सोशल मीडिया की लापरवाही: दो महीनों में 97 नाबालिग हुए लापता, सुरक्षा पर उठे सवाल

देहरादून: राजधानी देहरादून में नाबालिग बच्चों के गुमशुदा होने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं, इससे पुलिस और प्रशासन की चिंता बढ़ गई है। इन घटनाओं ने शहर की… Source Link: सोशल मीडिया से अजनबियों के झांसे में आ रहे बच्चे, दो महीने में 97 नाबालिग हुए लापता

Sep 15, 2025 - 18:37
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सोशल मीडिया की लापरवाही: दो महीनों में 97 नाबालिग हुए लापता, सुरक्षा पर उठे सवाल
सोशल मीडिया की लापरवाही: दो महीनों में 97 नाबालिग हुए लापता, सुरक्षा पर उठे सवाल

सोशल मीडिया की लापरवाही: दो महीनों में 97 नाबालिग हुए लापता, सुरक्षा पर उठे सवाल

देहरादून: राजधानी देहरादून में नाबालिग बच्चों के लापता होने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिसके चलते पुलिस और प्रशासन की चिंताएं गहराती जा रही हैं। इस बढ़ती समस्या ने शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

कम शब्दों में कहें तो, देहरादून में केवल दो महीनों के भीतर 97 नाबालिग बच्चे गायब हो गए हैं। इनमें से 87 बच्चों को पुलिस ने सुरक्षित रूप से ढूंढ निकाला है। इस मामले की जांच में यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया ने इन गुमशुदगी के मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बच्चे अजनबियों के संपर्क में आते हैं और आसानी से उनके बहकावे में आ जाते हैं। कई नाबालिग बिना घरवालों को बताये मिलने के लिए निकल पड़ ते हैं और वहीं लापता हो जाते हैं।

लड़कियों की गुमशुदगी की संख्या अधिक

शहर के पुलिस थानों में दर्ज गुमशुदगी रिपोर्ट के अनुसार, लापता बच्चों की उम्र 10 से 17 साल के बीच के वर्ग में मुख्यतः आती है। इनमें से अधिकतर बच्चे लड़कियाँ हैं। पुलिस जांच में गुमशुदगी के पीछे कुछ प्रमुख कारण सामने आए हैं: घरवालों से नाराजगी, स्वतंत्र रूप से घूमने की इच्छा और सोशल मीडिया पर बने नए संपर्क।

इन 97 लापता बच्चों में से 62 बच्चे अपना घर छोड़कर चले गए क्योंकि वे अपने माता-पिता से नाराज थे, जबकि 24 बच्चे बिना बताये अन्य कारणों से लापता हुए। इसके अलावा, 11 बच्चों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बहलाकर अपने साथ ले जाया गया था। पुलिस ने इन मामलों में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया है।

स्कूलों के आसपास सुरक्षा प्रबंधों की कमी

पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के अलावा, स्कूलों के बाहर सुरक्षा व्यवस्थाएं भी कमजोर हैं। अक्सर स्कूल के छुटने के समय मनचले युवक छात्राओं को परेशान करते हैं। पुलिस की गश्त की कमी के कारण ये असामाजिक तत्व खुलकर कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।

बच्चों का सोशल मीडिया पर बढ़ता झुकाव उन्हें गुमराह कर रहा है, जबकि सुरक्षा इंतजामों की कमी अपराधियों के लिए अवसर उपलब्ध करवा रही है। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस समस्या के समाधान के लिए पुलिस, स्कूल प्रशासन और अभिभावकों को मिलकर जिम्मेदारी लेनी होगी। स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करना होगा और पुलिस को गश्त बढ़ाने के साथ-साथ साइबर मॉनिटरिंग पर ध्यान देना होगा।

यह स्थिति सिर्फ देहरादून की नहीं है, बल्कि पूरे देश में बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता का विषय बन गई है। देश के विभिन्न इलाकों में बच्चों के लापता होने की ऐसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिलती हैं।

अंततः, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी अगली पीढ़ी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक रूप से कदम उठाएं। बच्चों को सोशल मीडिया की खतरनाक दुनिया से सुरक्षित रखने के लिए अभिभावकों को जागरूक होने की आवश्यकता है। यदि हम इस समस्या को नजरअंदाज करते हैं, तो इसके दुष्परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

बीते कुछ सालों में, हम देख रहे हैं कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन और समाज में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अभी भी बहुत सारी चुनौतियाँ हैं, जिनका सामना करना आवश्यक है।

अधिक जानकारी के लिए, कृपया यहाँ क्लिक करें.

टीम नेटा नागरी - प्रतिभा वर्मा

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