पहलगाम आतंकी हमले से सुलगते हुए सवाल अब मांग रहे हैं दो टूक जवाब, आखिर देगा कौन?
कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, क्योंकि इस क्रूर इस्लामिक मिजाज वाले हमले में दो दर्जन से ज्यादा लोग मरे गए हैं और एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। यहाँ पर बहशी आतंकियों ने जिस तरह से नाम पूछ-पूछ कर, कलमा पढ़वाने की बात करके, शक होने पर खतना चेक करके निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाई, उसने मानवता को हिलाकर रख दिया है। वहीं इस घटना के कई वीडियो जिस तरह से इंटरनेट पर वायरल हो रहे हैं, उनमें इस हमले की बर्बरता स्पष्ट दिखाई दे रही है। इसलिए पुनः सुलगता हुआ सवाल यही कि आखिर कबतक रुकेंगे ऐसे आतंकवादी हमले और इन्हें रोकने में हमारा प्रशासन हर बार क्यों विफल हो जाता है? अलबत्ता पहलगाम आतंकी हमले से सुलगते हुए सवाल अब मांग रहे हैं दो टूक जवाब, लेकिन आखिर इसे देगा कौन? यक्ष प्रश्न है!कहना न होगा की साँपों को दूध पिलाने वाले और आतंकियों को बिरियानी खिलाने वाले इस देश में अब आमलोगों की जिन्दगी में यही बदनसीबी बदी हुई है, क्योंकि पुलिस और सैन्यबल के जवान तो बड़े बड़े नेताओं, नौकरशाहों, जजों और उनके मित्र उद्योगपतियों की निर्विघ्न यात्रा के सम्पादन में जुटे हुए रहते हैं! वहीं ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से मशहूर पहलगाम की वादियों में पुख्ता सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं किए गए, यह जम्मू-कश्मीर की उमर अब्दुल्ला सरकार और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को स्पष्ट करना चाहिए, क्योंकि यह उनकी स्पष्ट लापरवाही नहीं तो फिर क्या है, वही बता सकते हैं?इसे भी पढ़ें: पाक को सबक सिखाना एवं आतंकवाद को उखाड़ना होगाआपको बता दें कि यह आतंकी हमला मंगलवार दोपहर करीब 2:30 बजे हुआ, जिसमें करीब 50 राउंड फायरिंग की गई। लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस घृणित काम की जिम्मेदारी ली है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस आतंकी घटना के पीछे का कारण क्या है? आखिर क्यों दहशतगर्तों ने पहलगाम और पर्यटकों को ही निशाना बनाया? वहां भी महिलाओं और बच्चों को छोड़कर सिर्फ पुरुषों को ही निशाना क्यों बनाया? सवाल यह भी है कि अमरनाथ यात्रा से पहले ही पहलगाम में पर्यटकों को निशाना क्यों बनाया गया? मसलन कुछ लोगों ने यह बताया है कि ये आतंकवादी हमले ‘वक्फ अधिनियम में संशोधन’ के बाद नरेंद्र मोदी सरकार को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे और इसलिए उन्होंने अपना सारा गुस्सा पर्यटकों पर ही निकाला है। क्योंकि वायरल वीडियो में से एक वीडियो में पीड़िता कहते हुए दिख रही है कि उसके पति को गोली मारने के बाद आतंकी ने कहा था 'बता देना अपने मोदी को।' इससे साफ है कि क्या वो देश की सरकार को यह संदेश देना चाह रहे थे कि वो उनकी किसी भी बात को नहीं मानेंगे?ऐसे में पुनः वही सवाल उठता है कि क्या कश्मीर में कांग्रेस के सहयोग से निर्वाचित नेशनल कांफ्रेंस की उमर अब्दुल्ला सरकार में आतंकवाद फिर से जिंदा हो चुका है? क्योंकि जिस तरह से अमरनाथ यात्रा से पहले ये सुनियोजित और अप्रत्याशित हमला हुआ है, उसने एक बार फिर से कश्मीर में आतंकवाद के जिंदा होने का स्पष्ट प्रमाण दे दिया है।अलबत्ता अब सांप भाग जाने पर लकीर पीटने जैसी कार्रवाई से खोया हुआ पर्यटक विश्वास तुरंत बहाल नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ये आतंकी हमला कोई पहली बार नहीं हुआ है जब अमरनाथ यात्रा के बेस कैंप पहलगाम को निशाना बनाया गया है। आंकड़े बताते हैं कि इससे पहले 6 अगस्त 2002 को पहलगाम में एक शिविर पर हुए हमले में नौ लोग मारे गए थे, जबकि 20 जुलाई 2001 को भी एक शिविर पर हुए हमले में 13 लोगों की मौत हो गई थी। यदि देखा जाए तो बीते ढाई दशक में इस तरह का यह 11वां बड़ा हमला है, जिनमें अभी तक 227 लोगों ने अपनी जान गंवाई है।दरअसल जम्मू-कश्मीर में आम लोगों पर हुए बड़े आंतकी हमलों में एक आतंकी हमला 21 मार्च 2000 की रात को अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपोरा गांव में किया गया था। जिसमें आतंकियों ने अल्पसंख्यक सिख समुदाय को निशाना बनाया गया था। इस आतंकी हमले में कुल 36 लोगों की जान गई थी, जबकि कई अन्य लोग घायल भी बताए गए थे| वहीं इसी साल यानी 2000 के अगस्त माह में पहलगाम के नुनवान बेस कैंप आतंकी हमला हुआ था जिसमें अमरनाथ तीर्थ यात्रियों को निशाना बनाया गया था| इस हमले में स्थानीय लोगों के साथ-साथ कुल 32 तीर्थ यात्रियों की हत्या की गई थी| इसके बाद जुलाई 2001 में भी अमरनाथ यात्रियों को आतंकियों ने फिर निशाना बनाया। इस हमले में आतंकियों ने 13 लोगों की हत्या की थी| ये हमला अनंतनाग के शेषनाग बेस कैंप पर हुआ था। वहीं जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में राज्य विधानमंडल परिसर पर आत्मघाती आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 36 लोग मारे गए थे जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वहीं वर्ष 2002 में कश्मीर के चंदनवारी बेस कैंप पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 11 अमरनाथ यात्री मारे गए थे। वहीं 23 नवंबर 2002 को जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस से विस्फोट किया गया था| इस हमले में 9 सुरक्षाकर्मी, तीन महिलाएं और दो बच्चों समेत 19 लोगों की जान चली गई थी। ऐसे में आप खुद सोचिए कि जब आगामी 27 जून, 2025 से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, जो पहलगाम से ही शुरू होती है। ऐसे में उसी इलाके को आतंकियों ने निशाना बनाकर बहुत खतरनाक संदेश दिया है। सवाल यह भी है कि जब सऊदी अरब में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे थे, जयपुर में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वेंस घूम रहे थे, तब ये आतंकी हमला क्यों किया गया? इसका मकसद क्या है? क्या यह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत की खाई और चौड़ी करने का एक और प्रयास है? शायद अब यह सम्भव भी हो सकता है क्योंकि अब लोगों को ‘कश्मीरियत’ और ‘जम्हूरियत’ जैसे शब्द उसी तरह से डरायेंगे, जैसे कि मुर्शिदाबाद में गंगा-जमुनी तहजीब वाले शब्द डराते हैं। क्योंकि हर जगह खतने वाली सोच की निर्णायक खता तय करने में हमारा संविधान और उससे बनीं सरकारें अबतक निरर्थक प्रतीत हुईं हैं| हालाँकि जनता ने इनक

पहलगाम आतंकी हमले से सुलगते हुए सवाल अब मांग रहे हैं दो टूक जवाब, आखिर देगा कौन?
Netaa Nagari की टीम, द्वारा लेखन: निधि सिंह
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस हमले में कई निर्दोष नागरिकों की जान गई है और इसके पीछे छुपे आतंकवादियों के लक्ष्य और उनकी योजना पर सवाल उठने लगे हैं। अब समय आ गया है कि लोग सिर्फ शोक मनाने से आगे बढ़ें और सच्चाई को जानने की कोशिश करें।
हमले का विवरण
पहलगाम में जिस घटना को अंजाम दिया गया, वह न केवल क्षणिक चिंता का विषय है, बल्कि लंबे समय तक चलने वाले सवालों की शुरुआत भी है। हमले में नागरिकों के जीवन को खतरे में डालना यह दर्शाता है कि सुरक्षा व्यवस्था में कहीं ना कहीं कमी है। क्यों ऐसा हुआ? इस सवाल का उत्तर मिलना जरूरी है।
सुरक्षा व्यवस्था की खामियां
हमले ने सुरक्षा बलों की क़ाबिलियत पर कई सवाल उठाए हैं। पहलगाम एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहाँ पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। ऐसे में हमला करना क्या दर्शाता है? यह चेतावनी है कि सुरक्षा बलों को अपनी रणनीतियों पर दोबारा विचार करने की आवश्यकता है।
स्थानीय लोगों की भावना
स्थानीय लोग इस हमले से बेहद नाराज हैं। उन्होंने कहा है कि केवल शब्दों से अंत की बात नहीं बनेगी, बल्कि ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। वे जवाब चाहते हैं, ऐसे सवाल जो सुलग रहे हैं, जैसे कि सरकार आतंकवादियों की गतिविधियों पर क्यूं अंकुश नहीं लगा पा रही है।
किसे देना होगा जवाब?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ये जवाब किसके द्वारा दिए जाएंगे? क्या ये जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है या केंद्रीय सरकार को इस पर ठोस नीतियाँ बनानी होंगी? लोग अब तरस रहे हैं कि जड़ से खत्म करने का वादा केवल नारे नहीं, बल्कि कार्यवाही में बदले।
क्या है भविष्य की रणनीति?
फिलहाल, राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा की है, लेकिन क्या यह सब कुछ करने के लिए पर्याप्त है? सरकार को अब विभिन्न राजनीतिक पक्षों के सहयोग से एक ठोस रणनीति बनानी होगी ताकि भविष्य में ऐसे हमलों को रोका जा सके।
निष्कर्ष
पहलगाम आतंकी हमले ने एक बार फिर से न केवल हमें आतंकवाद के प्रति जागरूक किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि इस समस्या का समाधान करना कितना आवश्यक है। हम मांग करते हैं ठोस कार्रवाई और जवाबदेही की, क्योंकि लोग अब इंतजार नहीं कर सकते।
जब ये सवाल उठते हैं, तो यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम मिलकर सही दिशा में कदम उठाएं।Netaa Nagari पर बने रहें ताकि हम आपको हर महत्वपूर्ण अपडेट देते रहें।
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