'यह धर्म और अधर्म की लड़ाई है', पहलगाम आतंकी हमले पर बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि ऐसे दुष्ट लोगों का वध होना चाहिए। क्रोध है और अपेक्षा भी है मुझे और अपेक्षा पूरी होगी। ऐसा मुझे लगता है।

Apr 25, 2025 - 08:37
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'यह धर्म और अधर्म की लड़ाई है', पहलगाम आतंकी हमले पर बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत
'यह धर्म और अधर्म की लड़ाई है', पहलगाम आतंकी हमले पर बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत

यह धर्म और अधर्म की लड़ाई है', पहलगाम आतंकी हमले पर बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत

Netaa Nagari - संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने इसे 'धर्म और अधर्म की लड़ाई' करार दिया है। इस हमले में कई निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया गया, जिससे पूरे देश में आक्रोश और उदासी फैली हुई है। यह बयान मोहन भागवत ने संघ के एक कार्यक्रम के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद का यह मुद्दा केवल एक सुरक्षा समस्या नहीं, बल्कि संस्कृति और सभ्यता की रक्षा का भी है।

आत्मसमर्पण की आवश्यकता

मोहन भागवत ने कहा कि इस प्रकार के हमले देश की अखंडता और सांस्कृतिक मूल्यों पर खतरा डालते हैं। उन्होंने भारतीय जनमानस से अपील की कि वे आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों और इसे समाप्त करने के लिए संघर्ष करें। उनका कहना था कि केवल संकल्प के द्वारा ही हमें इस संकट से उबरना होगा।

किस तरह से करें मुकाबला?

संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि हमें अपने भीतर की ताकत को समझना होगा। उन्होंने भारतीय संस्कृति और मूल्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये वही चीजें हैं, जो हमें एकजुट करती हैं और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। भागवत ने जोर देकर कहा कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने विरुद्ध काम कर रहे ताकतों का सामना करना चाहिए।

मानवता की विजय

उन्होंने यह भी कहा कि यह समय एकता का है, न कि भ्रम का। आतंकवाद किसी एक धर्म या समुदाय की समस्या नहीं है, बल्कि यह सभी मानवता पर हमला है। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों से अपील की कि वे आपसी भाईचारे को बढ़ावा दें और ऐसी ताकतों का सामना करें, जो समाज को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष

संघ प्रमुख का यह बयान सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि हमें एक संगठित और दृढ़ बनना होगा। धर्म और अधर्म की यह लड़ाई हमें यह सिखाती है कि सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने की आवश्यकता है। मोहन भागवत की यह बात हमें यह याद दिलाती है कि हमें न केवल अपनी सुरक्षात्मक रणनीतियाँ मजबूत करनी होंगी, बल्कि हमें अपने मूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर की भी रक्षा करनी होगी। हमें याद रखना चाहिए कि आतंकवाद का सामना एकजुट होकर ही किया जा सकता है।

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