'बेटी की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम करना है...', दिल्ली दंगे के आरोपी ने लगाई जमानत की गुहार
North East Delhi Riots: 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली को जलाने की साजिश रचने के आरोपी मोहम्मद सलीम खान ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनकी अपील थी कि मेरी बेटी की पढ़ाई अधर में लटक गई है. उसकी कानून की पढ़ाई जारी रखने के लिए मुझे पैसों की जरूरत है. दो हफ्ते की जमानत दी जाए ताकि मैं धन का इंतजाम कर सकूं. मगर कोर्ट ने साफ कर दिया कि खान की अंतरिम जमानत पर फैसला वही विशेष पीठ करेगी, जिसके पास उनकी मुख्य जमानत याचिका लंबित है. अब यह मामला चीफ जस्टिस की अनुमति के बाद विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा. दिल्ली हाई कोर्ट में क्या हुआ ? इस मामले की सुनवाई जस्टिस चंद्र धारी सिंह और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच ने की. जब खान के वकील ने जमानत की अपील की तो अदालत ने कहा कि आमतौर पर अंतरिम जमानत वहीं दी जाती है जहां मुख्य जमानत की सुनवाई लंबित होती है. खान के वकील ने कोर्ट को बताया कि उनकी जमानत याचिका पिछले तीन वर्षों से लंबित है और जस्टिस नवीन चावला की विशेष पीठ के समक्ष अटकी पड़ी है. यह पीठ नियमित रूप से नहीं बैठती, जिससे गंभीर कठिनाई हो रही है. हालांकि, कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह मामला उसी विशेष पीठ के पास जाएगा. ट्रायल कोर्ट ने पहले आरोपी को राहत देने से किया था इंकार इससे पहले निचली अदालत ने खान की अंतरिम जमानत याचिका को ठुकरा दिया था. कोर्ट ने कहा था खान को पहले भी चार बार अंतरिम जमानत दी गई थी, फिर भी उन्होंने अपनी बेटी की फीस का इंतजाम नहीं किया? अब बार-बार वही आधार देकर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं कर सकते. दिल्ली दंगे के बड़े आरोपी और साजिश की गहरी परतें मोहम्मद सलीम खान अकेले नहीं हैं. यह वही मामला है जिसमें उमर खालिद, शरजील इमाम, ताहिर हुसैन, खालिद सैफी, सफूरा जरगर और गुलफिशा फातिमा जैसे आरोपियों पर गंभीर आरोप लगे हैं. FIR 59/2020 के तहत दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आईपीसी और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत इन आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया था. अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच इस बार मोहम्मद सलीम खान की दलीलों को मानेगी? या फिर एक बार फिर उनकी जमानत याचिका खारिज होगी. इसे भी पढ़ें: मेधा पाटकर की याचिका पर LG वीके सक्सेना को नोटिस जारी, अगली सुनवाई 20 मई को

बेटी की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम करना है..., दिल्ली दंगे के आरोपी ने लगाई जमानत की गुहार
Tagline: Netaa Nagari
लेखक: पूजा शर्मा, टीम नेटानगरि
प्रस्तावना
नई दिल्ली: दिल्ली में हाल ही के दंगों के आरोपी ने कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई है, जिसमें उसने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम करने का कारण बताया है। यह मामला काफी गंभीर है और इससे जुड़े कई पहलू हैं, जिन पर चर्चा करना आवश्यक है। इस लेख में हम इस घटना के पीछे की कहानी, आरोपी का तर्क और इसे समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर ध्यान देंगे।
आरोपी का तर्क
आरोपी, जो कि एक परिवार के मुखिया हैं, ने जमानत याचिका में कहा कि उनकी पत्नी और बच्ची की देखरेख का पूरा जिम्मा उनपर है। उन्होंने दलील दी कि उन्हें अपनी बेटी की पढ़ाई जारी रखने के लिए आवश्यक धन की आवश्यकता है, जो वह जेल में रहते हुए नहीं जुटा सकते। उनके अनुसार, यह उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि उनकी बेटी का भविष्य उज्ज्वल रहे। परिवार का यह तर्क बेहद भावनात्मक और संवेदनशील है।
दिल्ली दंगे की पृष्ठभूमि
दिल्ली में 2020 में हुए दंगों ने देश को हिलाकर रख दिया था। इस हिंसा का कारण राजनीतिक मतभेद और साम्प्रदायिक तनाव थे, जिसने कई निर्दोष लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया। आरोपी की गिरफ्तारी के बाद से उनके परिवार पर आर्थिक संकट आ गया है, जिससे यह मुद्दा और भी गंभीर हो जाता है।
जमानत की कानूनी प्रक्रिया
जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायालय ने सभी पहलुओं पर गौर किया। आरोपी ने कोर्ट में अपनी भलाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों का ख्याल रखते हुए गुहार लगाई। हालांकि, न्यायालय ने यह भी याद दिलाया कि कानून के अनुसार सभी आरोपियों को समान रूप से देखा जाना चाहिए और किसी विशेष विचार का ध्यान देने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
सामाजिक प्रभाव
यह मामला न केवल एक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि समाज में और अधिक घुसपैठ भी पैदा करता है। दंगों के बाद जिन परिवारों को नुकसान हुआ, उनके आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर पड़ा है। ऐसे मामलों में सहायता के लिए समाज को आगे आना होगा ताकि प्रभावित परिवारों को सहारा मिल सके।
निष्कर्ष
दिल्ली दंगे का मामला एक सामाजिक ज्वाला की तरह है, जिसमें हमें न केवल न्याय व्यवस्था, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखना चाहिए। आरोपी की जमानत की यह याचिका हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम एक परिवार के रूप में आपसी सहयोग के माध्यम से सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा दे सकते हैं।
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