यूपी रोडवेज अधिकारियों की पेंशन पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय, जानें पूरी जानकारी
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) में 1986 से 1990 के बीच सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर नियुक्त अधिकारियों को पेंशन लाभ से वंचित करने के निगम के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि सभी याचियों की नियुक्ति 1986–1990 के बीच नवनिर्मित 135 पदों पर की गई थी। उनके नियुक्ति पत्र में साफ लिखा था कि सेवाएँ सड़क परिवहन निगम अधिनियम, 1950 के अंतर्गत बनाए जाने वाले नियमों से शासित होंगी। वर्ष 1998 में निगम ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम अधिकारी सेवा (सामान्य) विनियमावली, 1998 लागू की, जो कि पहले के...
यूपी रोडवेज अधिकारियों की पेंशन पर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
कम शब्दों में कहें तो, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपीएसआरटीसी के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों को पेंशन लाभ से वंचित रखने का निर्णय बरकरार रखा है। इस निर्णय के संदर्भ में जानें महत्वपूर्ण बातें और उनके अधिकारों के संबंध में तथ्य। Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - Netaa Nagari
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) में 1986 से 1990 के बीच सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर नियुक्त अधिकारियों के लिए पेंशन लाभ को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। कोर्ट ने निगम के उस निर्णय को सही ठहराया, जिसके अनुसार इन अधिकारियों को पेंशन लाभ से वंचित किया गया है। हाईकोर्ट ने कहा कि सभी याचियों की नियुक्ति 1986 से 1990 के बीच बनाए गए 135 नवनिर्मित पदों पर की गई थी और इनके नियुक्ति पत्र में कम से कम इतना स्पष्ट बताया गया था कि उनकी सेवाएँ सड़क परिवहन निगम अधिनियम, 1950 के अंतर्गत बनाए जाने वाले नियमों के तहत शासित होंगी।
1998 की नियमावली और पेंशन का मामला
वर्ष 1998 में निगम ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम अधिकारी सेवा (सामान्य) विनियमावली, 1998 को लागू किया। इस नियमावली में निगम के पूर्व आदेशों को रद्द करने की शक्ति दी गई थी। संबंधित याचियों के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क रखा कि 1972 का शासनादेश सरकारी कर्मचारियों की सेवा शर्तों के अनुसार होने चाहिए, जिसके अंतर्गत वे पेंशन के भी हकदार हैं।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि 1998 की नियमावली के अनुसार यहाँ पेंशन का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। याचियों को अंशदायी निधि योजना के तहत लाभ मिल चुका है, लेकिन पेंशन का कोई अधिकार नहीं है।
अधिवक्ताओं के तर्क और अदालत का निष्कर्ष
याचियों के अधिवक्ता का यह तर्क था कि उनके पद का नाम पहले से मौजूद पदनाम के समान है, और इसलिए उन्हें पेंशन मिलनी चाहिए। लेकिन न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने संदीप रायजादा और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों को केवल भविष्य निधि और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों के लिए ही पात्र माना जाएगा।
महत्वपूर्ण कानून और निष्कर्ष
इस मामले के संबंध में स्पष्टता यह देनी चाहिए कि 1998 की नियमावली के प्रभाव में आने के बाद से पुराने आदेशों की प्रामाणिकता सवालों में भी आ गई है। याचियों का दावा केवल समत्त्व के आधार पर नहीं बल्कि नियमों की प्रणाली से ही तय हो सकता है।
इस निर्णायक फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी नौकरियों में पेंशन का लाभ हमेशा नियमों और विनियमों पर निर्भर रहता है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में ऐसे मामलों में अपील करते समय याचियों को उनके सेवा संबंधी नियमों का ध्यान रखना होगा।
इस महत्वपूर्ण निर्णय ने यूपी रोडवेज के अधिकारियों के बीच में एक नए विवाद की शुरुआत की है। यह निर्णय निश्चित रूप से अन्य सरकारी संस्थानों में भी पेंशन से संबंधित मामलों में उदाहरण स्थापित करेगा।
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संदेश: यह निर्णय केवल एक अंश है, विस्तृत जानकारी और आगे उठाए जाने वाले कदमों को समझना आवश्यक है।
टीम नेतागिरी संदीपा शर्मा
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