हाईकोर्ट का आदेश: सरकारी पदों की भरती में संविदा और मृतक आश्रित नियुक्तियों को न करें प्राथमिकता

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) में मृतक कर्मचारियों के आश्रितों की नियुक्ति संबंधी कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि अनुकम्पा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं बल्कि अपवाद है, जिसका उद्देश्य केवल आर्थिक संकट झेल रहे परिवार को राहत देना है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने निधि शर्मा व कई अन्य याचिकाओं को निस्तारित करते हुए पारित किया।  याचियों का तर्क था कि निगम ने उनके आवेदन समय पर नहीं निपटाए और चयन सूची में उनके नाम शामिल नहीं किए। वहीं निगम ने कहा कि कई आवेदन मृतक कर्मचारी...

Sep 10, 2025 - 00:37
 113  22.1k

हाईकोर्ट का आदेश: सरकारी पदों की भरती में संविदा और मृतक आश्रित नियुक्तियों को न करें प्राथमिकता

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (यूपीएसआरटीसी) में मृतक कर्मचारियों के आश्रितों की नियुक्ति के संबंध में सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण आदेश दिया है। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने स्पष्ट किया है कि अनुकम्पा भर्ती कोई अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक अपवाद है जिसका मुख्य उद्देश्य उन नागरिकों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है जो गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। यह आदेश जनहित में दिए गए कई याचिकाओं के निस्तारण के दौरान पारित किया गया।
Breaking News, Daily Updates & Exclusive Stories - Netaa Nagari

याचिका पर उठे सवाल

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि यूपीएसआरटीसी ने उनके आवेदन समय पर नहीं देखे और चयन सूची में उनके नाम शामिल नहीं किए गए। दूसरी ओर, निगम ने यह भी स्पष्ट किया कि कई आवेदन मृतक कर्मचारी की मृत्यु के पांच वर्ष बाद आए थे या उस समय आवेदक आवश्यक अर्हता पूरी नहीं कर रहे थे। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता यह साधारण रूपमा सिद्ध नहीं कर सके कि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई मनमानी हुई है।

नियम और समय सीमा

कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिका जनहित याचनाओं के दायरे में नहीं आती। एक याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने बताया कि एक कर्मचारी की मृत्यु 2006 में हुई, मगर उसके आश्रित ने वयस्क होने के बाद छह वर्ष की देरी से आवेदन किया। इसलिए, जो आवेदन ‘नियम, 1974’ के तहत पांच वर्ष की समय-सीमा के बाद दिए गए हैं, उन्हें सामान्यतः मान्य नहीं माना जा सकता।

नियुक्तियों की प्रक्रिया पर चिंता

कोर्ट ने यह भी चिंता व्यक्त की कि 2005 से चालक पदों पर और 2016 से परिचालक पदों पर सीधी भर्ती नहीं हुई है। ऐसे में केवल संविदा या अनुकंपा नियुक्तियों से इन्हें भरने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। कोर्ट ने यूपीएसआरटीसी को निर्देश दिया कि यदि चालक और परिचालक के पदों पर वास्तविक रिक्तियाँ उपलब्ध हैं, तो शीघ्र सीधी भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए।

भर्ती की स्थिति

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2002, 2016 और 2018 में क्रमशः 650, 1200 और 587 मृतक आश्रितों की नियुक्तियाँ की थीं। वर्ष 2025 के शासनादेश द्वारा 1165 पदों पर नियुक्तियों का रास्ता खोला गया था। कोर्ट ने माना कि याचिकाओं में देरी की वजह से लंबित मामलों की संख्या बढ़ने स्वाभाविक है, लेकिन याचिकाकर्ता सिद्ध नहीं कर सके कि इस देरी के पीछे कोई अनुचित कारण था। जब तक नियुक्तियाँ ‘नियम, 1974’ के अनुशासन में होती हैं, तब तक ये संवैधानिक रूप से वैध माना जाएगा।

निष्कर्ष

इस महत्वपूर्ण निर्णय ने न केवल संविदा और मृतक आश्रितों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि सरकारी पदों पर योग्य कर्मचारियों की नियुक्तियों में कोई भी बाधा नहीं आए। यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उनके परिवार को आर्थिक सहायता की आवश्यकता है, तो उन्हें आवेदनों में समयसीमा का पालन करना होगा।
कम शब्दों में कहें तो: हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविदा और मृतक आश्रित नियुक्तियों से सरकारी पदों को भरना प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए।
अधिक अपडेट्स के लिए यहां क्लिक करें

आपका सहयोग हमारी प्रेरणा है।
Team Netaa Nagari - सायरा बानो

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow