सेल्फ हार्म डिसऑर्डर: अभिभावकों की लापरवाही से बच्चों में बढ़ रही स्व-हानि की प्रवृत्ति

मुरादाबाद, अमृत विचार। बच्चों के व्यवहार में गुस्सा और जिद सामान्य माने जाते हैं, लेकिन हाल के दिनों में यह प्रवृत्ति गंभीर रूप लेती दिख रही है। जिला अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की ओपीडी में हर सप्ताह 15 से अधिक ऐसे बच्चे आ रहे हैं, जो गुस्सा होने पर या अपनी जिद पूरी न होने पर खुद को ही चोट पहुंचाने लगते हैं। चिकित्सकों के अनुसार यह स्थिति सेल्फ हार्म डिसऑर्डर कहलाती है, जिसे समय रहते नजरअंदाज करना बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिनव शेखर का कहना है कि...

Sep 7, 2025 - 09:37
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सेल्फ हार्म डिसऑर्डर: अभिभावकों की लापरवाही से बच्चों में बढ़ रही स्व-हानि की प्रवृत्ति

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कम शब्दों में कहें तो, बच्चों में गुस्सा और जिद सामान्य हैं, लेकिन यह प्रवृत्ति जब गंभीर रूप ले लेती है तो खतरे की घंटी बन जाती है। बच्चों को चोट पहुंचाने की प्रवृत्ति 'सेल्फ हार्म डिसऑर्डर' की ओर इशारा करती है, जिसका बढ़ता हुआ स्तर चिंता का विषय है।

मुरादाबाद, अमृत विचार। हाल के दिनों में, बच्चों के व्यवहार में गुस्सा और जिद सामान्य समझी जाती थी, लेकिन अब यह पूर्वाभास करने वाली समस्या बन रही है। जिला अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की ओपीडी में हर सप्ताह 15 से अधिक बच्चे ऐसे आते हैं, जो अपनी जिद पूरी न होने पर खुद को चोट पहुंचाने लगते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि ऐसा करना 'सेल्फ हार्म डिसऑर्डर' कहलाता है। इसे नजरअंदाज करना बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक हो सकता है।

क्या है सेल्फ हार्म डिसऑर्डर?

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिनव शेखर ने बताया कि, छोटे बच्चे अक्सर गुस्से और जिद के कारण आत्म-हानि की प्रवृत्ति दिखाई देते हैं। शुरुआत में, अभिभावक इसे बच्चों की शरारत या बचपना समझकर टाल देते हैं। कुछ माता-पिता का मानना होता है कि ऐसा होने से शायद बच्चा ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह प्रवृत्ति बच्चों के स्वभाव में गहराई तक बैठ जाती है, और बड़े होने के बाद गंभीर मानसिक बीमारियों का रूप ले सकती है।

अभिभावकों की अवहेलना का प्रभाव

डॉ. शेखर बताते हैं कि जो बच्चे सेल्फ हार्म डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं, वे खुद को नोंचते, थप्पड़ मारते, दीवार या किसी वस्तु से सिर मारते, हाथ काटते या खरोंचते हैं। यह केवल शारीरिक नुकसान नहीं है, बल्कि मानसिक असंतुलन का भी संकेत है। यदि समय पर चिकित्सकीय परामर्श और काउंसिलिंग नहीं की गई, तो इसका बच्चों के जीवन पर गहरा असर पड़ सकता है।

सामाजिक वातावरण का प्रभाव

इस समस्या की जड़ अक्सर घर के माहौल से जुड़ी होती है। माता-पिता के बीच तनाव, अत्यधिक पढ़ाई का दबाव, डिजिटल उपकरणों की लत और बच्चों को पर्याप्त समय नहीं देना, इन सभी कारणों से बच्चे असुरक्षित और अकेलापन महसूस करते हैं। नतीजतन, वे अपने गुस्से और असंतोष को खुद पर ही निकालने लगते हैं।

क्या करें अभिभावक?

अभिभावकों को अपने बच्चों से संवाद बढ़ाने की आवश्यकता है। जब बच्चा गुस्से में खुद को नुकसान पहुंचाए, तो उसे डांटने या मारने की बजाय शांत होकर उसकी समस्या को सुनने का प्रयास करें। मानसिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक माहौल, पर्याप्त समय और प्यार देना सबसे प्रभावी उपचार है। यदि स्थिति गंभीर हो, तो मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना अति आवश्यक है।

इस स्थिति का समाधान निकालना अब समय की मांग हो गया है। बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित करना हमारे समाज की जिम्मेदारी है। प्रत्येक अभिभावक को अपनी भूमिका निभाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।

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सादर, टीम नेता नगरी

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