उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: यूपी में जातिवाद पर प्रतिबंध, सार्वजनिक दस्तावेजों से मौजूदा जातिगत संदर्भ हटाने का आदेश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया, जिसमें एफआईआर, पुलिस दस्तावेजों, सार्वजनिक अभिलेखों, मोटर वाहनों और सार्वजनिक साइनबोर्ड से जातिगत संदर्भ हटाने के लिए व्यापक आदेश जारी किए। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने समाज में जातिगत महिमामंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे राष्ट्र-विरोधी … The post उच्च न्यायालय ने यूपी में जातिवाद पर लगाई रोक, सार्वजनिक दस्तावेजों से जातिगत संदर्भ हटाने का आदेश appeared first on Bharat Samachar | Hindi News Channel.

उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: यूपी में जातिवाद पर प्रतिबंध, सार्वजनिक दस्तावेजों से मौजूदा जातिगत संदर्भ हटाने का आदेश
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कम शब्दों में कहें तो, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को जातिवाद समाप्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया है, जिसमें सार्वजनिक दस्तावेजों से जातिगत संदर्भ हटाने का आदेश शामिल है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में जातिवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को विशेष निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने एफआईआर, पुलिस दस्तावेज़, सार्वजनिक अभिलेखों, मोटर वाहनों तथा सार्वजनिक साइनबोर्ड में जातिगत संदर्भों को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने समाज में जातिगत महिमामंडन की प्रवृत्ति को राष्ट्र-विरोधी करार देते हुए इसे समाप्त करने की दिशा में कार्रवाई की महत्वपूर्णता पर प्रकाश डाला।
जातिवाद को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम
कोर्ट ने कहा कि समाज में जातिगत पहचान को बढ़ावा देने के बजाय, हमें संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। न्यायालय ने यह भी बताया कि भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए जातिवाद को समाज से पूरी तरह समाप्त करना अनिवार्य है।
न्यायमूर्ति दिवाकर की पीठ ने स्पष्ट किया कि जातिवाद को समाप्त करने के लिए एक व्यापक कानून की आवश्यकता है। इसके साथ ही, विभिन्न सरकारी स्तरों पर प्रगतिशील नीतियों, भेदभाव-विरोधी कानूनों और सामाजिक परिवर्तन कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है।
प्रमुख आदेश और निर्देश
न्यायालय ने जातिगत संदर्भ को कानूनी दस्तावेजों से नहीं, बल्कि समाज के हर क्षेत्र से समाप्त करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि अभियुक्त की जाति को कानूनी दस्तावेजों में शामिल किया जाता है, तो यह पूर्वाग्रह को बढ़ावा देने की स्थिति उत्पन्न करेगा, न्यायिक सोच को विकृत करेगा और संविधान के प्रति हमारे सम्मान को कमजोर करेगा।
उच्च न्यायालय ने न्यायालय के आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार को निम्नलिखित निर्देश दिए हैं:
- एफआईआर, रिकवरी मेमो, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण मेमो, पुलिस की अंतिम रिपोर्ट और पुलिस थानों के नोटिस बोर्ड से जाति संबंधी कॉलम हटाएँ।
- पहचान के लिए पिता/पति के नाम के साथ माता का नाम भी जोड़ें।
- मोटर वाहन नियमों में संशोधन करके निजी और सार्वजनिक वाहनों से जाति पहचान चिह्न और नारे हटाएँ।
- गाँवों, कस्बों या कॉलोनियों को जाति क्षेत्र घोषित करने वाले जाति-आधारित साइनबोर्ड हटाना सुनिश्चित करें।
- आईटी नियम, 2021 के तहत सोशल मीडिया पर जाति-प्रशंसा करने वाली सामग्री के खिलाफ निगरानी और रिपोर्टिंग तंत्र के साथ कार्रवाई करें।
न्यायालय ने रजिस्ट्रार को यह निर्देश दिया कि वह इस महत्वपूर्ण फैसले की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजें, ताकि इसे मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृह सचिव, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय तथा भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके।
इस ऐतिहासिक फैसले से यह स्पष्ट होता है कि उच्च न्यायालय जातिवाद के खिलाफ खड़ा है और समाज को जातिवाद से मुक्त करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाने का इच्छुक है। इस निर्णय से यह उम्मीद की जा रही है कि समाज में एक नई सोच और दिशा का विकास होगा जो सकारात्मक बदलावों की ओर अग्रसर करेगा।
अंत में, इस निर्णय को एक सफल पहल के रूप में देखा जा सकता है जो न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में जातिवाद के खिलाफ खड़ा हो सकता है। यदि हर स्तर पर इसे लागू किया गया तो, निश्चित रूप से हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ेंगे जो जातिवाद से मुक्त होगा।
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सशक्त समाज की दिशा में सकारात्मक बदलाव के लिए हमें एकजुट होना होगा। टीम नेटा नगरी, सीमा शर्मा
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