गंभीर संकट का संकेत है ग्लोबल वार्मिंग

जलवायु परिवर्तन या यों कहे कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानव अस्तित्व पर आ रहे संकट की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि 2 जून को समूचे विश्व में ग्लोबल हीट एक्शन डे मनाया जाने लगा है। ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम तेजी से हमारे सामने आने लगे हैं। लाख प्रयासों, शिखर सम्मेलनों और संकल्पों के बावजूद पृथ्वी पर तापमान की बढ़ती दर को रोकने में हम पूरी तरह से विफल रहे हैं। 1850 से अब तक के रेकार्ड के अनुसार विश्व में अब तक का सबसे गर्म साल 2024 रहा है। वर्कले अर्थ द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है कि सर्वाधिक गर्म साल 2024 रहा है। मजे की बात यह है कि यह सब तो तब है जब ग्लोबल वार्मिंग को लेकर वैश्विक सम्मेलन लगातार आयोजित हो रहे है और पृथ्वी के बढते तापमान को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा सीधा अर्थ धरती के तापमान में बढ़ोतरी होना है। इस साल 2025 के ग्लोबल हीट डे की थीम रिकागनाइजिंग एण्ड रेस्पोडिंग टू हीट स्ट्रोक रखा गया है। दुनिया के देष 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग दर को 50 प्रतिशत कम तक लाना है। दरअसल 1896 में ही स्वीडिस मौसम विज्ञानी ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से चेता दिया था। 1975 में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सबसे पहली रिपोर्ट आई और 1988 में अमेरिका की सीनेट में नासा वैज्ञानिक जैम्स हेनसेन से चर्चा करते हुए आने वाले संकट को स्पष्ट कर दिया था। ग्लोबल वार्मिंग के चलते आज दुनिया के देशों, समुद्र किनारे के शहरों, जंगलों की जैव विविधता औैर बच्चों, बुजुर्गों और पुरानी बीमारियों से ग्रसित लोगों के सामने गंभीर संकट आ गया है। कहने का अर्थ यह है कि यह संकट किसी एक स्थान या एक नागरिक विशेष पर ना होकर समूची मानव जाति और अस्तित्व पर आ गया है। इसके दुष्परिणामों को तो इस तरह से समझा जा सकता है कि ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं, इससे समुद्र का जल स्तर लगातार बढने लगा है। मौसम के हालात अस्पष्ट होते जा रहे हैं। गर्मी और अधिक लंबी व गर्म होती जा रही है तो मौसम चाहे सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात हो चरम स्थिति में होने लगा है। रेगिस्तान बढ रहा है तो जलवायु परिवर्तन या यों कहें कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते नित नए चक्रवात, तूफान, बरसात के दिन कम होने के बावजूद एक ही समय में अत्यधिक बरसात, सर्दिंयों में अधिक बरसात आदि सामने आ रहे हैं।इसे भी पढ़ें: अंधड़, बारिश और चेतावनी: बदलता मौसम, बिगड़ता संतुलनमौसम विज्ञानियों ने पहले ही चेता दिया था कि औद्योगिक क्रान्ति और उसके चलते हमारी जीवन शैली में बदलाव से ग्लोबल वार्मिंग के हालात बनते जा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे प्रमुख कारण जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग रहा है। कोयला, तेल, गैस आदि जीवाश्म ईंधन के उपयोग से अंतरिक्ष की परत प्रभावित हुई है और उसके चलते तापमान में बढ़ोतरी के हालात बनते जा रहे हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि जीवाश्म ईंधन के साथ ही कुछ अन्य कारण भी है जिनके चलते तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। अत्यधिक शहरी करण और लोहे सीमेंट के उपयोग के कारण गगनचुंबी इमारतों से कंक्रिट के जंगल का विस्तार, आबादी का अत्यधिक दबाव होने केे कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक व बेरहमी से दोहन, सुविधा के लिए नित नए इलेक्ट्रोनिक उत्पादों का अत्यधिक उपयोग, पंखें या कूलर के स्थान पर एयर कण्डीशनरों का उपयोग, रसोई में फ्रीज व अन्य उत्पादों का उपयोग और इसी तरह के अन्य वस्तुओं के उपयोग के चलते तापमान में बढ़ोतरी का कारण बनता जा रहा है। मजे की बात यह है कि आज जिसे बेहतर व उपयोगी बताया जा रहा है कुछ समय बाद ही उसे हानिकारक बताने में भी नहीं हिचका जा रहा। आज जापान आदि देशों में माइक्रोवेव ओवन या आरओ आदि के उपयोग को हानिकारक बताया जाने लगा है। पहले प्लास्टिक को बढ़ावा दिया गया और अब उसके दुष्परिणाम सामने हैं। इसी तरह से जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रुप में ईवी वाहनों के प्रोत्साहन के साथ ही दबे स्वर में यह रिपोर्ट आने लगी है कि ईवी का भी असर तापमान बढ़ोतरी पर पड़ेगा। हालात यहां तक होने लगे हैं कि हीट स्ट्रोक के कारण लोगों की ही नहीं जानवरों की भी जान जाने लगी है। ग्लोबल हीट एक्शन डे के आयोजन के पीछे लोगों को हालात की गंभीरता से सजग करना और अत्यधिक हीटवेव से बचने के लिए सतर्क और सजग करना है। तापमान की बढ़ोतरी का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकायों द्वारा तापमान अधिक होने पर आमनागरिकों को राहत देने के लिए सड़कों पर पानी का छिड़काव करवाया जाने लगा है तो जयपुर सहित कई शहरों में सिग्नल वाले रास्तों पर गर्मी से राहत के लिए हरा पर्दा टांगा जाने लगा है। हीट एक्शन डे के माध्यम से लोगों को सजग करना, हीटवेव से बचने व सुरक्षा के उपायों खासतौर से भूखे पेट नहीं रहना, पानी व तरल पदार्थ का अधिक सेवन के साथ ही छाया में रहने और ढीले कपड़े पहने के साथ ही शरीर को ढक के रखना आदि के प्रति अवेयर करना है। आज लोगों में पशुपक्षियों के प्रति भी संवेदनशीलता बढी है और गर्मी के चलते दाना-पानी की व्यवस्थाएं एक अभियान के रुप में की जाने लगी है। खैर यह तो व्यक्तिगत प्रयासों की बात हुई पर तापमान के चलते जंगलों मेें दावानल, समुद्र किनारें के शहरों के लिए खतरा व एक ही बरसात में बाढ़ जैसे हालात होना, आंधी तूफान के कारण जन-धन हानि और अन्य समस्याएं तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में अभी भी समय है कि हम सजग हो जाएं और प्रकृति से खिलवाड़ कर प्रकृति को विकृति बनाने के स्थान पर प्रकृति को विकास का वाहक बनाने में उपयोग करें तो यह अधिक सकारात्मक होगा। इसके लिए बीट द हीट के हैसटेैग से संदेश देने का आह्वान भी लगातार किया जा रहा है। एक बात साफ हो जानी चाहिए कि अब सोचने का समय नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने का समय आ गया है और इसके लिए समग्र व ठोस प्रयास करने होंगे। - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

Jun 2, 2025 - 18:37
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गंभीर संकट का संकेत है ग्लोबल वार्मिंग
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गंभीर संकट का संकेत है ग्लोबल वार्मिंग

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जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणाम अब स्पष्ट रूप से हमारे सामने आ रहे हैं। 2 जून को, विश्वभर में 'ग्लोबल हीट एक्शन डे' का आयोजन किया गया, जो इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मनाया गया। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को इस संकट के प्रति जागरूक करना है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि, पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण जीवन के अस्तित्व पर खतरे के संकेत दिखाई देने लगे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग: एक बढ़ता संकट

वास्तव में, ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है, धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी। 1850 से अब तक के आंकड़ों के अनुसार, 2024 विश्व का सबसे गर्म वर्ष रहा है, जबकि वैज्ञानिक इसे निरंतर बढ़ते तापमान का संकेत मानते हैं। वर्कले अर्थ द्वारा जारी रिपोर्ट भी इस तथ्य की पुष्टि करती है। वैश्विक सम्मेलनों के बावजूद, मानवता पर्यावरण के इस संकट को रोकने में पूरी तरह से असफल रही है।

ग्लोबल हीट डे के इस वर्ष की थीम 'रिकागनाइजिंग एंड रिस्पोंडिंग टू हीट स्ट्रोक' रखी गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया के देशों को 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग को 50 प्रतिशत तक कम करना है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण

ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मुख्य वजह जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग है। कोयला, तेल, और गैस जैसी चीजें ना केवल हमारे वातावरण को प्रदूषित करती हैं, बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भी हानिकारक होती हैं। इसके अलावा, शहरीकरण, अत्यधिक जनसंख्या, और अनियंत्रित संसाधनों का दोहन भी इस संकट को बढ़ाने में भूमिका निभाते हैं।

ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, और चरम मौसम की स्थिति इन सभी समस्याओं का जीता जागता उदाहरण हैं। मौसम के अचानक बदलाव, जैसे कि अपार मात्रा में बारिश या तेज गर्मी, हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।

व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयास

ग्लोबल हीट एक्शन डे का उद्देश्य इस समस्या को लेकर लोगों को जागरूक करना है। स्थानीय निकायों ने तापमान बढ़ाने वाली गर्मी से राहत पहुंचाने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे कि सड़कों पर पानी का छिड़काव करना और गर्मी से राहत देने के लिए हरे पर्दे लगाना। व्यक्तिगत स्तर पर, हमें अपने दैनिक जीवन में जल और खाद्य पदार्थों का उचित सेवन करने के लिए सजग रहना चाहिए।

आगे का रास्ता

ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उठाए गए कदम अब केवल सोचने का विषय नहीं रह गया है, बल्कि यह करने का समय है। बीट द हीट जैसे अभियानों के माध्यम से लोग अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं, और आवश्यक कदम उठाना जरूरी है। हमें इस समस्या का समाधान खोजने के लिए एकजुट होना होगा।

स्थायी विकास और प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग के माध्यम से, हम इस गंभीर संकट का सामना कर सकते हैं। हालांकि, यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं और पर्यावरण के प्रति सजग रहें।

- अनुष्का वर्मा, प्रियंका गुप्ता, सोनिया यादव और स्वाति मेहरा

टीम netaanagari

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global warming, climate change, environmental crisis, heat action day, ecological impact, preserving nature, sustainable development, fossil fuels, temperature increase, community awareness, heat stroke prevention

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