हाईकोर्ट : किराएदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण किराएदारों के जीवन की सुरक्षा 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किराएदारी अधिकारों से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि किराए पर ली गई इमारत के शीघ्र विध्वंस पर किराएदारों को आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। विशेषकर जब अधिकारियों ने उक्त परिसर का निरीक्षण किया हो और उसे ध्वस्त करना अनिवार्य पाया हो। कोर्ट ने माना कि जीर्ण-शीर्ण इमारत में किराएदार के जीवन को खतरे से सुरक्षा उत्तर प्रदेश शहरी परिसर किराएदारी विनियमन अधिनियम, 2021 के तहत व्यक्तियों के किराएदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण है।  कोर्ट ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में आगे बताया कि किराएदारी अधिनियम की धारा 21 की उपधारा...

Jul 12, 2025 - 00:37
 146  5.9k

हाईकोर्ट : किराएदारी अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण किराएदारों के जीवन की सुरक्षा

Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - netaanagari

लेखक: सुमिता शर्मा, अनुश्री वर्मा, टीम नेटानागरी

प्रयागराज, अमृत विचार। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसमें उसने स्पष्ट किया है कि किराएदारी अधिकारों के विरुद्ध, किराएदारों के जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी भवन की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है और उसे दिवालियापन की स्थिति में ध्वस्त करना आवश्यक है, तो किराएदारों को आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। इस निर्णय ने किराएदारी अधिकारों के परिपेक्ष्य में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।

कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी शामिल थे, ने अशोक कुमार गुप्ता की याचिका पर चर्चा करते हुए कहा कि उपयुक्त निरीक्षण के बाद नगर निगम द्वारा भवन के ध्वंस का आदेश देना अनिवार्य है। कोर्ट ने विचार किया कि उत्तर प्रदेश शहरी परिसर किराएदारी विनियमन अधिनियम, 2021 के तहत व्यक्तियों के किराएदारी अधिकारों की तुलना में किरायेदारों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करना अधिक महत्वपूर्ण है।

किराएदारी अधिनियम की धारा 21

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में बताया कि किराएदारी अधिनियम की धारा 21 के अनुसार, मकान मालिक परिसर के किसी भी हिस्से के मरम्मत, पुनर्निर्माण या विध्वंस के लिए किराएदारों को बेदखल करने का अधिकार रखता है। अगर किसी भवन का निरीक्षण करने के बाद इसे खतरनाक माना जाता है, तो अधिकारियों को इसे ध्वस्त करने या सुरक्षित करने का आदेश देने का पूरा अधिकार है। वर्तमान मामले में यह बात सामने आई है कि भवन का संरचना गिरने के खतरे में है और इस कारण से इसे ध्वस्त करना अनिवार्य है।

नगर निगम की भूमिका

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नगर आयुक्त को ऐसे मापदंडों में प्रावधान है कि यदि वह महसूस करें कि कोई संरचना गिरने के खतरे में है, तो उसे गिराने या मरम्मत करने का आदेश दिया जा सकता है। इस मामले में, नगर निगम ने भी भवन के ध्वंस को आवश्यक बताया है। उच्च न्यायालय ने नगर निगम, अलीगढ़ के प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वो किराएदारों को उचित जानकारी और अवसर दें ताकि वे अपनी चीजें निकाल सकें।

निष्कर्ष

इस निर्णय ने न केवल किराएदारों के अधिकारों को स्पष्ट किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि जीवन की सुरक्षा किसी भी कानूनी अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने चेतावनी दी है कि यदि किराएदार अपने जीवन के प्रति सजग नहीं रहते हैं, तो उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं जिम्मेदार होना पड़ेगा।

यह भी पढ़ें: दिल्ली-एनसीआर में फिर आया भूकंप, लगातार दूसरे दिन कांपी धरती

Keywords:

High Court, tenant rights, life security, Uttar Pradesh, urban rent control, demolition order, municipal corporation, building inspection, legal rights.

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow