सरकारी स्कूलों के मर्ज को लेकर आक्रोश में टीचर, लामबद हो सौंपा ज्ञापन
शिव शंकर सविता- चंदौली जिले में बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालयों को एकीकृत (मर्ज) किए जाने की प्रक्रिया को लेकर शिक्षकों में गहरा आक्रोश है। इस निर्णय के विरोध में शिक्षक…

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लेखिका: राधिका शर्मा, सुमन चौहान - टीम नेटआनागरी
मार्ज के विरोध में शिक्षकों का आक्रोश
शिव शंकर सविता - चंदौली जिले में बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालयों को एकीकृत (मर्ज) किए जाने की प्रक्रिया को लेकर शिक्षकों में गहरा आक्रोश है। इस निर्णय के विरोध में शिक्षकों ने एकजुट होकर ज्ञापन सौंपा है। शिक्षकों ने साफ शब्दों में कहा है कि यह कदम उनके कामकाज की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा और बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
शिक्षकों ने उठाई आवाज
मर्ज की इस प्रक्रिया के खिलाफ शिक्षकों ने व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन किया। शिक्षकों का कहना है कि इस एकीकरण के कारण, कई महत्वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है जैसे अध्यापकों का कमीशन, छात्र संख्या में भिन्नता, और विद्यालयों की भौगोलिक स्थिति। शिक्षकों का मानना है कि हर विद्यालय की अपनी विशेषताएँ हैं, जिनका ध्यान रखे बिना एकीकरण करना उचित नहीं है।
ज्ञापन में क्या है मुख्य मांगें
ज्ञापन में शिक्षकों ने मुख्यत: निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
- आपसी चिंता के बिना विद्यालयों का मर्ज न किया जाए।
- प्रत्येक विद्यालय के अध्यापकों को उनकी मूल पहचान और विशेषताओं के अनुसार ही कार्य करने दिया जाए।
- शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए समुचित संसाधनों का प्रावधान किया जाए।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया
इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी ने कहा कि वे शिक्षकों की चिंताओं को सुनने के लिए तैयार हैं और इस पर विचार करने का आश्वासन दिया है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एकीकरण की प्रक्रिया में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं, लेकिन इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
आगे का रास्ता
शिक्षकों के इस आक्रोश के बीच, आगे क्या होगा यह देखने की बात होगी। यदि प्रशासन उचित कदम नहीं उठाता है, तो शिक्षकों का यह आंदोलन और गंभीर रूप ले सकता है। हालात पर कड़ी नजर रखी जा रही है और सभी पक्षों की ओर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
समापन विचार
चंदौली का यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर शिक्षकों का रोष व्यक्त करता है, बल्कि यह पूरे देश के सरकारी स्कूलों के मर्ज की प्रक्रिया के संदर्भ में सवाल उठाता है। शिक्षा प्रणाली को मजबूत और प्रभावशाली बनाना सर्वोपरि है, और इसके लिए शिक्षकों की भूमिका को नजरअंदाज करना किसी भी तरह उचित नहीं है।
अंत में, शिक्षा मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों को चाहिए कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लें और शिक्षकों की अपेक्षाओं का सम्मान करें।
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