दरी बिछाई, लाठी खाई, सत्ता आई पर कृपा न पाई.... लेकिन भाजपा के ये कार्यकर्ता पार्टी के लिए अब भी समर्पित

शैलेश अवस्थी/कानपुर। अब इसे भाग्य कहें या अनदेखी, वक्त कहें या बदली नीति, भाजपा के कट्टर समर्थक कई कार्यकर्ताओं को वह मुकाम नहीं मिला, जो वह चाहते थे। इस सबके के बीच भी वे प्राण-प्रण से पार्टी का झंडा बुलंद किए हैं। कई तो उम्र का बड़ा हिस्सा खपा चुके हैं, लेकिन उन्हें सांसद, विधायक, सभासद तो दूर, लाभ का कोई ओहदा तक नहीं मिला।  खास तौर पर वे, जो किसी बड़े नेता के खेमे से नहीं बंधे हैं। हां, कुछ को संगठन में तो किसी को किसी कमेटी की सदस्य बना कर संतुष्ट करने की कोशिश ज़रूर हुई। वे...

Nov 4, 2025 - 18:37
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दरी बिछाई, लाठी खाई, सत्ता आई पर कृपा न पाई.... लेकिन भाजपा के ये कार्यकर्ता पार्टी के लिए अब भी समर्पित

शैलेश अवस्थी/कानपुर। अब इसे भाग्य कहें या अनदेखी, वक्त कहें या बदली नीति, भाजपा के कट्टर समर्थक कई कार्यकर्ताओं को वह मुकाम नहीं मिला, जो वह चाहते थे। इस सबके के बीच भी वे प्राण-प्रण से पार्टी का झंडा बुलंद किए हैं। कई तो उम्र का बड़ा हिस्सा खपा चुके हैं, लेकिन उन्हें सांसद, विधायक, सभासद तो दूर, लाभ का कोई ओहदा तक नहीं मिला। 

खास तौर पर वे, जो किसी बड़े नेता के खेमे से नहीं बंधे हैं। हां, कुछ को संगठन में तो किसी को किसी कमेटी की सदस्य बना कर संतुष्ट करने की कोशिश ज़रूर हुई। वे अभी भी पूरी तरह सक्रिय हैं। साल-दर साल बीत रहे, न कमेटियां बन रहीं, न आयोग, न बोर्ड और न ही पार्षद मनोनयन हो रहा। 

छात्रसंघ से निकले श्री कृष्ण दीक्षित बड़ेजी तीन दशक से ज्यादा पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। रामजन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय रहे, युवा मोर्चा में काम किया और पार्टी के हर कार्यक्रम में अपनी तय भूमिका निभाते रहे। संगठन में छोटे-मोटे ओहदे मिलते रहे, लेकिन किसी सदन तक नहीं पहुंचे।

ऐसी ही कहानी मीडिया प्रभारी अनूप अवस्थी की है। सत्ता आने से पहले और बाद तक वह पार्टी के लिए समर्पित हैं। मीडिया और पार्टी के बीच सेतु हैं। लंबे समय मीडिया प्रभारी रहे बीडी रॉय ने आंदोलनों के दौरान इतनी लाठियां खाईं कि अंग-भंग हो गए। 

सतीश महाना पर निष्ठा ने उन्हें दो बार रेल सलाहकार समिति में सदस्य ज़रूर बनवाया और अभी भी सक्रिय हैं। युवा मोर्चा में रहे दीप अवस्थी ने खूब लाठी खाई और जेल गए। एक बोर्ड का सदस्य ही बन सके। पार्टी समर्पित अशोक सिंह दद्दा को तो कुछ भी खास नहीं मिला, लेकिन पार्टी का चेहरा हैं। 

युवा मोर्चा के क्षेत्रीय अध्यक्ष सुनील साहू ख़ामोशी से काम करते हुए बमुश्किल यहां तक ही पहुंच सके हैं। इसी तरह प्रकाशवीर आर्य, आलोक मेहरोत्रा, कृपा शंकर मिश्र, अखिलेश अवस्थी, संजय दुबे, रोहित सक्सेना सहित हज़ारों कार्यकर्त्ता हैं, जो सत्ता-सुख की बाट जोह रहे हैं। कुछ ऑफ़ द रिकार्ड कहते हैं आयातित नेताओं ने मूल का हक दबा लिया। 

13 साल जेल में बिताए गिरीश वाजपेई ने
1994 में काला बच्चा हत्याकांड के दौरान भड़के दंगे के आरोप में भाजपा और संघ से जुड़े गिरीश वाजपेई को जेल भेज दिया गया था, अच्छी पैरवी नहीं हुई तो वह 13 साल जेल रहे। ईश्वर चंद और सतीश महाना ने तगड़ी पैरवी की तो वह बा-इज़्ज़त बरी हुए। खास बात यह कि ज़ब जेल गए, तब भी सहकारिता प्रकोष्ठ में थे और बरी होने के बाद भी वही ओहदा।

इनका योगदान कम नहीं..
गोपाल अवस्थी, रामदेव शुक्ला,  प्रकाश शर्मा, सोम नारायण, श्याम बाबू, सुरेश गुप्ता, कौशल किशोर, राधेश्याम पांडे, दिनेश रॉय, दिवाकर मिश्र दीपू पांडे, पूनम कपूर, प्रेम शंकर दीक्षित, नीरज दीक्षित सहित कई और भी। गोपाल अवस्थी को एक आयोग का चेयरमैन बनाया गया था तो पूनम को एक आयोग का सदस्य। किसी को ज़िलाध्यक्ष अध्यक्ष तो किसी को संगठन में ओहदा तो किसी को सिर्फ भाजपा का नाम। कई और नाम भी हैं। 

हिंदुत्व का चेहरा सुबोध चोपड़ा..
रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान अयोध्या में लाठिया खा कर ढांचे से मीर बाकी की शिला उखाड़ कर बाला साहब तक पहुंचाने वाले शिवसेना के सुबोध चोपड़ा ने 2012 में दिल्ली में बड़े नेताओं के बीच भाजपा ज्वाइन की थी पर अभी तक कोई ओहदा भी नहीं मिला। अब वह शंकर सेना के अध्यक्ष भी हैं और सनातन का झंडा बुलंद किए हैं। "दिल की तमन्ना दिल में घुट के रह गई। उसने पूछा भी नहीं, हमने बताया भी नहीं "।

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