रक्रिया को भी अधिक प्रभावी और त्वरित बनाया जा सकेगा।
उनके अनुसार, अलग-अलग चुनावों के दौरान सुरक्षाबलों को तैनात करने, चुनावी मशीनरी, और प्रशासनिक संसाधनों की आवश्यकता बढ़ती है। एक साथ चुनाव कराने से इन सभी संसाधनों का उपयोग अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकेगा।
एक देश एक चुनाव के संभावित लाभ
अध्यक्ष चौधरी ने बताया कि एक देश एक चुनाव की प्रस्तावना सिर्फ आर्थिक लाभ का मामला नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक स्थिरता का भी सवाल है। इससे लंबे समय तक एक ही सरकार की स्थिरता बनी रह सकती है, जिससे विकास और योजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी आएगी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इससे मतदाता को चुनावी प्रक्रिया में अपनी भागीदारी को समझने में मदद मिलेगी, जिससे लोकतंत्र की मजबूती बढ़ेगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि, इस विवादास्पद निर्णय पर विपक्ष ने अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के सफल कार्यान्वयन के लिए राज्यों की सहमति आवश्यक है। कुछ राजनीतिक दलों ने इसे लोकतंत्र के लिए हानिकारक करार दिया है।
ओपनिंग नोट्स में पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि यह निर्णय व्यक्ति विशेष को और अधिक शक्तिशाली बना सकता है, और इससे क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है।
निष्कर्ष
जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की बैठक में "एक देश एक चुनाव" का प्रेजेंटेशन एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा का हिस्सा है। अध्यक्ष चौधरी के विचारों ने इस पहल का समर्थन करते हुए आर्थिक और प्रशासनिक विकास पर जोर दिया। वहीँ, विपक्ष की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सही दिशा में आगे बढ़ना आवश्यक है।
इसे लेकर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि लोकतंत्र की भावना को बनाए रखते हुए इस प्रकार के चुनावी सुधार किए जा सकें।
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