41 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को किया बरी, केवल उकसाने से दोष नहीं बनता
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में 41 साल से जेल में काट रहे विजय उर्फ बब्बन को बरी कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल कथित उकसावे जैसे “मारो साले को” कहने के आधार पर किसी पर सामान्य इरादे (कॉमन इंटेंशन) के तहत दोष नहीं ठहराया जा सकता। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की खंडपीठ ने पुलिस स्टेशन नवाबाद, झांसी में दर्ज मामले में निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 34 के तहत दोष सिद्ध करने के लिए...
41 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को किया बरी, केवल उकसाने से दोष नहीं बनता
प्रयागराज, अमृत विचार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 41 वर्षों से जेल में बंद विजय उर्फ बब्बन को हत्या के मामले में बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की खंडपीठ ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि केवल किसी व्यक्ति के विरोध में दिए गए शब्दों, जैसे "मारो साले को", के आधार पर किसी को सामान्य इरादे (कॉमन इंटेंशन) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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कोर्ट के निर्णय का महत्व
इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया:
- अभियुक्त की हत्या के मामले में सीधी भागीदारी और स्पष्ट मंशा का होना आवश्यक है।
- बिना ठोस सबूत के उकसाने के आरोप पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं है।
विजय उर्फ बब्बन ने अपनी जिंदगी के अधिकांश दिन जेल में बिताए हैं, जहां वह एक निर्दोष व्यक्ति के रूप में समय काटते रहे। उनकी रिहाई उनके लिए और उनके परिवार के लिए एक नई शुरुआत का अवसर ला रही है।
उकसाने की आरोपों की कमजोरी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अक्सर उकसाने के आरोपों का आधार कमजोर होता है और बिना ठोस साक्ष्यों के किसी को फंसाना न्यायसंगत नहीं है। इस मामले की पुलिस ने आरोप लगाया था कि विजय उर्फ बब्बन ने किसी व्यक्ति को हत्या के लिए उकसाया था, लेकिन न्यायालय ने इस आरोप को खारिज कर दिया।
विजय उर्फ बब्बन को पूर्व में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जो अब रद्द कर दी गई है। यह निर्णय न केवल कानून के अनुसार है, बल्कि यह दर्शाता है कि न्यायालय में व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना कितना आवश्यक है।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट का यह फैसला यह दर्शाता है कि बिना ठोस सबूत के किसी को भी दोषी ठहराना पूरी तरह से गलत है। ऐसे फैसले न केवल न्यायिक प्रणाली की गरिमा को बनाए रखने में मदद करते हैं, बल्कि समाज में न्याय की उम्मीद को भी जीवित रखते हैं। विजय उर्फ बब्बन का बरी होना एक सकारात्मक संदेश है कि कानून सभी के लिए समानता और न्याय का प्रतीक है।
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लेख: साक्षी शर्मा, टीम नेटा नागरी
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